चुनावों के दौरान इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी किए जाने संबंधी विपक्षी दलों की आशंकाओं पर निर्वाचन आयोग ने सफाई दी है। उसने कहा है कि वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ करना संभव नहीं है। ये इतनी मजबूत हैं कि यदि निर्माता भी चाहे तो इनमें कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता है।
विपक्षी दलों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने के मद्देनजर चुनाव आयोग ने सभी आशंकाओं का सवाल-जवाब के क्रम में उत्तर दिया है। जैसे ईवीएम को क्या हैक किया जा सकता है?
आयोग ने इसका जवाब \'नहीं\' में दिया है। हैकिंग संभव नहीं उसने स्पष्ट किया है कि एम1 (मॉडल वन) ईवीएम का उत्पादन 2006 तक किया गया। इसमें वह सभी तकनीकी फीचर थे, जिससे इसे हैक किया जाना संभव नहीं था।
2006 के बाद एम2 (मॉडल टू) ईवीएम तैयार की गईं। 2012 तक इनके \'की कोड की डायनेमिक कोडिंग\' कर इन्हें तकनीकी रूप से और भी उन्नत किया गया ताकि बटन दबाने पर संदेश बैलेट यूनिट से कंट्रोल यूनिट तक कूट भाषा (एनक्रिप्टेड फार्म) में पहुंचना सुनिश्चित हो जाता है।
कंप्यूटर नियंत्रित नहीं ईवीएम आयोग ने यह भी साफ किया है कि उसका ईवीएम कंप्यूटर नियंत्रित नहीं है। यह इंटरनेट अथवा किसी भी दूसरे नेटवर्क से नहीं जुड़ी हैं। इसे रिमोट से हैक नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा इन मशीनों में फ्रीक्वेंसी रिसीवर या वायरलेस डाटा के लिए डिकोडर नहीं है। लिहाजा इनको किसी भी दूसरे उपकरण से नहीं जोड़ा जा सकता है।
ऐसे में वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ करना संभव ही नहीं है। हेरफेर संभव नहीं आयोग ने इस आशंका को भी खारिज कर दिया है कि इन मशीनों में निर्माता द्वारा हेरफेर किया जा सकता है। उसने बताया है कि इन मशीनों का निर्माण 2006 से अलग-अलग वर्षों में करा कर विभिन्न राज्यों को भेजा गया।
इसी तरह ईवीएम निर्माता कंपनियां इलेक्ट्रानिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआइएल) और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) वर्षों पहले यह कैसे जान लेंगी कि किस क्षेत्र से कौन सा उम्मीदवार है और मत पत्र पर उसका क्रमांक क्या होगा?
चुनाव आयोग ने इस आशंका को भी निराधार करार दिया है कि मतदान से पूर्व ईवीएम में ट्रोजन हॉर्स (एक हानिकारक कंप्यूटर प्रोग्राम, जो मशीन के सिस्टम को नियंत्रित कर लेता है) से लैस किया जा सकता है। उसने बताया है कि 2013 के बाद बनीं एम3 (मॉडल थ्री) ईवीएम टेंपर डिटेक्शन (छेड़छाड़ का पता लगाने) और सेल्फ डायग्नोस्टिक (आत्म निदान) सरीखे अतिरिक्त तकनीकी फीचर से लैस हैं।
टेंपर डिटेक्शन फीचर के चलते जैसे ही कोई मशीन खोलेगा, ईवीएम पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाएगी। ईवीएम को जैसे ही चालू किया जाता है सेल्फ डायग्नोस्टिक फीचर सक्रिय हो जाता है। यह मशीन को हर समय चेक करता रहता है। देश में ही बनती हैं ईवीएम आयोग के अनुसार, ईवीएम का निर्माण देश में ही किया जाता है।
इसका सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग कोड देश में ही लिखा जाता है। फिर उसे मशीन कोड में तब्दील कर विदेशी चिप निर्माताओं को दिया जाता है। देश में अभी सेमी कंडक्टर माइक्रोचिप बनाने की सुविधा नहीं है।
हर माइक्रोचिप पर निर्माता के हस्ताक्षर हर माइक्रोचिप की अलग पहचान संख्या होती है, जो मेमोरी में दर्ज होती है और उन पर निर्माताओं के डिजिटल हस्ताक्षर होते हैं। इसलिए माइक्रोचिप को बदले जाने की आशंका निर्मूल है। माइक्रोचिप बदलने की किसी भी कोशिश को पकड़ने का इंतजाम है और ईवीएम फौरन निष्क्रिय हो जाएगी।
कड़ी सुरक्षा में रखी जाती हैं मशीनें आयोग ने बताया है कि जिला मुख्यालय पर इन मशीनों को डबल लॉक सिस्टम के तहत बहुस्तरीय कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है। कोई भी अधिकारी स्ट्रांग रूम का ताला नहीं खोल सकता। वे केवल यह सुनिश्चित करते रहते हैं कि ताला ठीक तरीके से लगा और सुरक्षित है अथवा नहीं।
हैकिंग के डर से अमेरिका में ईवीएम नहीं अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किए जाने के बारे में भी आयोग ने सफाई दी है। उसका कहना है कि इन देशों में मशीनें पूरी तरह से कंप्यूटर नियंत्रित और नेटवर्क से जुड़ी होती हैं। इससे इनके हैक होने का खतरा बना रहता है।