राजनैतिक रंग ले रहा है पत्थलगड़ी
पत्थलगड़ी

 

झारखंड से जशपुर के रास्ते छत्तीसगढ़ पहुंची पत्थलगड़ी की मुहिम पर चुनावी साल में सियासी रंग चढ़ने लगा है। यह रंग साधारण सियासी नहीं, बल्कि धर्म का है। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि छह महीने बाद होने वाले चुनाव को देखते हुए आदिवासी और धर्मांतरित आदिवासियों के वोटों के ध्रुवीकरण की साजिश की जा रही है।

कांग्रेस तो भाजपा पर सीधा आरोप लगा रही है कि भाजपा का विकास का मॉडल फेल हो गया है, इसलिए वह इसे धर्म का रंग देने की कोशिश कर रही है। वहीं, भाजपा पत्थलगड़ी करने वालों को राष्ट्र द्रोही बता रही है।

राज्य में पत्थलगड़ी की शुरुआत 22 अप्रैल को जशपुर जिले के बच्छरांव से हुई। पूर्व आईएएस एचपी किंडो व जोसेफ तिग्गा के नेतृत्व में गांव के बाहर पत्थर गाड़ा गया। इसके विरोध मे भाजपा ने 28 अप्रैल को आदिवासियों की पदयात्रा निकाली। इस दौरान गांव के बाहर गाड़े गए पत्थरों को तोड़ा गया। इससे दोनों तरफ से टकराव शुरू हो गया।

भाजपा प्रवक्ता शिवरतन शर्मा कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में गांव बांधने की परंपरा रही है। गांव के बाहर पत्थर के जरिए चौहदी बांधी जाती है। राजस्व विभाग भी चांदा या पत्थर गाड़ कर गांव की सीमा का निर्धारण करता है, लेकिन पत्थलगड़ी करने वाले सीधे संविधान को चुनौती दे रहे हैं।

यह काम वे लोग कर रहे हैं जिनकी लोकतंत्र में आस्था नहीं है। यह राष्ट्रद्रोह है। कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेष नीतिन त्रिवेदी कह रहे कि सरकार आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं कर पाई है। आदिवासियों को उनका हक और अधिकार नहीं मिल रहा है। सरकार अब पत्थलगड़ी को धर्म का रंग देने की गंभीर साजिश कर रही है। कांग्रेस पार्टी ने इसकी जांच के लिए कमेटी का गठन किया है। टीम ने शुक्रवार से काम शुरू कर दिया है।

पत्थलगड़ी को लेकर आदिवासियों में भी एक राय नहीं है। आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग है जो इसे गलत बता रहा है और खुद को इससे अलग किए हुए है। आदिवासी मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले विधिक विशेषज्ञ बीके मनीष इसे गैर कानूनी बता रहे हैं।

उन्होंने यहां तक कह दिया कि पत्थलगड़ी के पत्थरों पर लिखा जा रहा हर एक वाक्य गलत है। आदिवासियों का एक वर्ग मान रहा है कि इसके जरिए केवल राजनीतिक रोटी सेंकने की कोशिश हो रही है।

पत्थलगड़ी के विरोध में आदिवासियों का एक संगठन सर्व आदिवासी सनातन समाज उठ खड़ा हुआ है। कुनकुरी के भाजपा विधायक रोहित साय इस संगठन के मुखिया हैं। राज्य महिला आयोग की सदस्य रायमुनि भगत, जशपुर विधायक राजशरण भगत, जिला पंचायत अध्यक्ष गोमती साय समेत कई आदिवासी नेता इसमें शामिल हैं।

सर्व आदिवासी सनातन समाज के नेताओं ने पत्थलगड़ी को असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि ईसाई मिशनरियां पत्थलगड़ी के जरिए धर्मांतरण और संविधान की गलत व्याख्या कर आदिवासियों को बरगला रही हैं।

इधर, सर्व आदिवासी समाज ने भी जशपुर में चल रहे पत्थलगड़ी अभियान से कन्नी काट लिया है। पूर्व आइएएस और सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम कहा कि पत्थलगड़ी से उनके संगठन का कोई लेनादेना नहीं है। पत्थलगड़ी अभियान चला रहे लोग दूसरे हैं, उनके संगठन का नाम दूसरा है।

जशपुर जिले की तीन सीटों समेत सरगुजा संभाग की 13 में से करीब आधी विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पत्थलगड़ी अभियान चलाने वालों की अच्छी खासी जनसंख्या है। सबसे ज्यादा प्रभाव कुनकुरी, पत्थलगांव और लुंड्रा आदि सीटों पर हैं। यहां ये हार-जीत पर असर डाल सकते हैं। वहीं, राज्य की करीब दर्जनभर सीटें ऐसी हैं जहां यह वर्ग मतों के आंकड़ों पर असर डाल सकता है।

पत्थलगड़ी अभियान चलाने वाले संविधान का हवाला देते हुए ग्रामसभा को सर्वोपरि बता रहे हैं। इस अभियान के जरिए आदिवासी गांवों के बाहर एक पत्थर गाड़ा जा रहा है, जिस पर लिखा जा रहा है-भारत का संविधान। सर्वशक्ति संंपन्न ग्रामसभा। इस क्षेत्र में संविधान की पांचवीं अनुसूची लागू है। विभिन्न धाराओं का उल्लेख करते हुए कहा जा रहा कि इस सीमा में किसी भी गैर रुढ़ी प्रथा के व्यक्ति के मौलिक अधिकार लागू नहीं है। यानी उस क्षेत्र में ग्रामसभा की अनुमति के बिना आम आदमी ही नहीं शासन- प्रशासन के लोग भी प्रवेश नहीं कर सकते। यहां तक कि संसद या विधानसभा का भी कोई कानून लागू नहीं होगा।