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छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने की होड़ लगी हुई है। पहले चरण की 18 सीटों के लिए इस बार ज्यादा ही उम्मीदवार रुचि दिखा रहे हैं। नामांकनपत्र भरने के लिए एक प्रक्रिया होती है, जिसमें सभी जानकारी सही देनी होती है। लिखने में त्रुटि होने या गलत जानकारी देने से नामांकनपत्र खारिज हो जाता है। ऐसी स्थिति में उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ पाता। बीते दो विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जिन इलाकों को पढ़ा-लिखा माना जाता है, वहीं के नामांकनपत्र ज्यादा खारिज किए गए हैं।
इसके विपरीत जंगल इलाके की विधानसभा सीटों पर भरे गए ज्यादातर नामांकनपत्र ही पाए गए हैं। नामांकनपत्र सही तरीके से भरने के लिए चुनाव आयोग के अधिकारी हर जिले में राजनीतिक दलों की मीटिंग लेते हैं। इसके बाद भी बड़े शहरों के उम्मीदवार इसमें गलती कर रहे हैं। हर दल अपने वकील सदस्यों की मदद इसमें लेते हैं।
बस्तर की कोंटा और बीजापुर विधानसभा सीटों को दुर्गम इलाका माना जाता है। वहां शिक्षा के साधन भी मजबूत नहीं हैं। इसके बाद भी चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवार सही तरीके से नामांकन भरते हैं।
कोंटा में पिछले चुनाव में छह और 2008 के चुनाव में चार पर्चे भरे गए। इनमें से किसी का रद नहीं हुआ। इसी तरह बीजापुर में बीते चुनाव में सात प्रत्याशियों में से केवल एक का पर्चा रद हुआ। 2008 में यहां से दस पर्चे भरे गए और एक ही रद हुआ।
जगदलपुर और बस्तर सबसे कमजोर बस्तर संभाग में जगदलपुर और बस्तर सीट के उम्मीदवार इस काम सबसे कमजोर दिख रहे हैं। बीते चुनाव में जगदलपुर में 38 में से 18 पर्चे निरस्त कर दिए गए थे। बस्तर सीट का भी यही हाल रहा, वहां बीते चुनाव में 18 में से 11 पर्चे गलत पाए गए। पिछले चुनाव में चित्रकोट सीट से भी यह संयोग जुड़ा हुआ है। वहां 22 में से 14 रद हुए।
अहिवारा सीट के लिए बीते चुनाव में 29 नामांकन भरे गए थे, मगर इसमें 15 रद हो गए। भिलाई नगर सीट पर 2008 में 18 में से छह और पिछले चुनाव में 23 में से चार खारिज कर दिए गए थे। वैशालीनगर सीट के 2013 के चुनाव में 25 में से पांच और 2008 में 22 में से तीन रद हुए। दुर्ग ग्रामीण में खारिज पर्चे की संख्या तीन तक ही रही है। गुंडरदेही में पिछले चुनाव में 23 में से सात और संजारी बालोद में 15 में से पांच नामांकन बीते चुनाव में खारिज किए गए।
MadhyaBharat
23 October 2018
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