दुर्ग में पुश्तैनी जमीन हासिल करने की मां की इच्छा पूरी करने बेटे ने 57 साल न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट से खिलाफ में फैसला आने के बाद भी बेटे ने हौसला नहीं खोया और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला। कोर्ट के आदेश पर सोमवार को पुलिस और प्रशासन ने कब्जा हटा दिया। बीच शहर में अग्र सेन चौक के पास जिस जमीन पर कब्जा किया गया था, आज उसकी कीमत करीब तीन करोड़ स्र्पए है।
दुर्ग निवासी अनिल सब्बरवाल और उनके भाई विजय सब्बरवाल के नाम वर्तमान में यह जमीन है। अनिल सब्बरवाल ने बताया कि उनके नाम 5,610 वर्ग फीट जमीन है। इस जमीन पर जगदीश तिवारी के परिवार ने कब्जा कर मकान बना लिया और शेष हिस्से पर टिम्बर व्यवसाय शुरू कर दिया।
अनिल सब्बरवाल ने बताया कि उनके पिता चमनलाल सब्बरवाल ने यह जमीन 1960 में एक गुजराती व्यक्ति से खरीदी थी। जमीन अनिल की माता शीला सब्बरवाल के नाम पर था। इस जमीन के लिए भी गिरिजा शंकर तिवारी और दयाशंकर तिवारी के पिता ने एडवांस पैसे दिए थे। उनके निधन के बाद गिरिजा शंकर व दयाशंकर ने यह कहकर जमीन कब्जा लिया कि इसके लिए पिता ने भी पैसे लगाए हैं। इस जमीन में गिरिजाशंकर तिवारी के बेटे जगदीश तिवारी का परिवार वर्तमान में रह रहा है।
इस जमीन की कीमत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन बाजार भाव करीब पांच हजार रुपए वर्गफुट बताई जा रही है। इस हिसाब से वर्तमान में इसकी कीमत करीब 3 करोड़ रुपए है। कब्जा हटाने के दौरान यहां निवासरत राकेश दुबे, अवध दुबे और उनके परिवार की महिलाएं अफसरों के समक्ष विरोध करती रहीं। मौजूद अधिकारी शहर पुलिस अधीक्षक एनपी उपाध्याय व तहसीलदार अरविंद शर्मा ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है इसलिए कुछ नहीं कर सकते।
कब्जेदार जगदीश तिवारी के पिता गिरिजाशंकर तिवारी तहसीलदार के पास प्रमाणीकरण के लिए गए। तब तहसीलदार ने जमीन का खसरा मेल नहीं होने की वजह बताते हुए इसे खारिज कर दिया।1994 में आवेदक के बयान के आधार पर जमीन प्रमाणीकरण अनिल, विजय सब्बरवाल के नाम दर्ज किया।अनिल सब्बरवाल ने सिविल कोर्ट में सन 2005 में याचिका लगाई।अनिल ने वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
अनिल बोले में मां की इच्छा पूरी करने सुप्रीम कोर्ट तक गया। अनिल सब्बरवाल ने बताया कि मां और पिता ने यह जमीन अपनी मेहनत की कमाई से खरीदी थी। उनका सपना था कि यह जमीन परिवार के लिए फिर से वापस मिले। परिवार के लोग दुर्ग में नहीं रहते। अब जमीन मिल जाने के बाद दोनों भाई यहां शिफ्ट हो सकेंगे। इस जमीन के लिए उनके माता-पिता ने अजमेर में चादर चढाने और गुस्र्द्वारे में लंगर कराने की मन्न्त भी मांगी थी, जिसे वे पूरा करेंगे।