भोपाल में 32 साल पहले हुए हादसे के जख्म यहां के प्रभावित परिवारों में अब भी नजर आते है। दोऔर तीन दिसंबर की दरमियानी 1984 की रात यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस से तीन हजार से ज्यादा लोगों की एक रात में मौत हुई थी, वहीं इस गैस से बीमार लोगों की मौतों का सिलसिला अब भी जारी है।यूनियन कार्बाइड कारखाने के 610 नंबर के टैंक में खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनाइट रसायन था। टैंक में पानी पहुंचा तो तापमान 200 डिग्री तक पहुंच गया और धमाके के साथ टैंक का सेफ्टी वॉल्व उड़ गया। उस समय 42 टन जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3,700 की मौत हुई। कई एनजीओ का दावा है कि मौत का आंकड़ा 10 से 15 हजार के बीच था।
इस त्रासदी का गुनाहगार 92 वर्षीय एंडरसन की मौत 29 सितंबर को अमेरिका के फ्लोरिडा में हो गई थी। वह गुमनामी का जीवन जी रहा था उसके परिवार को भी मौत की खबर नहीं दी गई थी। एक अस्पताल से मिले सरकारी रिकॉर्ड से इसकी पुष्टि हुई थी। दिसंबर 1984 में हुआ भोपाल गैस कांड दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी थी। उस वक्त एंडरसन यूनियन कार्बाइड का प्रमुख था। उसे घटना के चार दिन बाद गिरफ्तार किया गया था। लेकिन जमानत मिलने के बाद वह अमेरिका लौट गया। फिर कभी भारतीय कानून के शिकंजे में नहीं आया। उसे भगोड़ा घोषित किया गया। अमेरिका से प्रत्यर्पण के प्रयास भी हुए। लेकिन कोशिशें नाकाम रहीं।
संभावना ट्रस्ट ने पिछले दिनों गैस प्रभावित बस्तियों में कैंसर पीड़ितों को लेकर एक रिसर्च किया। इसके लिए उसके रिसर्च में एक तरफ प्रभावित, तो दूसरी ओर गैर प्रभावित बस्तियों को शामिल किया गया। इसके लिए इसे चार वर्गो में बांटा गया -गैस प्रभावित नागरिक, प्रदूषित जल प्रभावित, गैस व प्रदूषित जल प्रभावित और गैस व प्रदूषित जल से अप्रभावित नागरिक।
संभावना ट्रस्ट के प्रबंध ट्रस्टी सतीनाथ शडंगी ने बताया कि शोध के प्रारंभिक नतीजे बताते हैं कि गैर प्रभावित बस्तियों के मुकाबले भोपाल के गैस पीड़ितों की 10 गुना ज्यादा दर से कैंसर की वजह से मौतें हो रही हैं। इनमें खासकर गुर्दे, गले और फेफड़े के कैंसर हैं। उन्होंने बताया कि इस शोध के लिए गैस प्रभावित और अप्रभावित बस्तियों का चयन किया गया। इससे पता चला कि गैस प्रभावित बस्तियों के लोगों में टीबी, पैरालिसिल और कैंसर कहीं ज्यादा तेजी से पनप रहा है।
यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी को भले ही 32 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन उस हादसे की रात यहां के लोगों के लिए अभी भी डरावनी है।
कुछ एनजीओ इस भीषणतम त्रासदी में 16000 हजार लोगों की मारे जाने का दावा करते हैं। इसमें 5,58,125 लोग प्रभावित हुए थे। सबसे ज्यादा लोग अंधेपन का शिकार हुए। इस हादसे को इतिहास की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक माना जाता है।