विचारकों एवं कर्मशीलों की राय राष्ट्र सर्वोपरि
lokmanthan

त्रिदिवसीय लोक-मंथन में \'राष्ट्र सर्वोपरि\' के भाव पर देश-काल-स्थिति के संदर्भ में विमर्श में देश-विदेश के विद्वानों, विचारकों और कर्मशीलों की सहभागिता रही। समाज जीवन पर औपनिवेशिकता के कुप्रभाव का गहरा विश्लेषण हुआ। सामूहिक मंथन से निकले नवनीत के आधार पर समस्त लोकहित के लिये राष्ट्र के उन्नयन के लिए हम सब समर्पित, विमर्श का निष्कर्ष रहा।

मंथन में यह तथ्य रेखांकित हुआ कि अनेक ज्ञात-अज्ञात कर्मशील औपनिवेशक मानसिकता से स्वयं बाहर आकर औरों को भी इस राष्ट्र और समाज की मूल अस्मिता और स्वभाव का सही अहसास जगाने में दशकों से सक्रिय हैं। ऐसे सराहनीय एवं सम्मानीय लोक प्रयासों के कारण भारत की आत्मा पुनर्जागृत हो रही है। इस राष्ट्रीय पुनर्जागरण की बेला में समाज की अन्यान्य अस्मिताओं का कुछ तत्वों द्वारा अपनी स्वार्थ साधना के लिए दुरूपयोग किया जा रहा है। मंथन में यह उभरकर सामने आया कि इस चुनौती को स्वीकार कर एक राष्ट्र-एक जन का मंत्र जगाते हुए, व्यापक राष्ट्रीय अस्मिता को सुदृढ़ करना एक राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। लोक-मंथन विमर्श का यह सुविचारित मत रहा कि समाज जीवन में विभिन्न समानांतर अस्मिताओं का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इन सभी अस्मिताओं का समुचित विकास होकर, वे राष्ट्र के समग्र उन्नयन में अपनी महती भूमिका का निर्वहन करें, यह भी अनिवार्य है।

अपनी मूल व्यापक राष्ट्रीय पहचान की ओर बढ़ते हुए कला, साहित्य, नाटक, फिल्म, शोध तथा मीडिया के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को देशज परंपराओं से जोड़ने के भी सराहनीय प्रयास हो रहे हैं। इन प्रयासों का स्वागत करते हुए उन्हें अधिक सशक्त और सर्वस्पर्शी बनाने की आवश्यकता ध्यान में आयी।

लोक-मंथन का लोकामृत

भारत के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक-हर क्षेत्र की नीति और कार्य का उद्देश्य जन-जीवन में राष्ट्रत्व का उन्नयन करना।

भारत की एकात्मता सदैव रूपों में अभिव्यक्त होती है। यही हमारी राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की आधारशिला है।

औपनिवेशिकवाद पर आधारित मानसिकता को राष्ट्रीय विचारों से प्रतिस्थापित करने के लिए विभिन्न स्तरों, रूपों एवं आयामों में \'राष्ट्र सर्वोपरि\' आधारित विमर्श आयोजित करना।

सामाजिक व्यवस्थाओं, आर्थिक रचनाओं एवं लोकतंत्र के साधनों के देशज विकल्पों का निरंतर अन्वेषण एवं प्रतिपादन।

विश्वविद्यालयों में शिक्षा एवं शोध में औपनिवेशवाद के कारण हो रही हानि का आकलन एवं औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति की प्रक्रिया और उपायों का सम्मिलित किया जाना।

उपनिवेशवाद की प्रवृत्तियों के विपरीत देशज विचार को स्थापित करने वाले साहित्य, कला, रचनाओं, फिल्मों, टेलीविजन कार्यक्रमों एवं सोशल मीडिया पर प्रचलित संवाद इत्यादि को प्रोत्साहित एवं सम्मानित करना।

एकात्मता के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाती एवं अस्मिताओं को स्थापित करती लोक- परम्पराओं एवं लोक-कलाओं का केवल संरक्षण ही नहीं, अपितु उनके विकास के लिए सुनियोजित वातावरण बनाना।

समाज की विविध अस्मिताओं में अंतर्निहित राष्ट्रीय एकात्मता को सुदृढ़ करने के लोक प्रयासों का नियोजन।

तीन दिवसीय लोक-मंथन ने पाया कि नित्य नूतन-चिर पुरातन भारतीय संस्कृति की आत्मा है। काल सुसंगत जीवन विकास क्रम की पोषक भारत की सांस्कृतिक परम्परा सदैव आधुनिकता, खुलेपन, नव-नवीन, ज्ञान-विज्ञान तथा नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा का स्वागत ही नहीं, समावेश करती रही है। इस गौरवपूर्ण धरोहर को देश-काल-स्थिति के अनुरूप अपने वैयक्तिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन में समृद्ध करते रहने को \'राष्ट्र सर्वोपरि\' विचारक और कर्मशील अपना पवित्र कर्त्तव्य मानते हैं।