घटते बाघ , जवाब देह कौन ?
आरडी शर्मा मध्य प्रदेश का पन्ना नेशनल पार्क पिछले दो वर्षों से बाघों की घटी संख्या को लेकर लगातार चर्चों में रहा हैं अब एक अच्छी खबर हैं की पन्ना टाइगर रिजर्व में एकाकी जीवन जी रहे राजकुमार बाघ के लिए दो राजकुमारी बाघिन बधावगढ़ व् कान्हा से लेकर छोड़ दी गयी हैं किन्तु इसी के साथ बुरी खबर हैं की अब राजकुमार कही गायब हो गया बहुत खोजबीन करने पर भी उसका पता नहीं चला| कहीं वह भी अन्य बाघों की तरह गुमशुदगी की भेट तो नहीं चढ़गया यह खबर बड़ी चिंता जनक और विशेषकर दोनों राजकुमारियों के लिए बड़ी मनहूस हैं क्यूंकि अगर राजकुमार घर वापस नहीं लौटा तो उन्हें तन्हाई सहने को बाध्य होना पड़ेगा जबकि कान्हा और बधावगढ़ में तो सदैव भगौरिया उत्सव का मौहाल रहता हैं| राजकुमार बाघ अगर वापस नहीं लौटा तो फिर बाघिनों की तरह ही बाघ का विस्थापन यहाँ करना पड़ेगा वास्तव में बाघिनों को यहाँ लेन के पूर्व पन्ना पार्क के बाघ को बेहोश कर उसे रेडियों कलर पहना देना चाहिए था, ताकि उसकी उपस्थिति और गतिविधियों की लगातार जानकारी मिलती रहती यह एक बड़ी चूक हैं कहना से जिस बाघिन को पन्ना लेन के लिए चुना गया था वह आखरी वक्त कही गुम हो गयी और फिर उसकी जगह दूसरी बाघिन को लाया गया | खबर हैं की यह बाघिन गरभिणि हैं यदि यह सही हैं तो गरभिणि बाघिन को बेहोश करने से जो मानसिक आघात लगा होंगा उसका बाघिन और उसके गर्भास्त शावकों पर असर पड़ना निश्चित हैं| पन्ना टाइगर रिजर्व की पारिस्थितिकी के हिसाब से वहां बाघिनों के विस्थापन का यह समय सही नहीं हैं बांधवगढ़ और कान्हा दोनों साल वन क्षेत्र हैं , जो गर्मिओं में भी हरे भरे और ठंडे रहते हैं इसके विपरीत पन्ना सागौन और करघे का क्षेत्र हैं जो गर्मिओं में पूरी तरह पत्र विहीन हो जाता है जिसके कारण गर्मियों में यह क्षेत्र तपने लगते हैं कवर और शिकार की समस्या भी खड़ी हो जाती हैं अभ्यस्त बाघ तो परिस्थिति अनुसार अपने को ढाल लेता हैं किन्तु नवागत बाघिनों को पन्ना की गर्मी और खुले क्षेत्र में निश्चित ही तकलीफ होगी वास्तव में विस्थापन कार्य के लिए नवम्बर का महिना सही समय था |पन्ना टाइगर रिजर्व में २००६ में २४ बाघों के होने का अधिकारिक दावा किया गया था , जो अब सिमट कर एक तक आ गया हैं टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण व् संवर्धन पर अरबो रूपये खर्च होते हैं और उनके संरक्षण मानिटीरिंग व् रिपोटिंग की पुख्ता व्यवस्था हैं इसके बावजूद बाघिनों की इतनी तेजी से घटी संख्या एक गंभीर मामला हैं जिसकी पड़ताल और जवाबदेही तय करने की आवश्यकता हैं | यह कहा जा रहा हैं की पिछले दो वर्षों में पार्क में ठोकिया डाकू गिरोह के आतंक के कारण पार्क की गश्त व्यवस्था ठप हो गयी और शेरो का शिकार होता जा रहा तो यह रोम जलता रहा और नीरो बांसुरी बजता रहा जैसी स्थिति हैं | आमतौर पर डाकू शेर का शिकार नहीं करते किन्तु ऐसी सम्भावना हैं कि इस परिस्थिति का लाभ स्थानीय शिकारियों और संसार चन्द्र जैसे माफिया गिरोहों ने उठा कर शेरों को निशाना बना डाला हो | पन्ना सामंती क्षेत्र है , जहा अनेक प्रकार के " स्वयम भू राजा हैं " और शिकार शौक और शान का पर्याय मन जाता हैं | नेशनल पार्क फिल्ड कि ड्यूटी जोखिम भरी हैं अतः जोखिम से घबराने वालों को इन प्रतिष्ठापूर्ण क्षेत्रों में तैनात नहीं करना चाहियें | उचित होगा कि पन्ना टाइगर रिजर्व में हर स्तर पर कर्त्तव्य निष्ठा , निडर और वन्य प्राणियों के सम्बन्ध में दक्ष युवा अमले को तैनत किया जाये क्यूंकि पन्ना टाइगर रिजर्व अब वन विभाग के लिए प्रतिष्ठा और चुनौती का प्रश्न बन जाता हैं| फिल्ड स्टाफ को हर स्तर पर वाहन , हाथी ,संचार तंत्र ,दूरबीन , नाइट विजन व् आधुनिक हथियारों से लैस किया जाए | अमले में पुलिस के कमांडो भी रखे जायें , ताकि जरुरत पड़ने पर वे दुर्दांत शिकारियों को शिकस्त दे सकें | सब मिलाकर एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाये ताकि पार्क पूरी तरह से शिकार प्रूफ ही जाये | पन्ना राष्ट्रीय उद्यान कि भू-भोगोलिक स्थिति और पारिस्थितिकी बाघों के लिए बहुत उपयुक्त हैं बहती नदी जिसमे जगह- जग बने गार्जेस (गहरे गढ़ढ़ो) में शेर घंटो अठखेलियाँ कर सकता हैं ,दूर तक फैला जंगल क्षेत्र और नदी के किनारे-किनारे अनेक गुफा नुमा स्थान, प्रकृति का इसे शेर का आदर्श रहवास बनाने का तोहफा हैं | वन विभाग अपने अनुभव और ज्ञान के बल पर प्रकृति के इस अनुकूल वातावरण को बनाये रखने और संरक्षण करने में सफल रहा तो पन्ना टाइगर रिजर्व का आंगन कुछ ही समय में बाघों कि दहाड़ और शावकों कि किलकारियों से पुनः गूंज उठेगा ! उस शुभ दिन का सबको इंतजार हैं |