नोटबंदी ने शहडोल और नेपानगर उपचुनाव का रंग फीका कर दिया है। चुनावों में भाजपा और कांग्रेस फंड की परेशानी से गुजर रहे हैं। 500 और 1000 के नोट गैरकानूनी होने से राजनीतिक दल न तो कार्यकर्ताओं को छोटे खर्च के लिए पैसा दे पा रहे हैं और न ही फ्लैक्स और होडिंग्स पर राशि खर्च कर पा रहे हैं। नोटबंदी ने राजनीतिक दलों को चुनाव खर्च के हिसाब-किताब में उलझा कर रख दिया है। छोटे शहरों और कस्बों में राजनीतिक दलों से कोई बड़े नोट नहीं ले रहा है, जबकि पार्टी मुख्यालयों से जो पैसा चुनाव खर्च के लिए आया है वह पांच सौ और एक हजार की शक्ल में आया है। इस फंड से अब तक आधा से अधिक खर्च हो चुका है पर शेष बचे फंड को सौ-सौ के नोट में बदलकर खर्च करने में इन राजनीतिक दलों को पसीना आ रहा है। चुनाव प्रबंधन में लगे भाजपा के एक नेता ने स्वीकार किया कि नोटों पर लगे प्रतिबंध से चुनाव प्रचार में दिक्कत आ रही है।
सबसे ज्यादा दिक्कत पैट्रोल और डीजल के लिए कार्यकर्ताओं को रोज देने वाले पैसों से हो हरी है। शहडोल में आठ विधानसभा क्षेत्रों में लाखों रुपए इसी मद में खर्च हो रहा है। वहीं वाहनों के किराए को लेकर भी परेशानी है।
यहां किराए पर लाए जाने वाले आदिवासियों के नृत्य दल लगभग गायब से हो गए हैं। इसके अलावा बैंड-बाजों और ढोल की थाप पर निकलने वाली रैलियों पर भी असर पड़ा है। अब चुनावों में सिर्फ माइक ही नजर आ रहा है।
शहडोल उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा सत्तर लाख रुपए तय की है। इसके अलावा नेपानगर विधानसभा चुनाव में चुनावी खर्च की सीमा 28 लाख तय है। आदिवासी बाहुल्य शहडोल लोकसभा क्षेत्र और नेपानगर विधानसभा में अंतिम समय पर वोटरों को लुभाने के लिए जमकर शराब परोसी जाती है। लेकिन इस पैसे का टोटा पड़ने से राजनीतिक परेशान हैं।