मध्यप्रदेश की सियासत -यहां सब शरीक-ए-जुर्म हैैं....
mp ki siyast

 

मध्यप्रदेश की सियासत का सीन कुछ ऐसा है कि इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीक-ए-जुर्म हैैं, कोई जमानत पर है या फरार... क्या सत्ता, क्या सत्ताधारी दल, क्या प्रतिपक्ष और क्या नौकरशाह। सब एक ही तराजू पर तुल रहे हैैं। कभी-कभी अलबत्ता मीडिया थोड़ा खबरों का तड़का लगाता है जो मौजूदा  हालात में कई दफा नाकाफी नजर आता है। ऐसे नाउम्मीदी के माहौल में हुकूमत के भीतर से जो आवाजें आनी शुरू हुई हैैं उसके कई मायने निकाले जा रह हैैं। ऐसा लगता है विपक्ष की भूमिका भी भाजपा के नेता अदा करेंगे। हालांकि यह सीधे तौर पर प्रमुख प्रतिपक्ष कांग्र्रेस का अनादर है। इसे कांग्र्रेस स्वीकार भी नहीं करेगी। मगर हकीकत कुछ ऐसी ही है। लगातार सत्ता में बने रहने वाले नेताओं में उकताहट और ऊब की मानसिकता भी घर कर रही है। आखिर नया-नया क्या.... क्या और कैसे- कैसे करें...? सरकार चलाने वालों की भी तो दिक्कतें हैैं।

कहावत है तवे पर से रोटी पलटोगे नहीं तो जल जायेगी, पान उलटोगे नहीं तो गल जायेगा बगैरह...बगैरह। नौकरशाही का घोड़ा तो बेलगाम होने पर आनंद महसूस करता है और उसके सवार उसे काबू में करने के नुस्खे नहीं जान पाये तो फिर आम जनता का कचरा होना तय समझिये। भाजपा, संघ परिवार से लेकर बहुत से मंत्रियों तक से जो कुछ कहा जा रहा है उसका मतलब साफ है कि उच्च स्तर पर कुछ न कुछ निर्णय कर लिया गया है। अब उस फैसले को लागू करने के लिये लगता है माहौल बनाने का दौर शुरू हो गया है।

मसलन, बेकाबू भ्रष्टाचार, नौकरशाही की नाफरमानियां, कार्यकर्ताओं में असंतोष,  बार-बार पार्टी के काडर की अनदेखी होना। ये सब ऐसे कारण हैैं जिनसे  सरकार व संगठन दोनों की फजीहत हो रही है। इसलिये लगता है संघ परिवार ने मध्यप्रदेश पर इन दिनों सबसे ज्यादा फोकस किया है। वैसे भी यह सूबा साफ्ट स्टेट में आता है। आप राजनीतिक प्रशासनिक क्षेत्र में बतौर प्रयोग जो मर्जी आये करें मजाल है कोई चूं बोल दे। बशर्ते उसकी जान न जाये बस। अब हालात यह हैैं कि चूंकि संघ ने कमान धीरे-धीरे कसना शुरू किया है तो नतीजे आयेंगे। समन्वय के नाम पर सत्ता संगठन के साथ संघ प्रमुखों की बार-बार बैठकें बताती हैैं मसला गंभीर है। बैठक में राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय  ने अधिकारी 25 प्रतिशत  कमीशन लेते हैैं ऐसा कह सबके मन की बात बयां कर दी है। उन्होंने बता दिया कि अफसर भ्रष्टतम हो रहे हैैं और सरकार उन्हें काबू में करने में विफल  हो रही है। इस तरह की बात मीडिया में आने के बाद दिखाने के लिये भी न तो किसी भाजपा नेता ने इसका खंडन किया और न कैलाश को सफाई देने के लिये कहा गया। मतलब शिव सरकार के मामले में संघ परिवार और संगठन  के ख्याल अच्छे नहीं हैैं। अभी यह मसला ठंडा भी नहीं हुआ था कि इंदौर में मेट्रो ट्रेन के मुद्दे  पर कैलाश ने फिर नौकरशाही की आड़ में सरकार को टारगेट किया। सीएम के सपनों में रहने वाले इंदौर में अफसरों के काम की रफ्तार ऐसी है कि यहां मेट्रो नहीं बैलगाड़ी आयेगी। भाजपा नेताओं के साथ कई मंत्री भी नौकरशाही के अडिय़लपन से परेशान हैैं। गोलाबारी भले ही प्रशासन में भ्रष्टाचार और उनकी गति को लेकर हो रही हो मगर लहुलुहान तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही हो रहे हैैं।

भाजपा के जानकार मानते हैैं कि सरकार को लेकर  उच्च स्तर पर कुछ न कुछ निर्णय हुआ है। समय आने पर सामने आयेगा। फिलहाल सरकार में मंत्रियों, अफसरों की कार्यशैली पर कांग्र्रेस से ज्यादा एतराज भाजपा और संघ की तरफ से आ रहा है। प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश संगठन मंत्री  सुहास भगत के साथ अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, कुछ केंद्रीय मंत्री भी  अपनी सरकार के दोषों पर एक राय हो गये हैैं। संघ के सह करकार्यवाह भैया जी जोशी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में जो कुछ मंत्रियों, सांसद, विधायकों व पदाधिकारियों ने कहा उससे यह साफ हो गया है कि जो कुछ बयान आ रहे हैैं वे भी उनसे अहसमत नहीं हैैं। मतलब कोई खिचड़ी पक चुकी है। प्रेशर कुकर में अभी दबाव बनाया जा रहा है ताकि जो सियासत हो रही है उससे प्रेशर कुकर फटे उसके पहले कुछ ऐलान किया जा सके।

अजगर करे न चाकरी....

इधर कांग्र्रेस भाजपा के भीतर असंतोष को देखते हुये ठंडेपन की रणनीति बदलने के मोड़ पर आ रही है। चुनाव से ढाई साल पहले उसने अपनी कमजोर कडिय़ों की तरफ देखना शुरू किया है जिन विधानसभा सीटों पर उसने 5-6 हजार मतों से मात खाई थी उन्हें वह मजबूत करने की कोशिश की मगर उसके प्रयास जब तक  जमीन न दिखें तब तक बातें हैैं बातों का क्या..?

कांग्र्रेस के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह चुनाव के एक साल पहले सक्रिय होती है। उसके पहले तो वह... अजगर करें  न चाकरी और पंछी करें न काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम...। कांग्र्रेस की हालत यह है कि बैठे हैैं किनारे पर कभी तो लहर आयेगी... कांग्र्रेसी कहते हैैं लहर आयेगी नहीं तो क्या चौथी बार भी भाजपा के पास थोड़ी जायेगी। कांग्र्रेस तो भाजपा में आ रही असंतोष की लहर से उत्साहित है। वैसे कहा जाये तो प्रदेश की राजनीति में सब जमानत पर  हैैं या फरार.... बहुत हद तक मीडिया भी इसमें शरीक है....