मानसिकता, नारे और सरोकार
डॉ० सुधीर शर्मा कुछ घटनाएँ, हमारे समाज और जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव डालती हैं । दुर्भाग्यवश ऐसी कुछ घटनाओं के प्रतिक्रिया स्वरूप होने वाली घटनाओं में मीडिया की अधिक रूचि होने के कारण मूल घटना को हम सब भूल जाते हैं एवं जाने-अनजाने में उसकी चर्चा भी कम होती है । अभी-अभी जब हम महिला दिवस मना कर निवृत्त हुए हैं एवं विशेषकर म.प्र. के संदर्भ में जहाँ महिला सशक्तिकरण पर प्रभावी कार्यक्रम लागू किए गए हैं, तीन घटनाएँ मन को झकझोर देने के लिए काफी है । पहली घटना है म.प्र. के मंदसौर जिले की जहाँ वर्षो से वैश्यावृत्ति में संलग्न बांछड़ा समुदाय द्वारा गरीब बालिकाओं को खरीदकर उन्हें एस्ट्राइस एवं हार्मोन के इंजेक्शन देकर अप्राकृतिक शारीरिक विकास करवाकर इस धंधे में बलात् उतारने से संबंधित । मानवता को शर्मसार करती यह घटना हमारे समाज की स्थिति का भयावह चित्र प्रस्तुत करती है । गरीबी किस तरह ममता का सौदा करवाती है एवं वो मासूम बच्चियाँ जिनकी खेलने-कूदने एवं स्कूल जाने की उम्र है मजबूरन इस पाप में धकेल दी जाती हैं । मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली यह घटना इस बात का प्रमाण है कि शासन एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा इस समुदाय के कल्याण हेतु करोड़ों रूपए खर्च के बाद भी स्थिति बद से बदतर हुई है । सड़क के किनारे वैश्यावृत्ति कर पेट पालने वाली बांछड़ा बालाओं का उद्धार तो हमारे कर्णधार नहीं कर सके पर इस बीमारी ने कोढ़ का रूप ले लिया एवं समाज के अन्य वर्गो में भी इस बीमारी ने अपने पैर पसार लिए हैं, बेशक कारण चाहे गरीबी हो । इस रैकेट में पकड़ी गई मासूम बालिकाओं का दुर्भाग्य देखिए कि सामजिक लोक लज्जा से उनके परिजन भी उन्हें अपनाने से इंकार कर रहे हैं । और जिम्मेदार प्रशासन आदत के मुताबिक कोई स्थायी समाधान निकालने की जगह किसी अनाथ आश्रम या नारी उद्धार केन्द्र में उन्हें तात्कालिक रूप से रूकवाने की व्यवस्था करवा रहा है । गरीबी और मजबूरी के चलते मानवता को तार-तार कर देने वाली घटना के बाद मुझे लगता है कि एक समाज के रूप में हमें क्या महिला दिवस मनाने एवं सशक्तीकरण की बातें करने का नैतिक अधिकार है ? साथ ही सरकार से भी जिस प्रकार की प्रतिक्रिया की अपेक्षा थी वह भी पूरी नहीं हुई है । दूसरी घटना- जबलपुर मेडीकल कॉलेज में छात्राओं की गलत कार्यो के बदले परीक्षा में उत्तीर्ण करवाने का मामला । आप कल्पना करिए छात्रावास अधीक्षिका, प्राध्यापक, विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारी एवं वि.वि. में निर्माण कार्यो का ठेकेदार मिलकर शिक्षा के मंदिरों जैसी पवित्र जगह पर लड़कियों की मजबूरी का लाभ उठा रहे थे । पूरे मेडीकल कॉलेज में पिछले तीन वर्षो से इस प्रकार की चर्चा दबी-छुपी जुबान से छात्राओं के बीच थी । पर जिम्मेदारी विभाग के अधिकारियों के कानों पर जूं नहीं रेंगी । कड़ी प्रतिस्पर्धा से मेडीकल कॉलेज में प्रवेश लेने वाली छात्राओं को फेल करने की धमकी दे, पुर्नमूल्यांकन में उत्तीर्ण करवाने के नाम पर आबरू का सौदा करने के कुत्सित प्रयास शिक्षा के मंदिरों में हो रहे हैं, कमिश्नर की अंतरिम रिपोर्ट इस बात की ओर खुला इशारा करती हैं । सभी को राज्य शासन द्वारा गठित समिति के निष्कर्ष का इंतजार है । तीसरी घटना- खंडवा कृषि महाविद्यालय की एक अनुशासनहीन छात्रा के कृत्यों से अन्य छात्राओं के प्रताड़ित होने की । छात्राओं ने हिम्मत की उस बिगड़ैल छात्रा की शिकायत की, परन्तु जैसा होता है डीन एवं वार्डन ने घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया । छात्राओं का असंतोष राजनैतिक प्रश्रय पा उग्र हुआ और मीडिया ने भी मूल घटना को भूल प्राध्यापक के साथ की गई अभद्रता पर फोकस किया । (यहाँ मेरा आशय एक छात्र संगठन द्वारा प्राध्यापक के साथ किए अभद्र व्यवहार को न्यायसंगत ठहराने का नहीं है) वो छात्राएं जो अस्मिता एवं नैतिकता को बचाने की लड़ाई लड़ रही थीं वो खबर दब गई, अनुशासनहीन छात्रा पर कार्रवाई की चर्चा नहीं है । कलेक्टर की रिपोर्ट भी अभद्रता की घटना जिस मूल घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप उद्भुत हुई उसकी चर्चा नहीं करती । तीनों घटनाएँ हमारी मानसिकता एवं महिला सशक्तिकरण की बातें अभी भी ÷नारा' है हमारा ÷सरोकार' नहीं की ओर स्पष्ट इशारा करती हैं । उम्मीद है अगला अंतरर्राष्ट्रीय महिला वर्ष आने तक इन घटनाओं से उठे सवालों को हल करने की दिशा में हम कुछ कर पाएंगे - सरकार भी एवं समाज भी ।