लापरवाह लोग और जरुरी है हेलमेट
मध्यप्रदेश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं चिंता का कारण हैं। हेलमेट न लगाने पर होने वाली मौतों का आंकड़ सबसे अधिक है। वैसे भी सड़क सुरक्षा के प्रति लापरवाह होने के कारण प्रदेश ही नहीं देश में सबसे अधिक दुर्घटनाएं होती हैं। दुनियाभर में सड़क हादसों में सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही होती हैं। भारत में सड़क दुर्घटना के बाद अमेरिका की तुलना में किसी व्यक्ति के जीवित होने की संभावना 50 गुना कम हो जाती है। यह दो पहिला और चार पाहिया सबमें सबसे अधिक हैं। पैदल चलने वालों की दुर्घटनाएं भी सबसे अधिक होती हैं। भारतीय सड़कों पर 120 लाख वाहनों पर प्रति वर्ष 1,14,000 मौतें होती हैं जबकि अमेरिका में 2500 लाख से ज्यादा कारों पर प्रति वर्ष केवल 41,000 जानें जाती हैं। यानी भारत में प्रति 100 कारों पर सड़क दुर्घटना में एक मौत होती है जबकि अमेरिका में प्रति 5,000 कारों पर एक व्यक्ति की जान जाती है! और इतना फर्क कैसे? क्या इसलिए कि वहां लोग ज्यादा शराब पीते हैं?तो पश्चिमी देशों में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति शराब की खपत कहीं ज्यादा है, विशेषकर युवाओं में- जो अधिकतर सड़क दुर्घटनाओं में शामिल होते हैं। तेज रतार का बहाना भी अब कारगर नहीं है। विकसित देशों में रμतार की औसत सीमा भारत से कहीं ज्यादा है। तब यह कैसे होता है कि वे दुर्घटनाओं के आंकड़े इतने कम कर पाते हैं, जबकि हमें चिंता तक नहीं है? हमारे आस-पास परिवारों में होने वाली वे हजारों मौतें-मौतें न होकर ईश्वर की इच्छा भर हैं, जिन्हें रोकना कई हजार गुना आसान है। क्या आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं कि एक राष्ट्र के रूप में हम सड़क दुर्घटनाओं में प्रति वर्ष 20 करोड़ डॉलर गवांते हैं, इतना पैसा हमारे देश की कुपोषण की समस्या को 50 फीसदी तक हल करने के लिए काफी है ! कुछ देश अपने नागरिकों के लिए क्या योजनाएं बनाते हैं! अमेरिका जैसे देश ने लक्ष्य तय किया कि दस वर्षों में सड़क दुर्घटनाओं को 20 फीसदी घटाना है, ब्रिटेन ने 40 फीसदी का लक्ष्य रखा, आॅस्ट्रिया ने 50 फीसदी और यहां तक कि मलेशिया जैसे देश ने लक्ष्य रखा कि प्रति 10,000 वाहनों पर 3 से भी कम मौतें होनी चाहिए!! भारत के लक्ष्यों का क्या? संयुक्त सड़क दुर्घटनाओं को भी जन स्वास्थ्य एजेंडा में रखता है क्योंकि इसमें होने वाली मौतें आसानी से रोकी जा सकती हैं। आम बीमारियों के नए-नए इलाजों तथा भारत जैसे लापरवाह और उदासीन देशों में कारों की बढ़ती संख्या के कारण संयुक्त राष्ट्र अपनी वैश्विक भविष्यवाणी में 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं को समय से पहले होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण मानता है। यह शर्म की बात है कि हम आजादी के बाद भी आम नागरिकों के लिए हेलमेट पहनने तक को अनिवार्य नहीं बना सके हैं। पुलिस प्रशासन के बारे में जितना कम कहा जाए, उतना बेहतर है। अब जब मामला न्यायालय में है तो हेलमेट की अनिवार्यता जीवन की सुरक्षा से जोड़ कर देखा जाना आवश्यक है। उम्मीद है कि जनता भी इस भावना को समझेगी।