नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर भी नहीं हुई सर्चिंग
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झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से पहले सुकमा जिले में नक्सलियों की उपस्थिति की सूचना के बावजूद सर्चिंग नहीं की गई। नक्सली सुकमा जिला होते हुए झीरम घाटी आए और वारदात के बाद इसी रास्ते से वापस गए। इसकी जानकारी के बावजूद पुलिस ने घेराबंदी नहीं की। यह बात विशेष न्यायिक आयोग में सुकमा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के प्रतिपरीक्षण में सामने आई।
बिलासपुर में आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा के समक्ष सुकमा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अभिषेक शांडिल्य का प्रतिपरीक्षण मंगलवार को भी हुआ। इस दौरान कांग्रेस के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने श्री शांडिल्य से सवाल किया कि क्षेत्र में नक्सली उपस्थिति गोपनीय सूचना पर क्या कार्रवाई की गई। 18 मई 2013 को नक्सली कमांडर देवा के तोंगपाल थाना क्षेत्र के कुकवाड़ा में होने की सूचना मिली थी।
इस सूचना के बावजूद पुलिस ने वहां सर्चिंग नहीं की। इस पर एसपी ने मुख्यालय से बाहर होने के कारण जानकारी नहीं होने की बात कही। आयोग में प्रस्तुत दस्तावेज के अनुसार 24 मई 2013 को पुलिस को दक्षिण बस्तर में नक्सलियों के भ्रमण करने, बड़ी बैठक या वारदात को अंजाम देने की सूचना मिली थी। इस सूचना की भी जांच नहीं की गई। इसके अलावा क्षेत्र में सेंट्रल कमेटी के सदस्यों की उपस्थिति की भी जांच नहीं की गई। 25 मई को वारदात को अंजाम देने के बाद 250-300 की संख्या में नक्सली झीरम घाटी से सुकमा जिले के करकुंडम होते हुए भागे। इस सूचना के बावजूद पुलिस ने घेराबंदी नहीं की।
दो युवक ग्राम जूनापानी से नक्सलियों के लिए राशन लेकर बेंगापाल गए थे। इसकी भी पुलिस को सूचना दी गई। क्षेत्र में नक्सलियों के सक्रिय होने की सूचना होने के बावजूद सुकमा जिले में 28, 29 व 30 मई को कोई भी सर्चिंग ऑपरेशन नहीं चलाया गया।
पुलिस ने नक्सलियों को भागने का अवसर दिया। 28 मई को भी 40-50 सशस्त्र नक्सली तोंगपाल के दुड़मा वाटरफॉल के पास थे। पुलिस ने किसी भी सूचना की तस्दीक नहीं की। आयोग ने सुकमा के तत्कालीन एसपी का प्रतिपरीक्षण पूरा होने के बाद बस्तर के तत्कालीन आईजी हिमांशु का बयान पंजीबद्घ करने मामले को 14 जनवरी 2017 को रखने का आदेश दिया है।