रामायण में किषकिंधा नरेश शिवभक्त बाली का जिक्र खूब होता है। उन्हें वरदान था कि जो उनसे लड़ेगा आधा बल उन्हें प्राप्त हो जाएगा। लिहाजा वे शत्रुहन्ता हो गए। जो भी लड़ता उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ता। राजनीति में भाजपा को रामभक्तों की पार्टी कहा जाता है और उनके नेता शिवराज सिंह चौहान ग्यारह साल से मध्यप्रदेश नरेश बने हुए हैं। जबसे राजनीति में आए हैं दो ही चुनाव हारे हैं। एक संगठन में विक्रम वर्मा से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का और दूसरा दिग्विजय सिंह से राघौगढ़ विधानसभा का। इनसे पहले और बाद में अब तक शिवराज कोई चुनाव नहीं हारे। इसलिए सियासी तौर पर पांव पांव वाले भैया से मुख्यमंत्री के सिंहासन पर शिवराज अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं। इसके पीछे का राजनीतिक,धार्मिक,प्रारब्ध और पुरुषार्थ को लेकर चलें तो वे अब बाली बनने के रास्ते पर हैं। दो उपचुनाव शहडोल लोकसभा और नेपानगर विधानसभा भाजपा जीती तो इस पर फिर एक बार जनता की मुहर लगेगी।
शिवराज की रीति नीति को हम केवल राजकाज के अंदाज में देख समझ रहे हैं। और वैसा बताने का प्रयास कर रहे हैं। हो सकता है यह किसी को लाल भुजक्कड़ जैसा भी लगे जिसमें हाथी के पांव को बताया था कि “ पांव में चक्की बांधकर हिरना कूदो जैसा होय” सियासत में शिवराज हाथी पांव तो हो गए हैं और अंगद की भांति सिंहासन पर जमें हुए दिख भी रहे हैं। डटे रहने में हम उनके पराक्रम और पुरुषार्थ की तुलना बाली पुत्र से कर रहे हैं। यह थोड़ा अटपटा सा लग सकता है लेकिन राजकाज के गुणा भाग अब ऐसे हो रहे हैं कि दो दूनी चार नहीं बल्कि जो पांच कहता है और वैसा करता भी है वही कामयाब होता है। इसलिए नेतागण किसी को खाली हाथ नहीं भेजते। आसमान से तारे लाने की डिमांड भी हो तो उन्हें हामी ही भरनी है। बस मसला चुनाव जीतने का होना चाहिए। बदले में कीमत कोई भी ली और दी जा सकती है। आजकल के बलि महाबलि सुग्रीव अंगद कोई भी हारना नहीं चाहता। इसलिए खजाने खाली हो रहे हैं। वेतन “मान” बढाने और घटाने तक का जोखिम हंसते हंसते लेने की परंपरा सी पार्टी में बनती जा रही है।
खैर, मसला रामराज के बाली से कलयुग में हो रहे महाबलियों से जुड़ा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भी शंकर की तरह भोली भालि जनता का ऐसा वरदान मिला है जो उनसे लड़ने आता है उसकी आधी शक्ति उनमें ही मिल जाती है। कह सकते हैं जो उनसे टकराएगा उनमें ही मिल जाएगा। विपक्ष तो क्या भाजपा में उनसे टकराने वालों की ताकत आधी रह जाती है। कभी विधानसभा में प्रतिपक्ष उपनेता भाजपा में शामिल हो जाता है तो चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के प्रत्याशी भाजपा के उम्मीदवार बन जाते हैं। शिव के बाली होने के इस गुण को लोग स्वीकारते भी हैं। अभी तक उन्होंने किसी सुग्रीव को परेशान नहीं किया है (यदि कोई हो तो उनसे माफी के साथ)। बाली के पिता वानरश्रेष्ठ ऋक्ष हैं लेकिन देवराज इन्द्र उनके धर्मपिता माने जाते हैं । इसी तरह शिवराज सिंह के भी सियासी पालक- शालिगराम तोंमर, कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक माने जाते हैं। मगर अब उनके मानस पालक प्रधानमंत्री हो गए हैं। यहां पराजित सुग्रीवों को मदद के लिए देवपुरुष की जरूरत है मगर इस युग में कोई भी बाली इतनी गलती नहीं करते कि राम को आना पड़े। शिवराज सिंह का शालीन व्यवहार उन्हें बाली बनाता है। विरोधी भी उनकी तारीफ ही करते हैं। इस तरह के गुण तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह में भी थे। वे अपने शत्रु और मित्र को तो साधे ही रखते थे बल्कि हाईकमान के विरोधी और समर्थकों के बीच संतुलन बनाए रखते थे। उनकी इस चतुराई को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंम्हाराव ने उन्हें सव्यसांची की उपमा भी दे रखी थी। महाभारत में दोनों हाथों से तीरंदाजी करने वाले अर्जुन को सव्यसांची कहा गया था।
सिमी को लेकर सकते में हैं सुरक्षातंत्र
भोपाल में सिमी के आठ सदस्यों को ऐनकाउंटर होने के बाद खुश सुरक्षा तंत्र एक खबर से सकते में है। उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश पुलिस को सूचना मिली है कि तीन सिमी आतंकी भोपाल पहुंच गए हैं। आशंका है कि ये अपने साथियों के ऐनकाउंटर का बदला लेने कोई बड़ी कार्यवाई कर सकते हैं। ऐनकाउंटर के बाद प्रसन्न पुलिस प्रशासन आतंकियों के अगले कदम पर पैनी नजर रखे हुए है। हालांकि उसे इसमें कोई सफलता नहीं मिली है। लेकिन आने वाले दिनों में इज्तिमा होने वाला है और उसमें दुनिया भर से जमातें आती हैं। पुलिस को डर है कि जमातों की आड़ में आतंकी तत्व सक्रिय हो सकते हैं। अब प्रदेश के अफसरों की काबलियत दांव पर है।