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छत्तीसगढ़ में खंड व अल्पवर्षा से 50 से अधिक तहसीलों में सूखे का खतरा मंडरा रहा है। कुछ तहसीलों में अतिवृष्टि से खरीफ फसल चौपट हो रही है। एक ही जिले में कहीं पर कम तो कहीं पर बारिश रिकॉर्ड की है। कृषि विभाग के अधिकारियों और कृषि मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि कमवर्षा या अतिवृष्टि दोनों ही स्थिति में खरीफ फसलों को बचाना एक चुनौती है। कम बारिश वाले इलाकों में सिंचाई बांधों से नहरों में पानी छोड़ने की जरूरत महसूस की जा रही है।
आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के एक दर्जन जिले ऐसे हैं, जहां की आधी तहसीलों में औसत से अधिक बारिश हुई है, वहीं आधी तहसीलों में औसत से कम बारिश दर्ज की गई है। सूरजपुर जिले की प्रतापपुर तहसील में अब तक 249 फीसदी औसत से अधिक बारिश हुई है, जबकि इसी जिले की रामानुजगंज व प्रेमनगर में 70 फीसद से भी कम बारिश रिकॉर्ड की गई है।
इसी तरह जशपुर जिले की बगीचा तहसील में इस मानसून सीजन में अब तक 225 फीसदी औसत वर्षा हुई है, जबकि इसी जिले की जशपुर में 69 व दुलदुला में 81 फीसदी बारिश ही हो पाई है। रायगढ़ जिले में भी यही स्थिति है, जहां की धरमजयगढ़ तहसील में अब तक 254 प्रतिशत, वहीं सारंगढ़ में 79 व बरमकेला में 81 प्रतिशत बारिश हुई है। कोंडागांव जिले की फरसगांव तहसील में जहां 152 फीसदी बारिश हो चुकी है, वहीं केशकाल में केवल 58 फीसदी बारिश हो सकी है। बीजापुर जिले की उसूर तहसील में औसत 213 फीसदी, जबकि बीजापुर में सिर्फ 83 फीसदी बारिश रिकॉर्ड की गई है। प्रदेश में अन्य जिलों में ही यही हालात हैं।
कम वर्षा वाले इलाकों में फसलों को चूहों से नुकसान का खतरा है। कृषि वैज्ञानिकों तथा कृषि विभाग के अधिकारियों ने विशेष कृषि बुलेटिन में फसलों को चूहों से बचाने के लिए विशेष निगरानी करने की सलाह दी है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि फसलों को चूहों के प्रकोप से बचाव के लिए खेतों की मेड़ों को साफ रखना जरूरी है। फिर भी चूहों का प्रकोप अधिक दिखाई दे तो वहां सबसे पहले बिलों को तत्काल बंद कर दें। उसके बाद लगातार सुबह बिलों को खोलकर कनकी, सरसों तेल मिलाकर डालना चाहिए और जिंक फास्फाईड, सरसों तेल व कनकी को मिलाकर छोटे-छोटे लड्डू बनाकर चूहों के बिलों में डालने का सुझाव दिया गया है।
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि कम बारिश वाले क्षेत्रों में धान फसल में कटुआ कीट की संभावना बढ़ गई है। धान के सूखे खेतों में कटुआ इल्ली दिखाई देने पर तत्काल दवा छिड़कना जरूरी है। जिन खेतों में पानी भरा है और वहां कटुआ इल्ली का प्रकोप दिख रहा है, तो वहां एक एकड़ रकबे में एक लीटर मिट्टी तेल खेत के पानी में डालें। इसके बाद धान के पौधों के ऊपर रस्सी चलाएं, ताकि इल्लियां मिट्टी तेलयुक्त पानी में गिरकर नष्ट हो जाएं।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे क्षेत्रों जहां पानी कम गिरा है और खरीफ फसलों की बोआई नहीं हो पाई है, वहां रामतिल व कुल्थी बोना फायदेमंद होगा। सोयाबीन में पत्ती खाने वाले कीड़े दिखने लगे हैं। इन पर ट्राईजोफास और फ्लूबेंडामाईड का घोल का छिड़काव करना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने उमस भरे इस मौसम में रोपा धान की भी सतत् निगरानी की सलाह किसानों को दी है।
कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में खरीफ फसलों के लिए निर्धारित लक्ष्य के विरूद्घ 93 प्रतिशत रकबे में बोनी पूरी हो चुकी है। इस साल 48 लाख 10 हजार हेक्टेयर में अनाज, दलहनी, तिलहनी और साग-सब्जी बोने का कार्यक्रम है। अब तक 44 लाख 61 हजार हेक्टेयर में विभिन्न फसलों की बोआई पूरी हो चुकी है। 35 लाख 66 हजार हेक्टेयर में धान बोई जा चुकी है, जबकि 36 लाख 36 हजार हेक्टेयर में धान बोने का लक्ष्य है।
कृषि वैज्ञानिक प्रो जे एल चौधरी ने कहा प्रदेश में हर साल कहीं कम तो कहीं पर अधिक वर्षा हो रही है। यह चिंता का विषय है। राजनांदगांव व कबीरधाम जिले में वृष्टि छाया के कारण कम बारिश होती है। खंडवर्षा या अतिवृष्टि होने पर खरीफ फसलों को बचाना चुनौतीपूर्ण है।
कृषि संचालक एमएस केरकेट्टा ने बताया प्रदेश में फिलहाल औसत बारिश हुई है। कुछ तहसीलों में कम तो कुछ तहसीलों में अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई है। महासमुंद जिले सहित अन्य क्षेत्रों में जहां कम बारिश हुई है, वहां खरीफ फसल को बचाने के लिए सिंचाई बांधों से पानी छोड़ने की जरूरत महसूस की जा रही है। किसानों को भी स्वयं के साधन से सिंचाई व्यवस्था करने की सलाह दी गई है।
MadhyaBharat
25 August 2016
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