40 साल में नहीं बन पाई 56 किलोमीटर सड़क
दोरनापाल- जगरगुंडा

दोरनापाल से जगरगुंडा तक 56 किलोमीटर की सड़क पिछले चार दशक से सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। इसका निर्माण चल रहा है। कभी वनोपज का केंद्र और उप तहसील मुख्यालय रहे जगरगुंडा में अब कंटीले तारों से घिरा एक सलवा जुडूम कैंप है। तारों के पार मौत का सामान लेकर नक्सली खड़े रहते हैं। जगरगुंडा को दुनिया से जोड़ने के तीन रास्ते हैं, जिनमें से दो पर बम बिछे हैं और तीसरे पर जब चाहे तब नक्सली एंबुश लगाकर जवानों को शहीद कर देते हैं।

यानी नक्सलवाद ने इसे टापू बना दिया है। इसी रास्ते पर 2010 में अब तक की सबसे बड़ी नक्सल वारदात हुई थी, जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। जगरगुंडा सड़क निर्माण को सुरक्षा दे रहे सीआरपीएफ के 25 जवानों की सोमवार को शहादत के बाद एक बार फिर यह सड़क सुर्खियों में है। इससे पहले बासागुड़ा की तरफ सड़क निर्माण सुरक्षा में लगे 24 जवान अलग- अलग हमलों में शहीद हुए हैं।

जगरगुंडा से बीजापुर के बासागुड़ा तक, दंतेवाड़ा के अरनपुर तक और सुकमा के दोरनापाल तक तीन रास्ते हैं। दोरनापाल-जगरगुंडा 56 किमी सड़क पर कई घटनाएं हो चुकी हैं। 2008 में मुकरम के पास नक्सलियों ने सड़क काट दी थी। जगरगुंडा से एक पार्टी थानेदार हेमंत मंडावी के नेतृत्व में गड्ढा पाटने निकली और नक्सलियों के एंबुश में फंस गई। इसमें 12 जवानों ने शहादत दी। सड़क के लिए कई बार टेंडर निकाला गया, लेकिन कोई ठेकेदार सामने नहीं आया।

डीजी नक्सल ऑपरेशन तथा पुलिस हाउसिंग बोर्ड के एमडी डीएम अवस्थी ने बताया कि अब पुलिस खुद सड़क बना रही है। बासागुड़ा और अरनपुर की ओर से आवा-जाही चार दशक से बंद है। दोरनापाल से एकमात्र रास्ता है जो जगरगुंडा तक जाता है। 2007 में जगरगुंडा में सलवा जुडूम कैंप खुलने के बाद नक्सलियों ने चिंतलनार के आगे 12 किमी मार्ग पर सभी पुल उड़ा दिए। बासागुड़ा और दोरनापाल दोनों ओर से जगरगुंडा सड़क बन रही है।

बस्तर में कोंटा के मरईगुड़ा से भेज्जी, चिंतागुफा, जगरगुंडा, किरंदुल, दंतेवाड़ा, बारसूर, नारायणपुर, अंतागढ़ होते हुए राजनांदगांव में एनएच तक करीब 4 सौ किमी सड़क ऐसी है, जिसका अधिकांश हिस्सा नक्सलियों के कब्जे में है। भेज्जी में इसी सड़क पर बन रहे पुल की सुरक्षा में लगे जवानों पर 11 मार्च को हमला किया गया था, जिसमें 12 जवान शहीद हुए थे।

बस्तर में सरकार एक हजार किमी लंबाई की 27 सड़कें बना रही है। बीजापुर से बासागुड़ा तक 52 किमी सड़क बन चुकी है। बीजापुर-गंगालूर 22 किमी सीसी सड़क बनाई गई है। इस साल केंद्रीय बजट में बस्तर के नक्सल इलाकों में 556 किमी सड़कों के लिए अलग से राशि मिली है। इससे नक्सली बेचैन हैं। नक्सली कहते हैं कि हमारे इलाके में किसी के पास साइकिल तक नहीं है। यहां सड़क की क्या जरूरत। सरकार सड़क इसलिए बना रही है ताकि यहां बड़ी कंपनियां आ पाएं और बस्तर के संसाधनों को लूट सकें।

बीजापुर जिले में आवापल्ली-जगरगुंडा सड़क पर सीआरपीएफ के 24 जवानों ने शहादत दी है। दंतेवाड़ा जिले में अरनपुर-जगरगुंडा मार्ग पर सुरक्षा में तैनात एक जवान का पैर नक्सलियों के बिछाए प्रेशर बम की चपेट में आ गया। इसमें जवान की जान चली गई।

बीजापुर जिले में भैरमगढ़ से बीजापुर तक एनएच 63 के निर्माण के दौरान नक्सलियों ने 13 बार ब्लॉस्ट किया। इन घटनाओं में 2 जवान शहीद हुए। बीजापुर में ही बासागुड़ा से तर्रेम तक 12 किमी सड़क निर्माण के दौरान कई बार आईईडी ब्लॉस्ट किया गया। दो जवान शहीद और कई घायल हुए।  गीदम से भैरमगढ़ के बीच सड़क निर्माण के दौरान पुंडरी के पास ब्लॉस्ट हुआ। इसमें सीएएफ का एक जवान शहीद हुआ। बीजापुर के मिरतुर मार्ग के निर्माण में सीएएफ के एक सहायक कमांडेंट शहीद हुए।