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भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक रद्द होने से आदिवासी समाज उत्साहित जरूर है लेकिन उनकी सरकार से नाराजगी अभी खत्म नहीं हुई है। सर्व आदिवासी समाज ने एक सेमीनार में आदिवासियों के मुद्दे पर मंथन किया । इस बैठक के बाद 14 जनवरी को आदिवासी समाज के पक्ष और विपक्ष के सभी विधायकों को भी हाजिर होने का नोटिस समाज ने जारी किया है।
आदिवासियों में इस बात को लेकर बेहद नाराजगी है कि सरकार आदिवासी विरोधी फैसले ले लेती है और विधायक मंत्री चुप रहते हैं। सर्व आदिवासी समाज बस्तर के संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने तो यहां तक कहा है कि अब समाज ऐसे नेताओं-मंत्रियों के खिलाफ देशद्रोह के तहत 124 (अ) का मुकदमा भी दर्ज कराएगा जो आदिवासी हितों के खिलाफ फैसलों में शामिल रहते हैं।
सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के सचिव बीएस रावटे ने नईदुनिया से कहा कि आदिवासियों की जमीन लेने का सरकार का विधेयक पूरी तरह असंवैधानिक था। केंद्र सरकार ने भू अर्जन का कानून पहले से बनाया है। आदिवासी समाज ने फैक्ट्री, रेल लाइन, बांध आदि विकास के कामों के लिए भूमि देने से कभी इंकार नहीं किया। फिर नया कानून लाने की मंशा क्या थी यह समझना होगा। रावटे ने कहा कि समाज के 10-12 ऐसे मुद्दे हैं जो सालों से लंबित हैं।
अब समाज उन मुद्दों का हल निकालने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगा। आदिवासी समाज को जाति के आधार पर आरक्षण मिलता है लेकिन इस सरकार ने आदिवासी समाज में क्रीमी लेयर की व्यवस्था कर दी है। ढाई लाख सालाना आय वाले परिवारों के बच्चों को स्कॉलरशिप नहीं दी जा रही। ट्राइबल विभाग के स्कूलों का शिक्षा विभाग में संविलियन कर दिया गया है। केंद्र से 275 (1) धारा के अंतर्गत आदिवासी उत्थान के लिए जो अनुदान आता है वह कहां जाएगा।
यहां पीएससी और यूपीएससी की प्रोत्साहन राशि भी इस साल बजट से गायब कर दी गई है। बस्तर में आदिवासियों पर अत्याचार किया जा रहा है। ऐसे मामलों की जांच नहीं हो रही। जांच हो भी रही तो दोषी पुलिस कर्मियों पर एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही। सलवा जुड़ूम में 640 गांव उजड़े। उन गांवों के डेढ़ लाख आदिवासी अब भी लापता हैं। उनकी तलाश की पहल नहीं की जा रही है। फर्जी मामलों में गिरफ्तार आदिवासियों की रिहाई के लिए बनी निर्मला बुच कमेटी की रिपोर्ट कहां गई किसी को पता नहीं है।
बस्तर आदिवासी समाज के नेता प्रकाश ठाकुर ने कहा कि 14 जनवरी की बैठक में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने पर सहमति बनाई जाएगी। बस्तर से ग्राम सभाओं से पारित कर करीब 5 हजार प्रस्ताव राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल को भेजे गए। इससे सरकार पर दबाव पड़ा। दूसरे मुद्दों पर भी यही दबाव बनाने की जरूरत है।
MadhyaBharat
13 January 2018
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