सती के दांत गिरे थे इसलिए नाम पड़ा दंतेश्वरी
सती के दांत गिरे थे इसलिए नाम पड़ा दंतेश्वरी

52 शक्तिपीठ में से एक है दंतेवाड़ा

संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 84 और रायपुर से 384 किमी दूर माई दंतेश्वरी का मंदिर है। मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में चालुक्य राजाओं ने दक्षिण भारतीय मंदिरों की वास्तुकला से बनावाया था। माईजी की प्रतिमा काले ग्रेनाइट पत्थर की बताई जाती है। मंदिर चार भागों में बंटा हुआ है।

जिसमें गर्भ गृह, जहां प्रतिमा स्थापित है। इसके बाद महामंडप, मुख्य मंडप और सभा मंडप है। गर्भ गृह और महा मंडप का निर्माण एक ही पत्थर के टूकड़ों से किया गया है। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरूड़ स्तंभ हैंं। जिसे श्रद्धालु पीठ की ओर से बांहों में भरने की कोशिश करते हैं। मान्यता है कि जिसके बांहों में स्तंभ समा जाता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है।

दंतेवाड़ा देवी दंतेश्वरी को समर्पित है। देश के 52 शक्तिपीठों में से एक यह भी है। यह स्थानीय लोगों की आराध्य देवी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार देवी सती के दांत यहां गिरने से इसका नाम दंतेश्वरी शक्तिपीठ पड़ा। पौराणिक कथाओं के अनुसार काकतीय वंश के राजा अन्न्म देव और बस्तर राज परिवार की यह कुल देवी है। बताया जाात कि राजा अन्न्म देव को यहां आए तब देवी दंतेश्वरी ने दर्शन देकर वरदान किया कि जहां तक वह जाएगा, वहां तक देवी उसके साथ चलेगी और उसका राज्य होगा।

साथ ही पीछे मुड़कर नहीं देखने की सलाह भी दी थी। कथाओं के अनुसार राजा कई दिनों तक बस्तर क्षेत्र में चलता रहा और देवी उसके पीछे रही। जब शंकनी-डंकनी नदी के पास पहुंचे तो नदी पार करते समय राजा को देवी के पायल की आवाज सुनाई नहीं दी। तब राजा पीछे मुड़कर देखा और देवी वहीं ठहर गई। इसके बाद राजा ने वहां मंदिर निर्माण कर नियमित पूजा-आराधना करने लगा। आज भी राज परिवार के सदस्य दंतेश्वरी माई की पूजा करने आते हैं।

माईजी के मंदिर नवरात्र के अलावा पूरे साल भर पूजा-अनुष्ठान होते हैं। मंदिर में आत्मिक शांति और सुकुन मिलता है। श्रद्धालुओं को विश्वास है कि उनकी हर मनोकामना माईजी पूरी करते हैं।