आर.बी.त्रिपाठी
कुदरत ने जैसे पचमढ़ी को दिल-खोलकर प्राकृतिक सौन्दर्य बख्शा है। चारों ओर पहाड़ों के उन्नत शिखर, हरियाली और वन, गहरी खाइयाँ, स्वच्छन्द विचरण करते वन्य-प्राणी, रंग-बिरंगे दुर्लभ पक्षियों के झुण्ड शांत वातावरण में फैली अलग तरह की सोंधी खुशबू और स्वच्छ हवा स्वास्थ्य के लिये बहुत फायदेमंद है। देश के हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में बहुत नजदीक गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने या घूमने-फिरने के शौकीन लोगों के लिये कोई अच्छी जगह है तो वह पचमढ़ी है। सतपुड़ा की रानी कही जाने वाली पचमढ़ी की सुरम्य वादियाँ और नयनाभिराम दृश्य किसी को भी पुलकित और मंत्रमुग्ध करने के लिये पर्याप्त है। लेकिन पचमढ़ी आज भी एक अबूझ पहेली की तरह है। यहाँ का इतिहास, जनश्रुतियाँ और किंवदंतियाँ सदैव ही आपको कुछ और नया जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करती है।
राजधानी भोपाल से तकरीबन 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पचमढ़ी। भोपाल से पिपरिया तक सड़क सीधी-सपाट है। बाद में मटकुली से पगारा होकर पचमढ़ी तक जाने वाली टेड़ी-मेड़ी सड़क, रास्ते के दोनों ओर पहाड़ एवं घने जंगल संभलकर चलने के संकेत लगे होने के बावजूद किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करते दिखते हैं। सतपुड़ा नेशनल पार्क से होकर गुजरता रास्ता और वन एवं वन्य-प्राणियों को किसी तरह का नुकसान न पहुँचाने की हिदायतें पढ़ते हुए आप आगे और आगे बढ़ते जाइये। एकाधिक स्थान पर अंकित चेतावनी कि यह इलाका मधुमक्खियों का है यहाँ रुकना ठीक नहीं है, भी एहतियात बरतने को प्रेरित करती है। सड़क के दोनों ओर उछल-कूद करते लाल मुँह वाले बंदर बरबस ही आपका ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। लेकिन यहाँ भी लिखा मिलेगा कि ‘जंगली जानवरों को खाने के लिये कोई चीज न दें’। अलसुबह या शाम के धुंधलके में आपकी मुलाकात किसी अ ्य जंगली जानवर से भी हो सकती है।
भरी गर्मियों में किसी गुफा के नीचे से गुजरते हुए आपके सर पर शीतल जल की बूँदें चट्टानों से रिसकर गिरें तो आपको कैसा अनुभव होगा? पचमढ़ी में बड़ा महादेव और जटाशंकर मंदिर जाने वाले श्रृद्धालु और पर्यटकों को खोहनुमा पहाडि़यों और गुफाओं के नीचे से होकर गुजरना पड़ता है और ठंडे पानी की बूँदें जैसे उनका अभिनंदन करते नजर आती हैं। जटाशंकर बहुत ठंडा स्थान है, जो पहाड़ों के बीच बनी खोह के मध्य स्थित है। यहाँ आस-पास बहुतायत में आम के पेड़ लगे हैं। पहाड़ी चट्टानों के बीच आम और अन्य प्रजाति के विशाल पेड़ों की उपस्थिति स्वयं में आश्चर्य के साथ सुकून भी देती है।
बड़ा महादेव मंदिर परिसर में एक ब्रिटिश दंपति से मिलकर ज्ञात हुआ कि 75 वर्षीय श्री मॉन रॉड पैर से लाचार होने से बैसाखी के सहारे चलते हुए यहाँ महादेव के दर्शन करने पहुँचे हैं। उन्होंने बताया कि दुर्गम तीर्थ स्थल केदारनाथ के अतिरिक्त भारत में स्थित सभी ज्योतिर्लिंग के वे दर्शन कर चुके हैं। उन्हें भारत भ्रमण पर आना बहुत अच्छा लगता है और वे प्राय: हरेक साल अपनी पत्नी नोरीन के साथ यहाँ आते हैं। इस दम्पति की आँखों की चमक और इस उम्र में उनकी श्रद्धा तथा हौसला देखते ही बनता है। जटाशंकर मंदिर के नजदीक हमारी भेंट अहमदाबाद के सी.एन. स्कूल से आए नन्हे-मुन्ने विद्यार्थियों से होती है। अहमदाबाद से यहाँ तकरीबन 72 बच्चों का ग्रुप भ्रमण पर आया हुआ था। सी.एन. स्कूल के हर्ष वोरा, जश, हेली, विश्वा और दर्शिनी ने बड़े प्रफुल्लित होकर बताया कि उन्हें पचमढ़ी आकर यहाँ की हरियाली तथा सुंदरता देखकर बहुत खुशी हुई है। उनके पूरे ग्रुप को पचमढ़ी बहुत भाया है। वे फिर से अधिक वक्त निकालकर परिवार के साथ पचमढ़ी आना चाहेंगे।
वस्तुत: पचमढ़ी स्थित मंदिर और कुछ अन्य स्थान ‘नेचुरल एयर कंडीशनर’ की तरह हैं। यहाँ स्वाभाविक रूप से वातावरण में ठंडक बनी रहती है। यहाँ की आबोहवा और वातावरण को स्वास्थ्य के अत्यंत अनुकूल और लाभप्रद माना गया है। औषधियों में प्रयुक्त प्राचीन जड़ी-बूटियों का भंडार और दुर्लभ आयुर्वेदिक प्लांट यहाँ हैं। इस तरह पचमढ़ी को बॉटनी का भंडार भी कहा जाता है। पूर्व में यहाँ ‘सेनेटोरियम’ भी बनाया गया था जिसमें स्वास्थ्य लाभ के लिये दूर-दूर के स्थानों से लोग यहाँ आते थे। आज भी दमा, श्वांस, मनोरोग और क्षय रोग से पीडि़त मरीजों के लिये पचमढ़ी स्वास्थ्यप्रद जगह है।
पर्यटन विकास निगम के चंपक बंगलो में बहुतायत से दुर्लभ पेड़ों की प्रजातियाँ आज भी मौजूद हैं। समुचित देख-भाल की वजह से यहाँ आम की विभिन्न प्रजातियाँ, गुलाब-जामुन के पेड़, स्वर्ण चंपा, विशाल तने वाला चंपा, तून, महुआ, पाखड़, कटहल, सिलवर ओक (सरू), क्रिस्मस ट्री, जामुन बड़ी एवं देशी जामुन सहित फूलों की अनेक प्रजातियाँ हैं। इसी का सुफल है कि चंपक बंगलो के संपूर्ण परिसर में एक सौंधी सी महक और वातावरण में सुगंधित खुशबू हमेशा फैली रहती है। सैलानियों की सुविधा के लिये इन दुर्लभ पेड़ों के नाम तख्ती के रूप में प्रदर्शित किये गये हैं। उद्यानिकी विभाग के श्री लोखण्डे ने यहाँ स्थित उद्यानिकी नर्सरी में फूलों और फलदार पौधों के रोपण में अनेक नये-नये प्रयोग किये थे। लेकिन प्रकृति की इस अनुपम भेंट का आनंद लेने के लिये आपको चंपक बंगलो में रुकना होगा।
चंपक बंगलो पूर्व में अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पचमढ़ी स्थित निवास था। इसी परिसर में तत्कालीन केबिनेट की बैठक हुआ करती थी। केबिनेट की बैठक के हॉल में पर्यटन विकास निगम द्वारा मध्यप्रदेश जनसंपर्क के सहयोग से तत्कालीन केबिनेट बैठकों, राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री सहित मंत्री-मंडल के और विभिन्न ईवेंट्स के दुर्लभ श्वेत-श्याम छायाचित्र करीने से मढ़वाकर प्रदर्शित किये गये हैं। इसे केबिनेट हाल का नाम दिया गया है। इनके जरिये आप अविभाजित मध्यप्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी पचमढ़ी के विभिन्न दुर्लभ क्षण से रू-ब-रू होते हैं। यह एक सुखद संयोग कहा जा सकता है कि पिछले दिनों मध्यप्रदेश मंत्रि-परिषद की महत्वपूर्ण बैठक और पर्यटन केबिनेट इसी स्थान पर संपन्न हुई जिसमें महत्वपूर्ण फैसले लिये गये।
पचमढ़ी में तकरीबन आधा सैकड़ा स्थल पर्यटकों को लुभाने के लिये मौजूद हैं। लेकिन खास तौर पर लगभग साढ़े चार हजार फीट ऊँचाई पर स्थित धूपगढ़ पर सूर्यास्त का नजारा देखना किसी रोमांच से कम नहीं। यह स्थान प्रदेश की सर्वाधिक ऊँचाई वाले पहाड़ की चोटी है। सूर्यास्त के समय छायी रहने वाली धुंध एक अलग ही नजारा उपस्थित करती है। यहाँ आस-पास की पहा़ड़ियों की नेचुरल कटिंग अलग-अलग प्रकार की आकृतियों का एहसास करवाती है। वाकई ‘प्रकृति की भव्य छटाओं का अलौकिक दर्शन’ यहाँ होता है।
पचमढ़ी स्थित प्राचीन मंदिर प्राकृतिक रूप से निर्मित हैं। पांडव गुफाएँ भी एक अबूझ पहेली की तरह है। इनके अतिरिक्त चौरागढ़, गुप्त महादेव, नागद्वारी के आस-पास सर्कल में चिंतामणि, गुप्त गंगा के अतिरिक्त प्राचीन चर्च भी यहाँ स्थित हैं। नागपंचमी पर यहाँ विशेष उत्सव होता है, जो प्राय: जुलाई माह में आती है।
पचमढ़ी की खोज करने वाले केप्टन जेम्स फोरसिथ द्वारा निर्मित बाइसन भवन जिसे बाद में वन विभाग द्वारा ‘बाइसन लॉज’ व्याख्या केन्द्र का नाम दिया गया, एक नए स्वरूप में यहाँ स्थित है। बाइसन लॉज स्थित वानिकी संग्रहालय में पचमढ़ी के इतिहास, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, बाघ के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी, बाघ संरक्षण के तरीके, विभिन्न प्रजातियों के जंगली जानवर, दुर्लभ पक्षियों और वनस्पति आदि की रुचिकर जानकारी प्रदर्शित की गई है। संग्रहालय में फोरसिथ की खोज, बाइसन लॉज, पांडवों का निवास, साल और सागौन के पेड़ों का संगम, वन्य-जीव गलियारे, प्राणवान वन के साथ ही दुर्लभ पक्षी दूधराज, किलकिला सहित अन्य दुर्लभ पक्षियों की रोचक जानकारी प्रदर्शित की गई है। पचमढ़ी के प्रसिद्ध बी फॉल, कैथलिक चर्च, प्रियदर्शिनी पॉइंट (पोरसिथ पॉइंट), जटाशंकर गुफा, हांडी खोह सहित अन्य पर्यटन स्थलों की जानकारी भी प्रदर्शित की गई है।
पचमढ़ी में बारहों महीने पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती है। ग्रीष्मकालीन अवकाश में भी यहाँ मध्यप्रदेश सहित मुख्यत: मुम्बई, नई दिल्ली, कोलकाता, महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल से पर्यटक भ्रमण पर आते हैं। पचमढ़ी को पर्यटन के नक्शे पर लाकर ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को पचमढ़ी के प्रति आकर्षित करने में मध्यप्रदेश पर्यटन का विशेष योगदान रहा है। विदेशी पर्यटक यहाँ प्राय: जंगल, ट्रेकिंग, हाइकिंग, कैम्पिंग और बर्ड वॉचिंग के उद्देश्य से आते हैं। लेकिन देश भर के पर्यटकों को पचमढ़ी अपनी प्राकृतिक सुन्दरता, हरियाली, वर्षाकाल में अनगिनत वॉटर फॉल, सघन वन और वन्य-प्राणियों के जरिये आकर्षित करती रही है।
सैलानियों की सुविधा के लिये पचमढ़ी में राज्य शासन एवं प्रदेश के पर्यटन निगम ने सभी जरूरी सहूलियतें जुटाई हैं। पचमढ़ी में राज्य पर्यटन निगम की लगभग दर्जन भर इकाईयाँ स्थित हैं। इनमें चंपक बंगलो, अमलतास, नीलांबर, पंचवटी, देवदारू, कर्निकर, रॉक एण्ड मेनर, हिलटॉप बंगलो, ग्लेन व्यू होटल, होटल आर्क आदि प्रमुख हैं। मटकुली से पचमढ़ी के बीच पड़ने वाली देनवा नदी पर उन्नत पुल बन जाने से पचमढ़ी की यात्रा अब बारहों महीने और भी सुगम हो गई है। पचमढ़ी में पर्यटन और वन विभाग से वर्षों से जुड़े श्री किशन लाल गाइड बताते हैं कि ‘ग्रीष्म में आम, जामुन, चारोली (अचार) और महुआ की महक सैलानियों को लुभाती है’। आम की विशेष प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं जो बड़ी स्वादिष्ट हैं। गुफाएँ, रॉक पेंटिंग और केव्स पेंटिंग भी यहाँ देखने को मिलती हैं। महाशिवरात्रि पर्व यहाँ का विशेष त्यौहार है जब दूर-दूर से आकर श्रद्धालुजन चौरागढ़ में त्रिशूल चढ़ा कर मन्नत मांगते हैं।
राजेन्द्र गिरि उद्यान एक अन्य दर्शनीय स्थल है जो पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की प्रिय जगह रही है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अनेक बार पचमढ़ी आए और उन्होंने यहाँ काफी वक्त बिताया। जटाशंकर के रास्ते में निम्बूभोज गुफाएँ भी पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती हैं। दिसम्बर-जनवरी के माह में शून्य डिग्री तापमान में यहाँ पानी में बर्फ तक जम जाती है वहीं बारिश के समय बादलों के झुण्ड का जमीन की ओर आना और मकानों, भवनों की खिड़कियों से टकराना, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और पचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व एक अलग तरह के आनंद का अनुभव कहा जा सकता है।
हालांकि पचमढ़ी से जुड़ी कोई महल या राजा-रानी की कहानी आम तौर पर प्रचलित नहीं है तथापि मान्यता है कि यह एक गोंडवाना आदिवासी बहुल स्थल था। यहाँ गोंड, कोरकू, भारिया, पिगमी (मवासी) आदिवासी रहते थे। उनके वंशज आज भी यहाँ निवास करते हैं। उनके आराध्य लोहारी बाबा का पूजा स्थल आज भी विद्यमान है। राजा भभूति का किला और किले में वॉटर मेनेजमेंट के अनुपम उदाहरण के रूप में याद किया जाता है। पचमढ़ी एक ऐसी जगह है जो इंसान को खूबसूरती के नायाब तोहफे देती हैं। बदले में वह आपसे यही अपेक्षा करती है कि पचमढ़ी को बस पचमढ़ी ही रहने दें।