दलित अब मांगने वाला नहीं देने वाला
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राष्ट्रीय विमर्श  लोकमंथन में मिलिंद काम्बले 

राष्ट्रीय विमर्श \'लोक-मंथन\' के दूसरे दिन दलित इंडियन चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के प्रमुख  मिलिंद कांबले ने \'राष्ट्रीय अस्मिता और अन्य पहचानों का समायोजन\' विषय पर नैमिषारण्य सभागृह में हुए विमर्श में कहा कि दलित अब मांगने वाला नहीं देने वाला बन रहा है। हमारे संगठन का ध्येय सवा लाख नए उद्यमी खड़े करने का है। इसके लिए हमें समूचे समाज का सहयोग चाहिए।

श्री कांबले ने कहा कि डा. बाबा साहेब आंबेडकर ने विषमता के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इस तरह के संघर्ष हुए हैं। साउथ अफ्रीका और अमरीका में हुए संघर्षों ने अश्वेतों को नया रास्ता दिखाया। मार्टिन लूथर किंग, नेलसन मंडेला जैसे नायक हमें रास्ता दिखाते हैं। श्री कांबले के अनुसार हर समुदाय की अपनी विशेषताएँ और सपने होते हैं। भारत के संदर्भ में हमने खुद को साबित किया है। भारत के विकास में दलित और आदिवासी समुदाय ने बहुत योगदान दिया है।

श्री कांबले का कहना था कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दलितों की समस्याओं को सही संदर्भ में पहचाना है और वे उनके आर्थिक उन्नयन के लिए नई-नई योजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान दे रहे हैं। देश में आज लगभग 19 करोड़ दलित और आदिवासी नौजवान हैं, जो 18 से 35 वर्ष की आयु के हैं। इस युवा पीढ़ी के सपने और आकांक्षाएँ बहुत अलग हैं। उन्होंने कहा कि दलित समाज के बौद्धिक इसे नहीं समझ पा रहे हैं, जबकि युवाओं को पता है समन्वय से ही विकास संभव है। श्री कांबले ने बाबा साहेब आंबेडकर को एक आर्थिक विचारक बताते हुए कहा कि उन्होंने हमें आर्थिक सशक्तीकरण का रास्ता दिखाया। बाबा साहेब का कहना था कि हर दस साल में करेंसी बदल दी जाए। मोदीजी ने उनके विचारों का आदर करते हुए 500 और 1000 के नोट बदलने का फैसला लिया है। उनका कहना था कि उनका संगठन एक सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट है, जो दलितों और आदिवासी समाज से नायक तलाश रहा है। बाबा साहेब ने समाज में आरक्षण से अपना स्थान नहीं बनाया बल्कि उन्होंने अपने समाज के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। हम उनकी प्रेरणा से अब नौकरी मांगने वाले नहीं बल्कि देने वाले बन रहे हैं।

सत्र के अध्यक्ष विचारक और राजनीति विज्ञानी प्रो. अशोक मोडक ने कहा कि इस विमर्श सत्र में तारेक फतेह का भाषण सुनकर उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम की याद आ गयी। डा. कलाम कहते थे मैं रामेश्वरम् का हूँ और मेरा पूरा परिवार राम को अपना पूर्वज मानता है। उन्होंने कहा कि एक तरफ ऐसे विचारक हैं जिन्हें भारत की परंपरा पर गर्व है तो दूसरी ओर ऐसे विचारक भी हैं जो देश तोड़कों को नायक के रूप में स्थापित कर रहे हैं। डा. मोडक ने कहा हमें किसी विचार और पंथ को स्वीकार करने में संकट नहीं है। हमारी संस्कृति ही समावेशी है। हम किसी पर कोई शर्त नहीं थोपते। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि यहाँ पर रहने वाला हर नागरिक कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस देश की माटी के प्रति प्रतिबद्ध रहे। भारतीयता पर श्रद्धा ही एकात्मता का निर्माण करेगी। उन्होंने कहा कि भारत को नेतृत्व की भूमिका में लाने की शर्त है कि हम हमारी संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करें।

श्री तारेक फतेह ने कहा कि पहला सवाल यह कि हम कौन है। हम में से हर एक की आँख, अंगूठा निशान अलग-अलग है। यही दुनिया में वजूद की कीमत है। इसके इर्द-गिर्द ही समाज बनता है। ये दरिया, ये पहाड़, ये जमीन और उसमें रहने वाली हमारी सभ्यता हमने नहीं बनाई, हमें विरासत में मिली है।

श्री फतेह ने कहा कि हमें हमारे दोस्त और दुश्मन की पहचान होना चाहिए। जब तक आप इसे नहीं समझोगे पठानकोट होते रहेंगे। अपनी कमजोरियों को भी जानिए। स्वीडन हो या कनाडा या अन्य पश्चिमी देश वहाँ गरीब-अमीर का भेद नहीं होता। आप ड्रायवर के साथ बैठकर तो देखिए। आप मर्सिडीज़ में पीछे घटिया सीट पर फक्र के साथ बैठते हैं और वह शहंशाह की तरह आगे बैठकर गाड़ी चलाता है। आप उसके साथ नहीं बैठते। इस कमजोरी को दूर करना पहले जरूरी है। जब जर्मनी में रहने वाला जर्मन, रूस में रहने वाला रसियन, चीन में रहने वाला चीनी, जपान में रहने वाला जापानी तो हिन्दुस्थान में रहने वाला हिन्दू नहीं तो क्या? यह हिन्दुस्थान ही है जिसने ईरान से आए पारसी, फारस से आए दाउदी बोहरा, फिलिस्तीन से आये यहूदी, सबको अपने में समेटा। आप समझ लें कि जब तक पाकिस्तान मौजूद है अमन नसीब नहीं होगा। बलूचों की मदद के लिए खड़े हुए हैं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी। बगैर दुश्मनी किए यह साफ समझ लें कि अपनी पहचान पर हमला करने वाले की इज्जत नहीं करना।