अलग राज्य बनने के 17 साल बाद ही छत्तीसगढ़ में अलग बस्तर की मांग उठने लगी है। स्थानीय मुद्दों को लेकर पिछले कुछ दिनों से आंदोलन कर रहे सर्व आदिवासी समाज ने यह आवाज बुलंद की है। हालांकि अभी सीधे-सीधे अलग राज्य की मांग नहीं की गई है, लेकिन स्वर यही है।
शासन-प्रशासन को चेतावनी दी गई है कि यदि आदिवासियों की उपेक्षा व शोषण जारी रहा। लंबित मांगें 6 महीने में पूरी नहीं हुईं तो पृथक बस्तर राज्य के लिए आंदोलन शुरू किया जाएगा।
6 सितंबर को आदिवासियों के बस्तर संभाग बंद के दौरान प्रशासन ने उन्हें चर्चा के लिए बुलाया था। मंगलवार की बैठक के बाद आदिवासियों ने 20 सितंबर का चक्काजाम प्रदर्शन स्थगित कर दिया। संभागायुक्त कार्यालय में चली मैराथन चर्चा में आदिवासी नेताओं के दो टूक से प्रशासन में हड़कंप है।
पालनार कन्या आश्रम में आदिवासी छात्राओं से सुरक्षा बल के जवानों के छेड़छाड़, नगरनार स्टील प्लांट के विनिवेश, बंग समुदाय के लोगों को बाहर निकालने व आदिवासियों के विरुद्घ अत्याचार की घटनाओं को रोकने जैसी मांगों को लेकर सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी कमिश्नर दिलीप वासनीकर और आईजी विवेकानंद के बुलावे पर बैठक में शामिल हुए।
कमिश्नर कार्यालय सभागार में दोपहर 1 बजे से शाम साढ़े 5 बजे तक चर्चा चली। इसमें बस्तर, कांकेर व दंतेवाड़ा जिले के कलेक्टर व एसपी के अलावा आदिवासी समाज के नेता प्रमुख रूप से मौजूद थे।
समाज का नेतृत्व कर रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम व पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने मीडिया से कहा कि बस्तर में आदिवासियों से जुड़े संवैधानिक अधिकारों को लागू करने में शासन-प्रशासन फेल रहा है। नेताम ने कहा कि पहली बार प्रशासन ने आदिवासी समाज के साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास का वे स्वागत करते हैं। अब बारी समाज के उठाए विषयों पर कार्रवाई की है। पोटाई ने कहा कि 6 माह में ठोस कार्रवाई नहीं होने पर अलग बस्तर राज्य की मांग ही अंतिम विकल्प होगा।
नाराज है आदिवासी समाज
पालनार घटना : 31 जुलाई को दंतेवाड़ा के पालनार कन्या आश्रम में रक्षाबंधन पर कार्यक्रम में आदिवासी छात्राओं से सुरक्षा बल के जवानों द्वारा छेड़छाड़ का आरोप है। मामले में 2 आरोपी जेल में हैं।
परलकोट घटना : 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी समाज की रैली व सभा में पखांजूर में समुदाय विशेष के लोगों ने खलल डाला था।
विनिवेश : नगरनार में निर्माणाधीन स्टील प्लांट के विनिवेश के केन्द्र सरकार के फैसले का समाज ने विरोध किया है। समाज का कहना है कि विनिवेश का फैसला बस्तर और आदिवासियों के साथ धोखा है।
पांचवी अनुसूची और पेसा कानून का कड़ाई से पालन नहीं करने का आरोप भी मुख्य मुद्दा है। इसके अलावा कई छोटी-बड़ी मांगें समाज ने की है।