बेटियां बचाएं ,बेटों से पूछें कहाँ जा रहे हो
बेटियां बचाएं ,बेटों से पूछें कहाँ जा रहे हो
लालकिले से मोदी का सामाजिक स्टाइल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार फिर लोगों के दिल में घर कर गए। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश और दुनिया में फैले हुए सभी हिन्दुस्तानियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कहा मैं आपके बीच प्रधान मंत्री के रूप में नहीं, प्रधान सेवक के रूप में उपस्थित हूँ। देश की आज़ादी की जंग कितने वर्षों तक लड़ी गई, कितनी पीढ़ियाँ खप गईं, अनगिनत लोगों ने बलिदान दिए, जवानी खपा दी, जेल में ज़िन्दगी गुज़ार दी। देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाले समर्पित उन सभी आज़ादी के सिपाहियों को मैं शत-शत वंदन करता हूँ, नमन करता हूँ। मोदी ने कहा यह देश पुरातन सांस्कृतिक धरोहर की उस नींव पर खड़ा है, जहाँ पर वेदकाल में हमें एक ही मंत्र सुनाया जाता है, जो हमारी कार्य संस्कृति का परिचय है, हम सीखते आए हैं, पुनर्स्मरण करते आए हैं- “संगच्छध्वम् संवदध्वम् सं वो मनांसि जानताम्।” हम साथ चलें, मिलकर चलें, मिलकर सोचें, मिलकर संकल्प करें और मिल करके हम देश को आगे बढ़ाएँ। इस मूल मंत्र को ले करके सवा सौ करोड़ देशवासियों ने देश को आगे बढ़ाया है। कल ही नई सरकार की प्रथम संसद के सत्र का समापन हुआ। मैं आज गर्व से कहता हूं कि संसद का सत्र हमारी सोच की पहचान है, हमारे इरादों की अभिव्यक्ति है। हम बहुमत के बल पर चलने वाले लोग नहीं हैं, हम बहुमत के बल पर आगे बढ़ना नहीं चाहते हैं। हम सहमति के मजबूत धरातल पर आगे बढ़ना चाहते हैं। "संगच्छध्वम्" और इसलिए इस पूरे संसद के कार्यकाल को देश ने देखा होगा। सभी दलों को साथ लेकर, विपक्ष को जोड़ कर, कंधे से कंधा मिलाकर चलने में हमें अभूतपूर्व सफलता मिली है और उसका यश सिर्फ प्रधान मंत्री को नहीं जाता है, उसका यश सिर्फ सरकार में बैठे हुए लोगों को नहीं जाता है, उसका यश प्रतिपक्ष को भी जाता है, प्रतिपक्ष के सभी नेताओं को भी जाता है, प्रतिपक्ष के सभी सांसदों को भी जाता है और लाल किले की प्राचीर से, गर्व के साथ, मैं इन सभी सांसदों का अभिवादन करता हूं। सभी राजनीतिक दलों का भी अभिवादन करता हूं, जहां सहमति के मजबूत धरातल पर राष्ट्र को आगे ले जाने के महत्वपूर्ण निर्णयों को कर-करके हमने कल संसद के सत्र का समापन किया। भाइयो-बहनो, मैं दिल्ली के लिए आउटसाइडर हूं, मैं दिल्ली की दुनिया का इंसान नहीं हूं। मैं यहां के राज-काज को भी नहीं जानता। यहां की एलीट क्लास से तो मैं बहुत अछूता रहा हूं, लेकिन एक बाहर के व्यक्ति ने, एक आउटसाइडर ने दिल्ली आ करके पिछले दो महीने में, एक इनसाइडर व्यू लिया, तो मैं चौंक गया! यह मंच राजनीति का नहीं है, राष्ट्रनीति का मंच है और इसलिए मेरी बात को राजनीति के तराजू से न तोला जाए। मैंने पहले ही कहा है, मैं सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों, पूर्व सरकारों का अभिवादन करता हूं, जिन्होंने देश को यहां तक पहुंचाया। मैं बात कुछ और करने जा रहा हूं और इसलिए इसको राजनीति के तराजू से न तोला जाए। मैंने जब दिल्ली आ करके एक इनसाइडर व्यू देखा, तो मैंने अनुभव किया, मैं चौंक गया। ऐसा लगा जैसे एक सरकार के अंदर भी दर्जनों अलग-अलग सरकारें चल रही हैं। हरेक की जैसे अपनी-अपनी जागीरें बनी हुई हैं। मुझे बिखराव नज़र आया, मुझे टकराव नज़र आया। एक डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट से भिड़ रहा है और यहां तक‍ भिड़ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खट-खटाकर एक ही सरकार के दो डिपार्टमेंट आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं। यह बिखराव, यह टकराव, एक ही देश के लोग! हम देश को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? और इसलिए मैंने कोशिश प्रारम्भ की है, उन दीवारों को गिराने की, मैंने कोशिश प्रारम्भ की है कि सरकार एक असेम्बल्ड एन्टिटी नहीं, लेकिन एक ऑर्गेनिक युनिटी बने, ऑर्गेनिक एन्टिटी बने। एकरस हो सरकार - एक लक्ष्य, एक मन, एक दिशा, एक गति, एक मति – इस मुक़ाम पर हम देश को चलाने का संकल्प करें। हम चल सकते हैं। आपने कुछ दिन पहले... इन दिनों अखबारों में चर्चा चलती है कि मोदी जी की सरकार आ गई, अफसर लोग समय पर ऑफिस जाते हैं, समय पर ऑफिस खुल जाते हैं, लोग पहुंच जाते हैं। मैं देख रहा था, हिन्दुस्तान के नेशनल न्यूज़पेपर कहे जाएं, टीवी मीडिया कहा जाए, प्रमुख रूप से ये खबरें छप रही थीं। सरकार के मुखिया के नाते तो मुझे आनन्द आ सकता है कि देखो भाई, सब समय पर चलना शुरू हो गया, सफाई होने लगी, लेकिन मुझे आनन्द नहीं आ रहा था, मुझे पीड़ा हो रही थी। वह बात मैं आज पब्लिक में कहना चाहता हूं। इसलिए कहना चाहता हूं कि इस देश में सरकारी अफसर समय पर दफ्तर जाएं, यह कोई न्यूज़ होती है क्या? और अगर वह न्यूज़ बनती है, तो हम कितने नीचे गए हैं, कितने गिरे हैं, इसका वह सबूत बन जाती है और इसलिए भाइयो-बहनो, सरकारें कैसे चली हैं? आज वैश्विक स्पर्धा में कोटि-कोटि भारतीयों के सपनों को साकार करना होगा तो यह “होती है”, “चलती है”, से देश नहीं चल सकता। जन-सामान्य की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, शासन व्यवस्था नाम का जो पुर्जा है, जो मशीन है, उसको और धारदार बनाना है, और तेज़ बनाना है, और गतिशील बनाना है और उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं और मैं आपको विश्वास देता हूं, मेरे देशवासियो, इतने कम समय से दिल्ली के बाहर से आया हूं, लेकिन मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं कि सरकार में बैठे हुए लोगों का सामर्थ्य बहुत है – चपरासी से लेकर कैबिनेट सेक्रेटरी तक हर कोई सामर्थ्यवान है, हरेक की एक शक्ति है, उसका अनुभव है। मैं उस शक्ति को जगाना चाहता हूं, मैं उस शक्ति को जोड़ना चाहता हूं और उस शक्ति के माध्यम से राष्ट्र कल्याण की गति को तेज करना चाहता हूं और मैं करके रहूंगा। यह हम पाकर रहेंगे, हम करके रहेंगे, यह मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं और यह मैं 16 मई को नहीं कह सकता था, लेकिन आज दो-ढाई महीने के अनुभव के बाद, मैं 15 अगस्त को तिरंगे झंडे के साक्ष्य से कह रहा हूं, यह संभव है, यह होकर रहेगा। मोदी ने कहा आज जब हम बलात्कार की घटनाओं की खबरें सुनते हैं, तो हमारा माथा शर्म से झुक जाता है। लोग अलग-अलग तर्क देते हैं, हर कोई मनोवैज्ञानिक बनकर अपने बयान देता है, लेकिन भाइयो-बहनो, मैं आज इस मंच से मैं उन माताओं और उनके पिताओं से पूछना चाहता हूं, हर मां-बाप से पूछना चाहता हूं कि आपके घर में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां और बाप चौकन्ने रहते हैं, हर बात पूछते हैं कि कहां जा रही हो, कब आओगी, पहुंचने के बाद फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं, लेकिन क्या कभी मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां जा रहे हो, क्यों जा रहे हो, कौन दोस्त है? आखिर बलात्कार करने वाला किसी न किसी का बेटा तो है। उसके भी तो कोई न कोई मां-बाप हैं। क्या मां-बाप के नाते, हमने अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां जा रहे हो? अगर हर मां-बाप तय करे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी बेटों पर भी डाल करके देखो तो सही, उसे कभी पूछो तो सही।कानून अपना काम करेगा, कठोरता से करेगा, लेकिन समाज के नाते भी, हर मां-बाप के नाते हमारा दायित्व है। कोई मुझे कहे, यह जो बंदूक कंधे पर उठाकर निर्दोषों को मौत के घाट उतारने वाले लोग कोई माओवादी होंगे, कोई आतंकवादी होंगे, वे किसी न किसी के तो बेटे हैं। मैं उन मां-बाप से पूछना चाहता हूं कि अपने बेटे से कभी इस रास्ते पर जाने से पहले पूछा था आपने? हर मां-बाप जिम्मेवारी ले, इस गलत रास्ते पर गया हुआ आपका बेटा निर्दोषों की जान लेने पर उतारू है। न वह अपना भला कर पा रहा है, न परिवार का भला कर पा रहा है और न ही देश का भला कर पा रहा है और मैं हिंसा के रास्ते पर गए हुए, उन नौजवानों से कहना चाहता हूं कि आप जो भी आज हैं, कुछ न कुछ तो भारतमाता ने आपको दिया है, तब पहुंचे हैं। आप जो भी हैं, आपके मां-बाप ने आपको कुछ तो दिया है, तब हैं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, कंधे पर बंदूक ले करके आप धरती को लाल तो कर सकते हो, लेकिन कभी सोचो, अगर कंधे पर हल होगा, तो धरती पर हरियाली होगी, कितनी प्यारी लगेगी। कब तक हम इस धरती को लहूलुहान करते रहेंगे? और हमने पाया क्या है? हिंसा के रास्ते ने हमें कुछ नहीं दिया है। मोदी यहीं नहीं रुके उन्होंने समाज का सच बयां किया और कहा जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ रहा है, आधुनिकता का हमारे मन में एक भाव जगता है, पर हम करते क्या हैं? क्या कभी सोचा है कि आज हमारे देश में सेक्स रेशियो का क्या हाल है? 1 हजार लड़कों पर 940 बेटियाँ पैदा होती हैं। समाज में यह असंतुलन कौन पैदा कर रहा है? ईश्वर तो नहीं कर रहा है। मैं उन डॉक्टरों से अनुरोध करना चाहता हूं कि अपनी तिजोरी भरने के लिए किसी माँ के गर्भ में पल रही बेटी को मत मारिए। मैं उन माताओं, बहनों से कहता हूं कि आप बेटे की आस में बेटियों को बलि मत चढ़ाइए। कभी-कभी माँ-बाप को लगता है कि बेटा होगा, तो बुढ़ापे में काम आएगा। मैं सामाजिक जीवन में काम करने वाला इंसान हूं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं कि पाँच बेटे हों, पाँचों के पास बंगले हों, घर में दस-दस गाड़ियाँ हों, लेकिन बूढ़े माँ-बाप ओल्ड एज होम में रहते हैं, वृद्धाश्रम में रहते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं। मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं, जहाँ संतान के रूप में अकेली बेटी हो, वह बेटी अपने सपनों की बलि चढ़ाती है, शादी नहीं करती और बूढ़े माँ-बाप की सेवा के लिए अपने जीवन को खपा देती है। यह असमानता, माँ के गर्भ में बेटियों की हत्या, इस 21वीं सदी के मानव का मन कितना कलुषित, कलंकित, कितना दाग भरा है, उसका प्रदर्शन कर रहा है। हमें इससे मुक्ति लेनी होगी और यही तो आज़ादी के पर्व का हमारे लिए संदेश है ,अभी राष्ट्रमंडल खेल हुए हैं। भारत के खिलाड़ियों ने भारत को गौरव दिलाया है। हमारे करीब 64 खिलाड़ी जीते हैं। हमारे 64 खिलाड़ी मेडल लेकर आए हैं, लेकिन उनमें 29 बेटियाँ हैं। इस पर गर्व करें और उन बेटियों के लिए ताली बजाएं। भारत की आन-बान-शान में हमारी बेटियों का भी योगदान है, हम इसको स्वीकार करें और उन्हें भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ लेकर चलें, तो सामाजिक जीवन में जो बुराइयाँ आई हैं, हम उन बुराइयों से मुक्ति पा सकते हैं। इसलिए भाइयो-बहनो, एक सामाजिक चरित्र के नाते, एक राष्ट्रीय चरित्र के नाते हमें उस दिशा में जाना है। भाइयो-बहनो, देश को आगे बढ़ाना है, तो विकास - एक ही रास्ता है। सुशासन - एक ही रास्ता है। देश को आगे ले जाने के लिए ये ही दो पटरियाँ हैं - गुड गवर्नेंस एंड डेवलपमेंट, उन्हीं को लेकर हम आगे चल सकते हैं। उन्हीं को लेकर चलने का इरादा लेकर हम चलना चाहते हैं।