बस्तर में के विजय कुमार की रणनीति से नक्सलवाद छोटे दायरे तक सिमट गया है।
उन्होंने अबूझमाड़ तक फोर्स को पहुुंचाया। बासिंग में कैंप खुला तो नक्सलियों ने भारी गोलाबारी की।
लेकिन विजय कुमार ने जवानों को हौसला बनाए रखने को कहा। अब वहां कैंप है।
सुकमा के पालोड़ी जैसे इलाकों में जवानों ने शहादत दी लेकिन कैंप खोलकर नक्सलियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
आज बस्तर में नक्सलवाद को काफी पीछे धकेल दिया गया है तो इसमें विजय कुमार की ही रणनीति रही है।
गृह मंत्रालय के सुरक्षा सलाहकार रहे सेवानिवृत आइपीएस अधिकारी के. विजय कुमार का चार साल का कार्यकाल छत्तीसगढ़ में अरसे तक याद किया जाएगा। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बस्तर के ऐसे इलाकों तक फोर्स को पहुंचा दिया जहां पहले सुरक्षा बलों का नियोजित ऑपरेशन के लिए भी जाना मुश्किल था।
आज सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर में उन इलाकों में फोर्स के स्थाई कैंप बन चुके हैं जहां पहले नक्सलियों के मोर्चे थे। छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ के अधिकारी ही नहीं, नक्सली मोर्चे पर तैनात जवान भी के विजय कुमार को अपने सुप्रीम कमांडर के तौर पर याद करते हैं।
नक्सल समस्या के समाधान में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने स्थानीय फोर्स और अर्धसैन्य बलों के बीच समन्वय बनाने पर बहुत काम किया।
नक्सल ऑपरेशनों को तय करने में उनका सीधा रोल रहता था। वे छोटे-छोटे विषयों की जानकारी लेने के लिए उत्साहित रहते थे। ऐसा अफसर अब मिलना मुश्किल है। बस्तर आइजी विवेकानंद ने कहा-बस्तर में फोर्स बढ़ाने में उनका बहुत योगदान रहा। वे बेहद सक्रिय थे। जो भी मांगा जाता वे तुरंत केंद्र सरकार से बात करते। जवानों को गाइड करते थे। कैंप तक पहुंच जाते और कई बार जंगल में ही रात गुजार लेते।
डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड को मिजोरम से ट्रेनिंग दिलाने की बात आई तो उन्होंने केंद्र से लेकर मिजो सरकार तक से बात की। बस्तर के पुलिस अफसरों से सीधे संपर्क में रहते। बीजापुर में पदस्थ सीआरपीएफ के एक कंपनी कमांडेंट ने कहा-उन्होंने वीरप्पन को मार गिराया था। उन्हें ऑपरेशन की प्लानिंग की बहुत जानकारी थी।
के.विजय कुमार हर नक्सल घटना के बाद घटनास्थल तक जाते थे।
सीआरपीएफ के सभी कमांडेंट को वे नाम से जानते थे।
जवानों से मिलकर हौसला बढ़ाते थे।
फोर्स के लिए संसाधनों को बढ़ाने में हमेशा आगे रहते।
उनकी सीआरपीएफ हो या लोकल पुलिस सभी बहुत इज्जत करते थे।
अपने कार्यकाल के दौरान 164 दिन उन्होंने जंगलों में गुजारा।
उनकी कमी नक्सल मोर्चे पर तैनात जवान हमेशा महसूस करेंगे।