शिवराज सिंह चौहान
पूरे देश में 8 नवम्बर, 2016 को एक ऐतिहासिक फैसला हुआ। इस दिन ने सरकारों के कामकाज की शैली पर जन-मानस द्वारा जो प्रश्न उठाए जाते हैं उसे एक सार्थक उत्तर दिया है। अक्सर सरकारों पर ये आरोप लगते हैं कि वे कठोर निर्णय नहीं ले सकती और शक्तिशाली लोगों को नुकसान पहुँचाने वाले निर्णय लेने से डरती हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी ने 8 नवम्बर, 2016 से 500 और 1000 रूपये के नोटों को बन्द करने के साहसिक निर्णय से इस मिथक को तोड़ा है कि सरकारें दबाव में आकर कठोर निर्णय नहीं लेती हैं।
नोटबंदी का निर्णय इस मामले में ऐतिहासिक है कि इस निर्णय ने लगभग सभी को चौंकाया और यही इसकी खासियत है। पिछले 100 साल के इतिहास में देश में दो बार पहले भी नोटबंदी के निर्णय लिए गए हैं परंतु इन निर्णयों ने लोगों को काफी समय दिया जिसके कारण जो कालाधन नोटों की शक्ल में रखने वाले लोग थे, उन्हें इसका पर्याप्त अवसर मिला कि वे इसे बदल पाएं और ऐसे निर्णयों के पीछे का एक मुख्य उद्देश्य कम सफल रहा। इस बार का निर्णय ऐसा था जिसने अधिकांश लोगों को ऐसी किसी प्लानिंग करने का मौका नहीं दिया।
आलोचकों ने इस बात की आलोचना की है कि यह निर्णय बेहतर प्लानिंग के व्दारा किया जाना चाहिए था और लोगों को पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए था। जब आलोचक यह कहते हैं कि लोगों को पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए था तो वे किन लोगों की बात करते हैं, यह समझ से परे है। क्या वे गरीब जनता की बात करते हैं जिनकी मासिक आय पाँच या दस हजार रूपये है और जिनके पास एक समय में 5 या 10 बड़े नोटों से अधिक नहीं होते? नि:संदेह वे ऐसे लोगों की बात नहीं करते, क्योंकि ऐसे गरीब लोग जिनके पास 5 या 10 बड़े नोट थे वे तो एक बार में ही उसे बदलवाकर निश्चिंत हो गए। तो फिर ये कौन लोग हैं जिन्हें इसके लिए समय दिया जाना चाहिए था? स्वाभाविक है कि आलोचकों का एक वर्ग उन लोगों की हिमायत कर रहा है जिन्होंने कालाधन को नोटों के रूप में जमा कर रखा था।
प्रधानमंत्रीजी का यह निर्णय कि कैशलेस लेन-देन को बढ़ावा दिया जाये एक तरह से एक विकासशील देश को विकसित देश की तरफ बढ़ाने की दिशा में लिया गया निर्णय है। ऐसे निर्णय की आलोचना करने के पहले आलोचकों को उसके सभी पहलुओं को देखना चाहिए। हमारे कांग्रेस व अन्य राजनीतिक दलों के मित्र यह कहते हैं कि नोटबंदी के निर्णय से किसानों को नुकसान हुआ और वे समय पर बोनी भी नहीं कर सके। मध्यप्रदेश में स्थिति यह है कि गत वर्ष के कुल 108 लाख हेक्टेयर में बोनी की तुलना में इस वर्ष अब तक 105 लाख हेक्टेयर में बोनी हो चुकी है और कुल बोनी 115 लाख हेक्टेयर तक होगी। स्पष्ट है कि नोटबंदी से बोनी बिलकुल प्रभावित नहीं हुई है।
नोटबंदी के तथाकथित आलोचक यह कहते हैं कि हमारे देश में कैशलेस लेन-देन संभव नहीं है। मध्यप्रदेश की मण्डियों में जहाँ इन आलोचकों के ही मत में अनपढ़ और अज्ञान किसान अपनी उपज बेचते हैं, नोटबंदी के बाद से 95 प्रतिशत लेन-देन कैशलेस हो रहा है। क्या यह सबों की आँख खोलने के लिए पर्याप्त नहीं है कि एक ऐसा वर्ग जिससे सबसे कम अपेक्षाएँ थी, वह 95 प्रतिशत कैशलेस लेन-देन कर रहा है? कैशलेस लेन-देन को बढ़ावा देने का इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिल सकता है।
यह सही है कि जो भी विकसित देश हैं सभी अधिक से अधिक कैशलेस लेन-देन की तरफ बढ़ रहे हैं। अर्थ-व्यवस्था को यदि पंख लगाने हैं तो हमें विकसित अर्थ-व्यवस्थाओं से ऐसी चीजें लेनी पड़ेगी जो उन्हें विकास के उस मुकाम तक पहुँचानें में सफल रहे हैं। यह सभी मानते हैं कि कैशलेस लेन-देन से अर्थ-व्यवस्था में व्यापक सुधार आता है। एक भी अर्थशास्त्री ने पिछले डेढ़ महिने में ऐसा तर्क नहीं दिया है कि कैशलेस लेन-देन अर्थ-व्यवस्था के लिए खराब है। यदि कोई चीज अच्छी है तो हमें प्रयास करना चाहिए कि आगे आकर उसे सफल बनायें और आलोचनाओं के द्वारा उसे विफल न करें। जो लोग यह कहते हैं कि कैशलेस लेन-देन की व्यवस्था इस देश में संभव नहीं वे इस देश के 120 करोड़ लोगों की क्षमताओं को बिना परखे चुनौती देते हैं, जो इस देश के जन-मानस के साथ अन्याय है। पिछले दो माह में मध्यप्रदेश में अकेले सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया में इंटरनेट बैंकिंग के जरिये होने वाले लेन-देन में 77 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, POS मशीनों के जरिये होने वाली बिक्री में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। क्या यह परिणाम ये इशारा नहीं करते हैं कि हमारे देश की जनता उससे ज्यादा जागरूक और सक्षम है जितना हमारे कतिपय आलोचक समझते हैं ?
कैशलेस व्यवस्था का एक और लाभ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। दिसम्बर माह में जहाँ राज्य के दूसरे करों में कमी दिखने को मिली है वहीं वैट में 14% की वृद्धि हुई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जो लेन-देन पहले नकद रूप में होता था और जिसमें टैक्स की चोरी होती थी वह कैशलेस होने से कम हो रही है। इससे कर संग्रहण में वृद्धि होगी जिससे कल्याणकारी योजनाओं पर राज्य सरकारें अधिक खर्च कर पाएंगी।
अब समय की मांग यह है कि हम जनता को कैशलेस लेन-देन के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित करें। मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण की व्यवस्थाएँ की जा रहीं हैं। पंचायत स्तर तक प्रशिक्षण कार्यक्रम आने वाले दिनों में आयोजित किए जाएंगे, जहाँ जन-मानस को कैशलेस लेन-देन के विभिन्न तरीकों के बारे में विस्तृत जानकारी मिल जाएगी। हमारा यह भी प्रयास है कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना के दायरे से जो गरीब परिवार छूट गए हैं उनके भी बैंक खाते खुलवाकर उनका वित्तीय समावेषण किया जाए। दस नवम्बर के बाद से लगभग सात लाख नवीन खाते बैंकों में खोले गए हैं और लगभग पाँच लाख नए रूपे कार्ड जारी किए गए हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने पी.ओ.एस. मशीनों पर लगने वाले वैट टैक्स और बैंकों के साथ किए जाने वाले अनुबंध पर लगने वाले स्टाम्प शुल्क से छूट प्रदान की है। इससे छोटे एवं मध्यम व्यापारियों व्दारा पी.ओ.एस. मशीन लगाना आसान होगा। प्रदेश के समस्त शासकीय संव्यवहार कैशलेस करने की दिशा में कदम उठाए गए हैं। टैक्स शुल्क आदि जमा करने की ऑनलाईन व्यवस्था विभिन्न विभाग द्वारा विकसित की गई है। राज्य सरकार द्वारा नागरिकों को किए जाने वाले विभिन्न तरह के भुगतान ऑनलाईन किए जा रहे हैं। राज्य सरकार कैशलेस की अर्थ-व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए कृत-संकल्पित है।
मेरा हमेशा यह विश्वास रहा है कि प्रदेश की जनता अपना हित बहुत अच्छे ढंग से समझती है और उन्हें पता है कि हमारे प्रधानमंत्री जी का नोटबंदी का कदम कालाधन जमा करने वाले, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने वाले और जाली नोटों के रूप में देश की अर्थ-व्यवस्था को चोट पहुँचाने वाले पड़ोसी देश की आकांक्षाओं पर कुठाराघात है। हमारा जन-मानस ऐसे हर कदम को जो देश हित में उठाया गया है अच्छे से समझता है और इस कारण कैशलेस की अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ाने में हमें जन-मानस से मदद मिल रही है। आने वाला समय विश्व में भारत का है और कैशलेस अर्थ-व्यवस्था हमें विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा करने में निश्चित रूप से मददगार होगी।[ब्लॉगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं]