लंबे वक्त से बीमार एमपी के पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव का निधन
ramnaresh yadav

 

मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव का मंगलवार को गृह राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक अस्पताल में निधन हो गया। राजभवन सूत्रों ने बताया कि यादव का लखनऊ के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। सुबह लगभग नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 89 वर्ष के थे।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद समेत अनेक महत्वपूर्ण दायित्व संभाल चुके यादव कुछ समय पहले ही मध्य प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करके यहां से लखनऊ के लिए रवाना हुए थे।

मध्य प्रदेश के राज्यपाल ओपी कोहली ,मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने यादव के निधन पर शोक जताते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है। कोहली ने अपने शोक संदेश में यादव के सुदीर्घ राजनैतिक जीवन के अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने जन और समाज सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया।

ये था। 

जुलाई 1928 में यूपी के आजमगढ़ में जन्मे राम नरेश को पॉलिटिक्‍स का बड़ा खिलाड़ी माना जाता था। राम नरेश पहली बार चौधरी चरण सिंह की मदद से 1977 में जनता पार्टी के सीएम बने थे। वे किसानों की आवाज उठाने के लिए जाने जाते थे।उनको राजनीतिक माहौल घर से ही मिला था,क्योंकि उनके पिता गया प्रसाद महात्मा गांधी,पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ.राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे। उन्‍होंने बीएचयू से बीए,एमए और एलएलबी की पढ़ाई की और यहीं छात्र संघ की राजनीति से भी जुड़े रहे। इसके बाद कुछ समय के लिए वे जौनपुर के पट्टी स्थित नरेंंद्रपुर इंटर कॉलेज में प्रवक्ता भी रहे। 1953 में उन्‍होंने आजमगढ़ में वकालत की शुरुआत की।रामनरेश ने समाजवादी विचारधारा के तहत विशेष रूप से जाति तोड़ो,विशेष अवसर के सिद्धांत,बढ़े नहर रेट,किसानों की लगान माफी,समान शिक्षा,आमदनी और खर्च की सीमा बांधने,वास्तविक रूप से जमीन जोतने वालों को उनका अधिकार दिलाने,अंग्रेजी हटाओ आदि आंदोलनों को लेकर कई बार गिरफ्तारियां दीं। 

इमरजेंसी के दौरान वे मीसा और डीआईआर के अधीन जून 1975 से फरवरी 1977 तक आजमगढ़ जेल और केंद्रीय कारागार नैनी,इलाहाबाद में बंद रहे।रामनरेश 1988 में राज्यसभा सदस्य बने और 12 अप्रैल 1989 को राज्यसभा के अंदर डिप्टी लीडरशिप,पार्टी के महामंत्री और अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ली।लखनऊ स्थित अंबेडकर यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनि‍वर्सिटी का दर्जा दिलाने में भी उनका अहम योगदान था।

इसी साल अगस्‍त महीने में रामनरेश यादव की पहली किताब\'मेरी कहानी\'सामने आई थी।इस किताब में उन्‍होंने कांग्रेस में आने,सीएम बनने और यूपी में उनके सीएम रहते समय हुए सांप्रदायिक दंगों को सुलझाने के घटनाक्रम के बारे में बताया था। हालांकि,इसमें उन्‍होंने मप्र के गवर्नर रहते हुए उनके दामन पर आए व्यापमं के छींटों का किताब में कोई जिक्र नहीं किया था।

रामनरेश यादव 23 जून 1977 से 28 फरवरी 1979 तक यूपी के सीएम रहे।जून 2014 से 19 जुलाई 2014 तक छतीसगढ़ के गवर्नर रहे 26 अगस्‍त 2011 से 7 सितंबर 2016 तक मध्‍य प्रदेश के गवर्नर रहे। 

पिछले साल बेटे की भी हुई थी मौत

पिछले साल व्यापमं घोटाले में आरोपी रामनरेश के बेटे शैलेष(52)की संदिग्ध हालत में मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम करने वाली टीम ने उनकी मौत का कारण जहर बताया था। वहीं,परिवार का कहना था कि शैलेष को ब्रेन हेमरेज हुआ था। बताया जाता है कि शैलेष इस बात से डरे थे कि उनकी प्रॉपर्टी कुर्क की जा सकती है।शैलेष को आरोपी बनाने के बाद एसटीएफ की टीमें डेढ़ महीने में तीन बार यूपी आई थीं। दो बार लखनऊ और एक बार आजमगढ़। शैलेष के बड़े भाई कमलेश का कहना था कि शैलेष व्यापमं मामले में आरोपी बनाए जाने से मानसिक दबाव में थे। 

1977 में यूपी के सीएम रहे रामनरेश यादव आजमगढ़ के रहने वाले थे। बड़े बेटे कमलेश ने विधानसभा चुनाव लड़ा था,लेकिन हार गए थे। शैलेष पिता की राजनीतिक गतिविधियों से दूर थे। उनका अपना बिजनेस था। सबसे छोटा बेटा अजय कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में है।