उप्र में भाजपा की सरकार बनने के करीब 15 दिनों में ही 300 अवैध कत्लखानों को बंद कर दिया गया, जबकि भाजपा शासित राज्य मप्र में पिछले 13 साल में एक भी अवैध कत्लखाने बंद नहीं कराए जा सके। मजे की बात ये है कि पशुपालन विभाग को ही नहीं मालूम कि प्रदेश में कितने अवैध कत्लखाने हैं, वहीं दूसरी तरफ वैध कत्लखानों से मप्र में मांस का उत्पादन चार साल में करीब दो गुना हो गया है।
मध्यप्रदेश में करीब ढाई हजार कत्लखाने चल रहे हैं, जिसमें अधिकतर अवैध हैं। इनमें राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की गई प्रक्रिया का पालन नहीं होता है। पशुपालन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश में कई ऐसे कत्लखाने हैं, जिनकी सूची विभाग के पास नहीं है। कई मीट शॉप संचालक भी अपने स्तर पर कत्लखाने चलाते हैं, जबकि उनके पास इसका लाइसेंस नहीं है।
पशु चिकित्सक डॉ. आकाश वाघमारे के मुताबिक कुछ समय पहले कत्लखानों के लिए एफएसएसएआई की ओर से लाइसेंस अनिवार्य किया गया था, लेकिन प्रदेश के ज्यादातर कत्लखानों के पास इसका लाइसेंस नहीं है। यहां मानकों का भी पालन नहीं होता है। खास तौर पर पशुओं को मारने के लिए भी आवश्यक शर्तों का पालन नहीं होता।
कोई भी पशु बिना मेडिकल जांच के कत्लखानों में काटा नहीं जा सकता। कत्लखाने में साफ-सफाई की अत्याधुनिक सुविधाएं होनी चाहिए। मवेशी के संबंध में पूरा लेखा-जोखा जैसे उसकी उम्र, वजन सहित फिटनेस संबंधी ब्योरा दर्ज होना जरूरी है। मांस के परिवहन के लिए एसी डिब्बाबंद वाहन होना अनिवार्य है।
मप्र में पिछले चार सालों में वैध कत्लखानों से ही मांस का उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है। 2011-12 में 39 टन मांस उत्पादन होता था, जो 2015-16 में बढ़कर 70 टन हो गया है।
पशुपालन मंत्री अंतर सिंह आर्य कहते हैं अवैध बूचड़खाने बंद करने का फैसला मुख्यमंत्री ही लेंगे।