जुड़े जल से जन-जन से
डॉ. सोनाली नरगुन्देजल जीवन है और यह तथ्य सभी जानते हैं। लेकिन इसके दुरूपयोग को कम नहीं किया जा रहा है। इस संबंध में कई देशी-विदेशी संगठन व्यस्त हैं। अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन के आकलन के अनुसार भारत में साल 2025 में एक तिहाई जनसंख्या पानी के लिए तरसेगी। इससे बचने के लिए आज आवश्यक कदम उठाना अनिवार्य है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन के साथ कई विदेशी संगठन कार्यरत हैं। इस संबंध में यूनीसेफ ने एक परियोजना प्रारंभ की है जिसमें पानी को बचाने से लेकर उसकी सफाई के लिए जागरूकता प्रयोग किए जा रहे हैं। इसमें व्यक्तिगत स्वच्छता और स्वास्थय शिक्षा शामिल है।घूमतो जाए म्हारो प्ले पंप घूमतो जाएविकास की बात हो या कोई भी बात स्थानीय बोली या माध्यम से अधिक प्रभावी तरीके से कही जा सकती है। यह बात इस गरबे से साबित है। बिना बिजली की सहायता से कुए से पानी निकालने के लिए पंप लगाया गया है। यह पंप कुएँ पर एक चकरी के रूप में लगाया गया है। इस पर बच्चे दिन भर खेलते हैं और बिना किसी व्यय के पानी खींच लेते हैं। इस निकलने वाले पानी को नलों में भेजा गया है जिससे बच्चों के दैनिक कार्य जैसे बर्तन धोना, कपड़े धोना आदि होते रहते हैं। किसी को भी पानी निकालने के लिए परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। बस खेल-खेल में पानी बाहर। बच्चों को इस प्ले पंप के संचालन के लिए एक गरबा भी सिखाया गया जिसे गाते जाओ और पानी निकालते जाआ।पानी के रंग निरालेग्रे वाटर, ब्लू वाटर, ब्लैक वाटर ये सभी बातें किताबी लगती है। लेकिन यह किताबी नहीं बल्कि हकीकत है। पानी के रंगों में भेद होता है और उसका उपयोग भी भिन्न होता है यह जानकारी सभी को होनी चाहिए। परंतु सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह जानकारी लोगों को कैसे होगी? और उन लोगों को तो होना संभव ही नहीं जो पानी का दुरूपयोग करते रहते हैं। लेकिन पानी को बचाने और उसके सदुपयोग की जानकारी के लिए यूनीसेफ ने जल सुरक्षा और स्वच्छता परियोजना प्रारंभ की है। यह परियोजना मध्यप्रदेश के धार जिले में प्रारंभ की है। इस परियोजना के लिए इस क्षेत्र का चयन करने का कारण यहाँ की जनसंख्या पानी के लिए भूजल पर ही निर्भर है। पानी के बढ़ते दुरूपयोग और घटते भूजल स्तर को देखते हुए यह क्षेत्र सर्वोतम है।इसमें वर्षा जल संग्रहण के साथ उपयोग किए पानी को पुन: उपयोग करने की विधि सम्मिलित है। धार जिले के कुक्षी विकासखंड के गंगानगर आदिवासी कन्या छात्रावास में इसे क्रियान्वित किया गया है। इसी प्रकार इस परियोजना को स्थानीय संस्था वसुधा की सहायता से यूनीसेफ ने जिले के 13 विकासखंडों के विभिन्न छात्रावासों में प्रारंभ किया है। इस परियोजना के लिए छात्रावासों के चयन का कारण वसुधा की गायत्री परिहार ने बताया कि किसी भी योजना को प्रारंभ करने और चलाने के लिए ऐसे समूह की आवश्यकता होती है जो उसे सहजता से समझ लें। छात्रावासों में ऐसे समूह आसानी से मिल जाते हैं जो नई योजनाओं और समझ को ग्रहण करने के लिए तैयार होते हैं। उन्होंने बताया कि परियोजना प्रारंभ करने से पहले इनका मानस बनाना और इन्हें इतनी महत्वपूर्ण सूचना देने के लिए हमें कई पड़ाव पार करने पड़े लेकिन अंत भला तो सब भला। आज इस छात्रावास में अप्रैल माह की गर्मी में भी पानी की कमी नहीं है। यहाँ का जलस्तर अच्छा है। इस परियोजना का लक्ष्य बहुत बड़ा है। इसे प्राप्त करने के लिए विविध सीढ़ियाँ बनाई गई जिसमें जल सुरक्षा के लिए फेरोसीमेंट टेंक, जल स्वच्छता यूनिट, और प्ले पंप लगाया गया।फेरोसीमेंट टेंकसीमेंट एवं लोहे की जालियों के द्वारा ऐसा टेंक बनाया जा रहा है जिसमें बारिश का पानी बचाया जा सकता है। पानी खराब भी नहीं होगा और उसकी क्षमता 50 हजार लीटर तक है। इस टेंक के निर्माण की विधि तकनीकी रूप से परीक्षण कर बनाई गई है। इस कारण इस टेंक में पानी बचाने के साथ उससे निकलने वाले पानी का जल स्तर बढ़ाने में उपयोग संभव है। गर्मी के दिनों में साफ पेयजल उपलब्ध हो सकता है।जल पुन: उपयोग संयंत्रइसमें उपयोग में लाए हुए पानी को पुन: उपयोग में लाने के लिए एक विशिष्ट प्रकार की विधि अपनाई गई है। विद्यार्थियों को नहाने और बर्तन धोने के पानी से क्या-क्या किया जा सकता है इसका विधिवत प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसके लिए वसुधा द्वारा बालमंच, प्रभात फेरियों का आयोजन किया जाता है। सरकार के आई ई सी प्रारूप का सार्थक उपयोग धार जिले में दिखाई देता है। सूचना, शिक्षा और संचार का उपयोग करने में वसुधा के कार्यकर्ता सराहनीय है। यूनीसेफ की इस परियोजना में राज्य सरकार भी साथ दे रही है। इसमें उनके सहयोगियों में जन स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग भी शामिल है। योजना की सार्थकता इसी में है कि राज्य सरकार ने इसे अपनाने का और प्रदेश के अन्य स्थानों पर क्रियान्वित करने का निर्णय किया है।ग्रे वाटर, ब्लू वाटर और ब्लैक वाटर के अंतर को समझाने के साथ उनके उपयोग की सही जानकारी दी जा रही है। उपयोग किए पानी को पुन: बागवानी और सफाई के योग्य बनाया जा रहा है। इसमें छात्रावास के बच्चे संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। वहीं की वार्डन श्रीमती चौहान एवं उनके पति श्री चौहान इस कार्य में यूनीसेफ और वसुधा को सहयोग कर रहे हैं। इसी के साथ स्थानीय जनता को फ्लोराइड उन्मूलन की जानकारी भी दी जा रही है। पेयजल का स्तर तीन सौ फीट तक जाने पर उसमें पाए जाने वाले फ्लोराइड से यहाँ फ्लूरोसिस बीमारी का फेलाव है। इसे रोकने के लिए लोगों में जागरूकता और उन्हें उसका विकल्प सुझाने का जिम्मा भी संस्था ने उठाया है।