राजेंद्र जायसवाल
पहली बार कोरबा की धरती पर उतरे प्रमुख आयकर आयुक्त ने अपने काम करने के अंदाज बयां कर जोर का झटका धीरे से दे दिया। इशारों ही इशारों में अपनी बात कहकर आय छुपाने वालों को घुड़की दे डाली और सहलाते हुए घुट्टी भी पिला दी कि अब भी बाज आ जाएं वरना उनसे बुरा कोई नहीं होगा। अब यह तो आयकर दाता पर निर्भर है कि वह घुड़की से डरकर सही रास्ते पर चलेगा या घुट्टी पीकर आदत से बाज आएगा।
एक थैली के चट्टे-बट्टे
एक अनुविभाग के दो शीर्ष अधिकारी इन दिनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे बनकर मशहूर हुए हैं। इलाके में चर्चा का आलम तो यहां तक है कि नोटबंदी के बाद इन दोनों ने अपना वसूली वाला धन सफेद कराने बैंक में ही डेरा डाल दिया। एक ने तो बैंक अधिकारी को घर पर ही बुलाकर अपना काम कराया। दोनों की जुगल जोड़ी के किस्से इस कदर मशहूर हैं कि बात आला अधिकारियों से होते हुए राजधानी तक पहुंच गई है। वैसे भी इनकी कार्यशैली को लेकर हर दूसरे-तीसरे मुंह से चर्चा सुनने को मिल जाती है।
पार्टनर के चक्कर में बुरे फंसे
रायपुर में एक बिल्डर के यहां पड़े छापे के बाद बिल्डर के कारोबार का दस्तावेज खंगालते हुए आयकर अधिकारियों को ऐसा सुराग लगा कि कोरबा पहुंच गये। अब उस बिल्डर के कोरबा निवासी पार्टनर और नेता कम व्यवसायी के लिए यह पार्टनरशिप महंगी पड़ गई और नेताजी पार्टनर के चक्कर में बुरे फंस गये और करोड़ों का आय मजबूरी में सरेंडर करना पड़ा।
एक कदम आगे
नोटबंदी का फैसला लेकर प्रधानमंत्री ने भले ही एकाएक धनकुबेरों और आपराधिक तत्वों के हौसले कमजोर किये लेकिन इनसे भी एक कदम आगे वो लोग चल निकले जो नोटों की फोटोकॉपी करने में माहिर थे। 2000 और 500 के नये नोट का जाली इतनी जल्दी बाजार में आने की दूर-दूर तक संभावना नहीं थी, फिर भी ईमानदार सोच से एक कदम आगे चलने वाले बेईमान आखिरकार पलीता लगाने से बाज नहीं आते।
समन्वय के रंग में भंग
आला पदाधिकारियों के समन्वय सूत्र के रंग में आखिर भंग तब पड़ गया जब एक युवा नेता के जन्मदिन की पार्टी में पर्यटन स्थल पर जमकर गुत्थम गुत्था हुई। मिशन 2018 का लक्ष्य हासिल करने नेतागण आपसी तालमेल पर पसीना बहाने में दिन-रात एक किये हुए हैं, तो कुछ इस पसीने को अपने अहम की लड़ाई से सुखाकर नमक बनाने में कसर बाकी नहीं रख रहे।
सड़क और बाईपास पर तकरार
नगर में स्थानीय मुद्दों से हटकर एक नया मुद़्दा सड़क और बाईपास पर चल रही तकरार का छिड़ गया है। सड़क पर काम होने के बाद कौन से वाहन चलेंगे और कौन से नहीं यह तो बाद की बात है पर इसी बहाने मुद्दे को भुनाने और अपनी-अपनी गुडविल बढ़ाने वाले भी शुभचिंतक बनकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। अब यह तो अपनी-अपनी समझ की बात है कि बरसाती मेंढक की तरह फुदककर क्यों बाहर आ रहे हैं?
एक सवाल आप से ❓
वह कौन अधिकारी है जिसने नोट बंदी के बाद खपाने से बच गये पुराने नोटों की गड्डियां गुपचुप तरीके से आग के हवाले कर दी?
और अंत में ❗
ऊर्जा और कोयले की नगरी में भूविस्थापित धरती पुत्रों से उनकी जमीन लेने के बाद नियम, कायदों का हवाला देकर वांछित लाभ से वंचित करने का सिलसिला और उपजता आक्रोश कोई आज का नहीं बल्कि वर्षों पुराना है। शायद एसईसीएल को यह अभास न रहा होगा कि उसकी उपेक्षा के कारण भड़क रही चिंगारी एक दिन ऐसा विस्फोटक रूप भी ले लेगी। किसी भी जख्म का नासूर बनने से पहले ईलाज जरूरी होता है लेकिन अपने टारगेट को पूरा करने में बेसुध अधिकारियों को न तो जख्म की परवाह है और न ही किसी के रोजी-रोटी की।