केरन सेक्टर के रास्ते भारत में घुसे 12 आतंकी
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नई दिल्ली। खुफिया एजेंसियों ने कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की नई साजिश का खुलासा किया है। ख़ुफ़िया अलर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान समर्थित 12 आतंकियों ने केरन सेक्टर के रास्ते भारत में घुसपैठ की है। ये जम्मू-कश्मीर के सोपोर और बांदीपुरा इलाके में छिपे हो सकते हैं। इनके पास सेटेलाइट फोन और हैंड ग्रेनेड भी हैं। पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ रोकने और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को कुचलने के लिए जम्मू-कश्मीर में 'काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस' के दौरान भारतीय सेना ने पिछले 20 सालों में हथियारों का बड़ा जखीरा बरामद किया है।

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की नई साजिश का पर्दाफाश करते हुए खुफिया एजेंसी ने अलर्ट जारी करके कहा है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के 12 आतंकवादी कश्मीर में घुसपैठ कर चुके हैं। देश की सीमा में मौजूद ये सभी 12 आतंकवादी पाकिस्तानी मूल के हैं। ये आतंकवादी जुमागुंड के जंगलों यानी केरन सेक्टर के रास्ते दो अलग-अलग समूहों में 13 और 14 फरवरी को भारत की सीमा में दाखिल हुए थे। खुफिया एजेंसियों ने यह भी खुलासा किया है कि पुलवामा का रहने वाला आतंकी कैसर अहमद डार और विदेशी आतंकी अबु साद पहले पुलवामा में छिपे हुए थे और 21 फरवरी को दोनों सोपोर इलाके में पहुंचे हैं।

देश की आजादी के बाद भारतीय सेना को पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। 1990 में कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाएं बढ़ने पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों को हटाकर भारतीय सेना ने कदम रखा। पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को कुचलने के लिए भारतीय सेना ने 1989-1990 से जम्मू-कश्मीर में इसलिए 'काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस' शुरू किये, क्योंकि पाकिस्तान ने एक छद्म युद्ध शुरू किया था। भारत में घुसपैठ कर रहे आतंकवादी और विदेशी भाड़े के लोग आधुनिक हथियारों से लैस थे और उन्हें प्रशिक्षित किया गया था।

इस आतंकरोधी ऑपरेशन में सेना की जम्मू-कश्मीर में स्थित दो कोर 15 और 16 को शामिल किया गया। 15वीं कोर का मुख्यालय श्रीनगर में है। इसमें पैदल सेना की दो डिवीजन और एक पर्वतीय डिवीजन शामिल हैं। 16वीं कोर का मुख्यालय जम्मू क्षेत्र के नगरोटा में है। इसमें पैदल सेना की तीन डिवीजन, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में दो पैदल सेना डिवीजन शामिल हैं। यह तोपखाने ब्रिगेड और तीन बख्तरबंद ब्रिगेड के साथ दुनिया की सबसे बड़ी सेना कोर है। यह जम्मू क्षेत्र में एलओसी और आईबी को कवर करती है। उधमपुर में स्थित सेना की 20वीं कमान को शुरू से ही आतंकवाद का मुकाबला करने का काम सौंपा गया था।

सेना की 14वीं कोर ने 1999 में कारगिल युद्ध के बाद इस ऑपरेशन को लद्दाख और कारगिल तक बढ़ाया। पूरे ऑपरेशन के दौरान नियंत्रण रेखा के करीब संघर्ष क्षेत्रों के 190 गांवों में रहने वाले 109,500 लोगों के लिए 276.08 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इसी का नतीजा रहा कि 2001-2002 के बाद से आतंकी घटनाओं के स्तर में लगातार गिरावट देखी गई। आतंकवादी घटनाओं में 2004 में 707 नागरिक, 976 आतंकवादी और 281 पुलिस और सैन्यकर्मी मारे गए। जो 2009 में 64 सुरक्षा कर्मियों, 78 नागरिकों और 239 आतंकवादियों तक आ गई।

अभी पिछले एक दशक के आंकड़ों का ब्योरा नहीं मिला है लेकिन 1990-2001 के बीच घुसपैठ में मारे गए आतंकियों से 3.36 मिलियन गोलियां बरामद की गईं हैं। जम्मू-कश्मीर में 1990-2010 तक आतंकवादियों के पास से 30,473 एके असॉल्ट राइफलें सेना ने अपने कब्जे में ली हैं। सेना के अनुसार 49,571 हथगोले, 5,122 माइंस, 474 एंटी टैंक माइंस, 25,750 किलो विस्फोटक, 4,771 किलो आरडीएक्स, 3,440 वायरलेस सेट, 15.59 किमी. कॉर्डेक्स वायर, 450 दूरबीन और 3.36 मिलियन गोलियां बरामद की गईं।

जम्मू-कश्मीर में 1990-2010 तक आतंकियों से बरामद हथियारों में 30,473 एके असॉल्ट राइफलें, 2,800 आरपीजी (प्लस 2,147 लॉन्चर), 1,308 मशीनगन, 77 कार्बाइन, 386 स्नाइपर राइफल्स और 11,189 पिस्तौल हैं। जम्मू-कश्मीर से 05 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद भारतीय सेना के 'काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस' में ज्यादा तेजी आई लेकिन 1990-2001 के बीच बड़े पैमाने पर आतंकरोधी अभियान चला। इस दौरान पाकिस्तान समर्थित आतंकियों को भारत में घुसपैठ के दौरान मारा गया और उनसे हथियारों का बड़ा जखीरा भी बरामद किया गया।