जख्म, जो अभी हरा है
सतीनाथ षड़ंगी भोपाल गैस पीड़ितों के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है । कुछ लोगों के लिए और मीडिया के एक बड़े हिस्से के लिए भी भोपाल गैस त्रासदी २-३ दिसंबर तक सीमित एक वार्षिक अवसर रहा है, लेकिन जो लोग पीड़ितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे सालभर जुटे रहते हैं और सालों से जुटे हुए हैं । वैसे भोपाल गैस पीड़ितों की जिंदगी में साल २०१० काफी महत्वपूर्ण रहा है, एक आशा जगी है । ७ जून को आए अदालती फैसले के बाद देश में नए सिरे से भोपाल पीड़ितों के प्रति सक्रियता बढ़ी है । सरकार ने भी कुछ कदम उठाए हैं । अदालत द्वारा गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों को सुनाई गई मामूली सजा के खिलाफ बड़ा जनाक्रोश उभरा था, जिससे मध्यप्रदेश से लेकर अमेरिका तक सरकारें हिल गई । इतना होने के बावजूद भोपाल गैस पीड़ितों को इज्जत की जिंदगी हासिल करने में अभी और कुछ साल लग जाएंगे । हजारों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार लोग अभी भी सरकार की पकड़ से बाहर हैं । यूनियन कार्बाइड की वर्तमान मालिक डाउ केमिकल ने अभी तक मुआवजे की नई मांग को स्वीकार नहीं किया है । वह जिम्मेदारी स्वीकार करने से लगातार बच रही है । मुआवजे व जिम्मेदारी से बचने के लि यहाँ तक कि अमेरिका सरकार को भी बीच में लाने की कोशिश हुई है । अमेरिका सरकार के वरिष्ठ अधिकारी माइक फ्रोमेन ने भारतीय योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलुवालिया को लिख दिया था कि अगर डाउ केमिकल की जिम्मेदारी तय करने पर भारत में ज्यादा हल्ला होता है तो अमेरिकी पूंजीपति भारत में निवेश करना बन्द कर देंगे । बचाव में जुटी दोषी कंपनी डाउ केमिकल का कहना है कि वह भारतीय न्याय क्षेत्र में नहीं आती है । कई मोर्चो पर न्याय के लिए प्रयास जरूरी हैं । हमारी सरकारों का भी रवैया प्रशंसनीय नहीं कहा जाएगा । पीड़ितों और उनकी भावी पीढ़ी के इलाज और पुनर्वास के लिए अधिकृत आयोग की स्थापना २००८ में ही हो जाना थी, लेकिन यह काम अब तक नहीं हो सका है । ७ जून के बाद हुई बैठक में ९० फीसदी गैस पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे से वंचित रखने का फैसला अन्यायपूर्ण है । आज सबसे बड़ी जरूरत है कि सभी गैस पीड़ितों को उपयुक्त मुआवजा दिया जाए । प्रदूषित कचरे को ठिकाने लगाने को डाउ केमिकल तैयार नहीं है । ÷ जो प्रदूषण करे, वही हर्जाना भरे ' के सिद्धांत पर डाउ केमिकल की जिम्मेदारी तय की जाना चाहिए । भारत सरकार को प्रदूषण के मुद्दे पर अमेरिकी अदालत में चल रहे मुकदमे में पक्षकार बनकर न्याय के लिए संघर्ष करना चाहिए । यूनियन कार्बाइड कम्पनी से १९८९ में हुए समझौते के खिलाफ सुधार याचिका दर्ज करवाना और यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन अमेरिका एवं यूनियन कार्बाइड ईस्टर्न हांगकांग के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले में अधिकृत अधिकारियों को सजा दिलवानी चाहिए । १९९७ के बाद गैस की वजह से हो रही मौतों का पंजीकरण शुरू किया जाना चाहिए, ताकि पता तो चले कि आखिर कितने लोग मारे गए हैं । फरार युनियन कार्बाइड को शरण देने के लिए डाउ केमिकल पर आपराधिक मामला चलाया जाना चाहिए । जो भी कम्पनियाँ दोषी हैं, उन्हें भारत में व्यापार करने से बाधित किया जाना चाहिए । कुछ कदम उठाए गए हैं, जैसे नौ साल पहले भारतीय अधिकारियों को ८८ लाख की रिश्वत देने की आरोपी डाउ एग्रो साइंसेज पर सरकार की ओर से प्रतिबंध लगाया गया है । इसके अलावा डाउ केमिकल को महाराष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना की योजना त्यागना पड़ी है । ऐसे ही दूसरे कदमों की जरूरत है, ताकि दोषी कम्पनियों की तकनीक और उत्पादों पर भारत में प्रतिबंध लग जाए । भोपाल गैस त्रासदी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है, सरकार को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए । भोपाल जिला अदालत के फैसले के बाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा एक पूर्व प्रधानमंत्री, एक पूर्व न्यायाधीश और १२ में से केवल एक फरार अभियुक्त वारेन एंडरसन पर ही केन्द्रित रही, लेकिन अब समग्रता में सोचना चाहिए । न्याय के लिए अनेक कदम उठाना होंगे । वस्तुस्थिति यह है कि पीड़ित अपने ही वकीलों के जरिये उच्च न्यायालय में संघर्ष में जुटे हैं, जबकि यह पूरा मामला अब सरकारों को संभालना चाहिए । पीड़ितों की दूसरी पीढ़ी को भी पुनर्वास योजना से जोड़ना चाहिए । विगत दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जब भारत आए थे, तब पीड़ितों को एक पत्र उन तक पहुँचाया गया था । अफसोस कि हमारे प्रधानमंत्री इस मुद्दे को ओबामा के सामने नहीं रख पाए । इस हादसे को किसी भी तरह से नजरअंदाज करने की कोशिश नहीं होना चाहिए । बंद हो चुके यूनियन कार्बाइड कारखाने को ढहाने की बजाय पूरे क्षेत्र को स्मारक में तब्दील करना चाहिए, ताकि यह त्रासदी याद में बनी रहे और सतर्क रहने के लिए प्रेरित करती रहे । (दखल)( सतीनाथ गैस पीड़ितों के नेता हैं )