गलतबयानी करने वाले कॉलेज प्रचार्य पर जुर्माना
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शैफाली गुप्ता 

मध्यप्रदेश  राज्य सूचना आयोग ने कालेज प्राचार्य को गलतबयानी के लिए फटकार लगाते हुए सूचना के अधिकार के उल्लंघन का दोषी करार दिया है और उनके विरूध्द दस हजार रू. के जुर्माने का दंडादेष पारित किया है । शासकीय छत्रसाल महाविद्यालय, पिछोर (षिवपुरी) के प्रभारी प्राचार्य डा. के. के. चतुर्वेदी को आदेश  दिया गया है कि अर्थदंड की राषि एक माह में आयोग में जमा कराएं । 

राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इस मामले में दायर अंतिम अपील की 3 बार सुनवाई करने के बाद पारित आदेष में कहा कि लोक सूचना अधिकारी/प्रभारी प्राचार्य ने अपीलार्थी को उपलब्ध वांछित सूचना देने में हीलहवाला कर सूचना के अधिकार के प्रति इरादतन असद्भाव प्रदर्षित किया, अपीलार्थी व प्रथम अपीलीय अधिकारी को ही नहीं, बल्कि आयोग को भी गलत व भ्रामक जानकारी देकर जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया और प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेष का ही नहीं, अपितु आयोग के आदेष का भी पालन नहीं किया /यही नहीं,  पर्याप्त समय, अवसर व चेतावनी देने के बाद भी प्रभारी प्राचार्य आयोग द्वारा उनके विरूध्द जारी कारण बताओ नोटिस की सुनवाई में उपस्थित नहीं हुए और कारण बताओ नोटिस का उत्तर भी प्रस्तुत नहीं किया । लोक सूचना अधिकारी यह सिध्द करने में विफल रहे कि उनके द्वारा आवेदन का युक्तियुक्त रूप से निर्दिष्ट अवधि में निराकरण किया गया । 

यह था मामला: अपीलार्थी अतुल गुप्ता ने आवेदन दि. 13/03/15 में लोक सूचना अधिकारी/प्रभारी कालेज प्राचार्य से षिक्षक दैनंदिनी, हाजिरी रजिस्टर व सी.सी.ए. के अंकपत्रक की जानकारी मांगी थी । प्रभारी प्राचार्य ने पहले इसे पर पक्ष की निजी व गोपनीय जानकारी बताकर पर पक्ष की असहमति के आधार पर देने से इंकार किया । जबकि प्रदत्त किए जाने हेतु रेकार्ड उपलब्ध था जो लोक दस्तावेज की श्रेणी में आता है । फिर प्रथम अपील की सुनवाई में प्रभारी प्राचार्य ने यह कहकर जानकारी देने में असमर्थता जता दी कि षिक्षक दैनंदिनी व हाजिरी रजिस्टर संबंधी रेकार्ड दीमक लग जाने के कारण मुख्य लिपिक द्वारा दि. 22/04/15 को जला दिया गया । अतः रेकार्ड उपलब्ध नहीं है। 

प्रभारी प्राचार्य ने तब अपीलीय अधिकारी को यह नहीं बताया कि उन्होने ही दीमक प्रभावित रेकार्ड की सूची का अवलोकन कर मुख्य लिपिक को रेकार्ड नष्ट करने हेतु निर्देषित किया था । प्रभारी प्राचार्य ने यह तथ्य तब भी प्रकट नहीं किया जब अपीलीय अधिकारी ने उन्हें निर्देषित किया कि वे मुख्य लिपिक से जानकारी लें कि उन्होने किस दिनांक को, किसके आदेष से, कौन-कौन सा रेकार्ड नष्ट किया । जबकि प्रभारी प्राचार्य ने आयोग के समक्ष स्वीकार किया कि उन्होने ही रेकार्ड सूची का अवलोकन कर रेकार्ड तत्काल नष्ट करने का निर्देष दिया था । 

गलत बयानी:प्रभारी प्राचार्य ने सी.सी.ई. संबंधी जानकारी देने से यह कह कर इंकार कर दिया था कि विश्वविद्यालय  के नियमानुसार यह जानकारी विश्वविद्यालय को भेज दी  जाती है। उसे कालेज में रखने का प्रावधान नहीं है। इस पर अपीलीय अधिकारी ने प्राचार्य को निर्देषित किया कि वे  विश्वविद्यालय के उस नियम की प्रति अपीलार्थी को उपलब्ध कराएं जिसके तहत सी.सी.ई. रेकार्ड कालेज में रखने का प्रावधान नहीं है। पर प्रभारी प्राचार्य ने इस आदेश  का भी पालन नहीं किया । वे उनके द्वारा अपीलार्थी व प्रथम अपीलीय अधिकारी को दी गई इस जानकारी की सत्यता सिध्द करने में भी विफल रहे कि  विश्वविद्यालय के नियमानुसार सी.सी.ई. का रेकार्ड कालेज में 6 माह तक ही रखा जाता है । उसके बाद विष्वविद्यालय को भेेज दिया जाता है । उसके बाद यह रेकार्ड कालेज में रखने का कोई प्रावधान नहीं है । अंततः प्रभारी प्राचार्य ने विलंब से अपीलार्थी को सी.सी.ई. की वह जानकारी उपलब्ध करा दी जिसे उन्होंने अनुपलब्ध बताकर देने से इंकार कर दिया था । किन्तु अपीलार्थी षिक्षक दैनंदिनी व हाजिरी रजिस्टर की वह जानकारी प्राप्त करने से वंचित रह गया जो उस समय उपलब्ध थी और जिसे जानकारी देने की 30 दिन की समय सीमा खत्म होने के बाद जलाया गया । 

विधि विरूध्द कृत्य:आयोग के अनुसार उक्त जानकारी लोक दस्तावेज की श्रेणी में आती है जिसे पर पक्ष की निजी व गोपनीय जानकारी बताकर देने से इंकार किया जाना विधि विरूध्द था । प्रभारी प्राचार्य द्वारा कारण बताओ नोटिस का उत्तर पेश  करने के लिए डेढ़ माह का अतिरिक्त समय मांगा गया । इस पर आयुक्त आत्मदीप ने उन्हे इससे अधिक करीब 2 माह का समय देते हुए अगली पेषी पर जवाब पेश  करने का आदेश  दिया । पर प्रभारी प्राचार्य न अगली पेशी  पर हाजिर हुए, न इसका कोई कारण बताया और न ही कारण बताओ सूचना पत्र का उत्तर प्रेषित किया । उन्होने आयोग का आदेश  प्राप्त न होने की भी गलत जानकारी दी जबकि उनके कार्यालय द्वारा आयोग का आदेश प्राप्त होने की पुष्टि की गई ।