हजारों मजदूर हो गए बेरोजगार
नई कस्टम मिलिंग नीति के विरोध में बिलासपुर जिले की 103 राइस मिलें बंद हैं। इसकी वजह से 35 हजार मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। इधर फेडरेशन ऑफ राइस मिल एसोसिएशन ने साफ किया है कि मांगें पूरी होने तक मिलें बंद रहेंगी।
प्रदेश के राइस मिलरों ने राज्य शासन की वर्ष 2016-17 की कस्टम मिलिंग नीति के विरोध में 10 नवंबर से राइस मिलों को बंद कर दिया है। शुक्रवार को दूसरे दिन ही जिले में बंद का असर दिखाई दिया। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मजदूरों पर पड़ा है। जिले की 103 राइस मिलों से 35 हजार मजदूरों की रोजी-रोटी चलती है। मिल बंद होने से ये मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। यदि हड़ताल लंबी चलती है तो मजदूर मुश्किल में आ जाएंगे।
जिला राइस मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष भोलाराम मित्तल ने बताया कि नई कस्टम मिलिंग नीति में प्रति बारदाने का मूल्य 32.52 रुपए तय है। इसकी वजह से मिलरों का खर्च बढ़ गया है। 13 रुपए के बारदाने के लिए मिलर्स को 20 रुपए अतिरिक्त देना पड़ रहा है। मिलर्स पिछले 15 साल से कस्टम मिलिंग की दर बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। हर साल विद्युत शुल्क, परिवहन व्यय, मिल मशीनरी के रख-रखाव, वेतन और अन्य खर्चे बढ़ते जा रहे हैं।
इसके बाद भी मिलिंग की दर में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। साथ ही अरवा की कस्टम मिलिंग के लिए पहले दो महीने तक मिलिंग चार्ज 40 रुपए से घटाकर 25 रुपए कर दिया गया है। जबकि पिछले साल मिलिंग चार्ज शुरू से 40 रुपए निर्धारित किया गया था। इसकी वजह से मिलरों को काफी घाटा हो रहा है।
राइस मिल के बंद होने का असर अन्य उद्योग धंधों पर भी पड़ेगा। इसकी वजह से पावर प्लांट सबसे अधिक प्रभावित होंगे। पावर प्लांट में लगातार भूसे की आवश्यकता पड़ती है। राइस मिल से भूसे की सप्लाई होती है। इसी तरह सालवेंट प्लांट(काढ़ा का तेल), कनकी-खंडे का व्यापार, पोल्ट्री फार्म पर आने वाले कुछ दिनों में असर पड़ने लगेगा।
मिलरों की अन्य मांग में परिवहन दर की विसंगति दूर करना शामिल है। राज्य शासन ने आश्वासन देने के बाद भी इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया। मिलर्स को लोडिंग में होने वाला नुकसान अपने स्टॉक से पूरा करना पड़ता है। इसलिए मंडी शुल्क और वेट शुल्क में छूट देने की भी मांग रखी गई है।