दारू प्रपंच के पीछे क्या ...?
राजेश सिरोठियामध्यप्रदेश में पिछले दो सालों से शराब के नाम पर कुछ अजीबोगरीब खेल चल रहे हैं। जैसा दिख रहा है वैसा है नहीं और जो है नहीं उसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया और लिखाया जा रहा है। कांग्रेस की तरफ से चुनौती विहीन हुई भाजपा की शिवराज सरकार को अब अफसरों के द्वंद का दंश झेलना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ये घोषणा कर रखी है कि कोई नई शराब दुकान नहीं खोली जाएगी लेकिन जब आबकारी विभाग ने नई दुकान खोलने के बजाए देशी शराब की दुकान पर अंग्रेजी शराब बेचने का प्रस्ताव किया तो भारी बवाल मच गया। किसी ने ये सोचने या समझने की कोशिश नहीं कि देशी दुकानों पर मिलने वाला द्रव्य भी शराब ही है। बहरहाल, इन सब चीजों को लेकर अखबारों के जरिए बवाल मचा और रक्षात्मक मुद्रा में शिवराज ने यह कहकर फैसला वापिस ले लिया कि वे अपने सरकार के इस प्रस्ताव के चलते रात भर सो नहीं सके। बात आई-गई हो गई। प्रदेश के अभिजात्य वर्गों में शराब की बोतलों की संग्रहण की प्रवृत्ति किसी से लुकी छिपी नहीं है। लेकिन ये शराब भी ड्यूटीपेड होने के कारण अवैध नहीं होती, लेकिन घर में अधिकतम 4 व्हिस्की, 6 वाईन और 12 बियर की बोतल की पाबंदी के चलते नियम विरूद्ध है। सरकार समाज में व्याप्त इस प्रवृत्ति को नियम अनूकुल बनाने के लिए दस हजार रूपए की पजेशन फीस का प्रावधान करके अपने खजाने को समृद्ध करना चाहती थी, लेकिन इस प्रस्ताव को लेकर जिस तरह की बातें प्रचारित कराई गई मानो जिस व्यक्ति के घर में शराब की बोतलें रखी रहती हैं वह दिन रात शराब पीता-पिलाता है और घर में ही शराब की दुकान चलाने लगेगा। जाहिर है कि यह संस्कृति और संस्कार की बातें करने वाली भाजपा की शुचिता की छवि को आहत करती है। ये कांग्रेस को उसे घेरने का अवसर देती है और शिवराज इन फैसलों को वापिस लेने का श्रेय भी नहीं ले पा रहे है। ऐसा ही कुछ मामला प्रदेश में शराब डिस्टलरी खोलने को लेकर भी हुआ है। मध्यप्रदेश सरकार ने ग्लोबल समिट में खुद डिस्टलरी लगाने के करार किए थे और जब लोगों ने करोड़ों रूपयों का कर्ज लेकर डिस्टलरी स्थापित कर ली तो उसे चलाने का लाइसेंस देने पर शिवराज मुकर गए। वह ऐसा करके वाहवाही लूटना चाहते थे कि उनकी सरकार शराब को बढ़ावा नहीं देना चाहती। अपने सोच विचार और नीति को लेकर विरोधाभास के चलते शिवराज सरकार की ये मंशा हाईकोर्ट ने तार-तार कर दी। जब सरकार डबल बैंच में गई तो उसने भी सरकार को ये कहकर लताड़ा कि जब डिस्टलरी खोलनी नहीं थी तो करार क्यों किया? जिस व्यक्ति ने सरकार के कहने अपना पैसा दांव पर लगाया उसका क्या होगा? फिर सरकार की साख भी दांव पर है। दरअसल, इन तमाम द्वंद के पीछे सरकार की मंशा व नीयत एक तरफ रह गई है शिवराज के इर्द-गिर्द मौजूद प्रभावी अफसर वर्ग के राजनीतिक औजार कारगर (?) भूमिका निभा रहे हंै। मीडिया में हो रहे हमलों के पीछे मंशा आबकारी महकमे के उन आला अफसरों की इज्जत और साख को तार-तार करना है जो मुख्यमंत्री के भरोसेमंदों में शुमार हैं, जिनकी छवि राम चरित मानस पर लेखन और प्रवचन की है और वह अफसर भी चपेट में हैं जो लंबे समय तक मुख्यमंत्री की छवि चमकाने में लगे रहे। बहरहाल, जो भी हो मंत्रालय की ऊपरी मंजिलों से निचले मंजिल पर हो रहे हवाई हमलों से अफसरों के साथ शिव और उनकी सरकार भी लहूलुहान हो रही है। (लेखक चर्चित पत्रकार हैं,यह लेख अग्निबाण से साभार)