मजदूर और शिक्षक के हालात एक जैसे
मजदूर और शिक्षक के हालात एक जैसे
स्कूल चलो अभियान का जोर-शोर से प्रचार करने वाले मप्र में स्कूल शिक्षा से जुड़ी एक विडंबना देखिए। यहां स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की हालत मजदूरों से भी बदतर है। इन शिक्षकों को मिलने वाला मानदेय/वेतन उन मजदूरों की मजदूरों से भी कम है, जो सड़क पर छाड़ू लगाने से लेकर र्इंट-पत्थर ढोने तक का काम करते हैं। यहां बात हो रही है अतिथि शिक्षकों की। वर्ग एक और दो की श्रेणियों में विभाजित किए गए ये शिक्षक प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर के बच्चों में शिक्षा का उजियारा बिखेरने का काम करते हैं। शिक्षा क्षेत्र की इस विडंबना की तरफ या तो सरकार का ध्यान नहीं है या इस पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता। तमाम सुख-सुविधाओं से दूर मुख्यत: ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ाने वाले यह शिक्षक आर्थिक स्थिति के मामले में मजदूरों से भी बदतर हैं। शिक्षकों की तरह ही मजदूरों को भी तीन श्रेणियों अकुशल, अर्धकुशल और कुशल श्रेणियों में बांटा गया है। तीनों श्रेणियों के संविदा शिक्षकों का मानदेय/वेतन इन तीनों श्रेणियों के मजदूरों से भी कम है। एक कुशल मजदूर को प्रतिदिन न्यूनतम 188 रुपए मिलना अनिवार्य है। श्रम विभाग ने न्यूनतम मजदूरी तय कर रखी है। शिक्षकों और मजदूर के वेतन की यह जानकारी हाल ही में विधानसभा में स्कूल शिक्षा मंत्री पारस जैन ने एक सदस्य के प्रश्न के उत्तर में दी थी।