राज्य शासन के पुरातत्व विभाग की इकाई बी.एस.वाकणकर पुरातत्व शोध संस्थान को रायसेन जिले के ग्राम रिछावर में दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी की प्रतिमाएँ मिली हैं। परमार-कल्चुरी शैली के संयुक्त प्रभावयुक्त दो मंदिर, 30 से अधिक प्राचीन-दुर्लभ प्रतिमा और स्थापत्य खण्ड भी मिले हैं।
पुरातत्व आयुक्त अनुपम राजन ने बताया कि रिछावर ग्राम नर्मदा नदी किनारे स्थित होने से ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र परमार-कल्चुरी राजवंशों का संघर्ष स्थल माना गया है। यहाँ से प्राप्त मंदिर और प्रतिमाओं में परमार एवं कल्चुरी दोनों शैली का प्रभाव देखा गया है।
ऐतिहासिक मंदिर मिले
शोध कार्य के पहले मंदिर का मूल स्वरूप नए निर्माण के नीचे भू-गर्भ में था। खुदाई करते समय कल्चुरी शैली का 10वीं- 11 वीं शताब्दी की मंदिर संरचना मिली। संरचना की विशेषता यह है कि मंदिर के बाहरी निचले भाग अंलकृत होने के साथ ही तीन दिशा में प्रतिमाएँ स्थापित हैं। इसमें शिव की अनेक प्रतिमा,गणेश,इन्द्राणी, ब्रह्माणी, माहेश्वरी,कार्तिकेय, ब्रह्मा एवं विष्णु भगवान की दुर्लभ प्राचीन प्रतिमा मिली हैं। दूसरा मंदिर 45 फीट लम्बाई एवं 31 फीट चौड़ाई में प्राप्त हुआ। इसमें भी 8 प्रतिमा मिली हैं।
दुर्लभ प्रतिमाएँ
हिन्दू देवी-देवताओं में दुर्लभ ब्रह्मा की प्रतिमा 61 से.मी. ऊँची और 40 से.मी.चौड़ी है। प्रतिमा 24 भुजा के साथ ही जनेऊ धारण किये हैं, नीचे वाहन हंस भी है। विष्णु भगवान की प्रतिमा 61 से.मी. एवं 40 से.मी. चौड़ाई में है। सिर पर किरीट मुकुट और 8 भुजाएँ हैं। प्रतिमा के नीचे मानवाकार गरुड़ भी है। शिवपुत्र कार्तिकेय की 8 भुजाओं से युक्त प्रतिमा 51 से.मी.ऊँची एवं 37 से.मी. चौड़ाई में निर्मित है। प्रतिमा मोर पर विराजमान है। सिर पर जटा मुकुट है। उमा-महेश्वर की 48 से.मी. ऊँची प्रतिमा अपने वाहन वृषभ और सिंह पर सवार दिखाई देती है।
पुरातत्व आयुक्त श्री अनुपम राजन ने दुर्लभ प्रतिमाओं एवं मिले मंदिर के खोज कार्य में शोध संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. जिनेन्द्र जैन सहित पुरातत्व संग्रहालय के अमले को इस कामयाबी के लिये बधाई दी है।