सरपंच मोना कौरव का विधानसभा में सम्मान
सबसे कम उम्र की सरपंच मोना कौरव ने साबित कर दिखाया है की उम्र प्रतिभा की मोहताज नहीं होती है । उत्कृष्ट कार्य करने के लिए मोना का विधानसभा में सम्मान किया गया है। साथ ही वे भोपाल में आयोजित पंच-सरपंच सम्मेलन में शामिल होने भोपाल पहुंचीं।भ्रष्टाचार के खिलाफ बनी व्हिसिल ब्लोअर21 साल की मोना वर्तमान में राजधानी के नूतन कॉलेज में फाइनल ईयर की छात्रा हैं। उनकी पढ़ाई अपने ननिहाल और नरसिंहपुर जिले के ग्राम सदुमर में हुई। मोना के गांव का सचिव मृतकों के नाम की पेंशन निकालकर हड़प लेता था। जब यह बात मोना की जानकारी में आई, तो वो ग्रामीणों को लेकर कलेक्टर ऑफिस पहुंचीं और सचिव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। जिसके बाद मोना की गांव में एक अलग ही पहचान हो गई। इस साल फरवरी में जब पंचायत चुनाव का समय आया और सदुमर सीट महिला के लिए आरक्षित हुई तो कुछ ग्रामीणों ने मोना के मामा के सामने उसे चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव रखा। इसे उन्होने स्वीकार कर लिया। हालांकि चुनाव लड़ना औरज जीतना आसान भी नहीं था। मोना के खिलाफ चुनाव दो अन्य उम्मीदवारों के अलावा एक नजदीकी रिश्तेदार भी खड़ी हो गई। विरोधियों ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। बस फिर क्या था। चुनाव होने तक हर दिन झगड़े होने शुरु हो गए। एक दिन तो गोलियां भी चल गई, लेकिन किसी को लगी नहीं। तनाव बढ़ता देख जिला प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी। वोटिंग के बाद कॉउंटिंग गांव में नहीं कराकर तेंदुखेड़ा विधानसभा में कराई गई। इसमें मोना 108 वोटों से विजयी घोषित कर दी गई। मोना के पिता पेशे से किसान हैं।मोना ने सरपंच बनने के बाद से गांव की बेटियों को बचाने के लिए विशेष अभियान चला रखा है। वो अपना एक महीने का मानदेय उस परिवार को दे देती हैं जिनके घर बेटी का जन्म होता है। साथ ही जब बेटी को जन्म के बाद पहली बार गांव में लाते हैं तो उसका गांव के प्रवेश द्वार पर ढोल-ढमाके से स्वागत होता है और पूरे गांव में मिठाई बांटी जाती है। इसके अलावा वो समाधान अभियान भी चला रही हैं। इसके तहत वो घर घर जाकर लोगों से उनकी समस्या पूछती हैं। फिर उनका समाधान करती हैं। मोना के मुताबिक उनकी फाइनल इयर की पढ़ाई पूरी होने में अभी छह महीने शेष हैं फिर वो अपने गांव जाकर ही लोगों की समस्या हल करेंगी। तब तक वो हर सप्ताह के अंत में गावं जाकर लोगों की समस्या हल करती हैं।