आम लोगों से जुड़े फैसले
आम लोगों  से जुड़े फैसले
मध्यप्रदेश के करीब साढ़े सात लाख पेंशनर्स को अब हर साल अपने जिंदा रहने का सबूत नहीं देना पड़ेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार अब पेंशनर्स का डिजिटल जीवन प्रमाण-पत्र लागू करने जा रही है। दूसरा फैसल अनुभवहीन वकीलों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में सीधे प्रैक्टिस की जगह नहीं मिलेगी। यह नियम बार कौंसिल आफ इंडिया ने बनाया है। इन दोनों फैसलों में वकील के पद के दुरुपयोग और अनुभवहीनता के चलते प्रतिबंधित किया गया है। इससे जनता का सीधा संबंध नहीं है लेकिन कहीं न कहीं जनता के हित में है। दूसरा फैसला बहुत संवेदनशीलता का परिचय देता है। अब पेंशन प्राप्त करने वाले वृद्धों को बार बार अपने जीवित होने के प्रमाणपत्र के लिए विभिन्न विभागों के चक्कर नहीं लगाना होंगे। इस व्यवस्था में आधार कार्ड पर आधारित बायो-मीट्रिक अथेन्टिफिकेशन के आधार पर आॅनलाइन जीवन प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया जाना संभव होगा।पेंशनर्स द्वारा डिजिटल जीवन प्रमाण-पत्र वेबसाइट से संबंधित एप्लीकेशन एंड्रायड टेब, स्मार्टफोन, विंडोज कंप्यूटर पर डाउनलोड किया जा सकेगा। अब यह आवश्यक है कि इस मामले से जुड़ी व्यवस्थाओं को भौतिक रूप से भी अमल में लाया जाए। यह फैसला लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को पुष्ट करता है। दूसरा फैसला है जोकि बार कौंसिल आॅफ इंडिया के मार्फत आया है। अब नए वकील सीधे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगे। एलएलबी के उपरांत वकीलों को 2 साल तक निचली अदालतों में वकालत करना अनिवार्य कर दिया गया है। एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद वकालत के पेशे में जाने वाले युवाओं को स्टेट बार काउंसिल में पंजीयन कराना होगा। जिला अधिवक्ता संघ की सदस्यता लेनी होगी और 2 वर्ष का अनुभव भी संघ ही प्रमाणित करेगा। नई नियमावली के मुताबिक गैर अभ्यास करने वाले वकीलों की निगरानी करते हुए उन्हें सूचीबद्ध किया जाएगा तथा उन्हें आगे वकालत से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। यह फैसला परोक्ष जनहित से जुड़ा है लेकिन सामाजिक न्याय की वास्तविकता यही है कि प्रादेशिक सरकारों को जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा तथा सामाजिक-सुरक्षा के मद में रचनात्मक सुधार की जरूरत है। सरकार का ध्येय कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। भारतीय संविधान की अन्तरात्मा न्याय, समता, अधिकार और बन्धुत्व से अभिसिंचित करते रहना आवश्यक है। पेंशन उस वर्ग के लिए एक जरूरी सामाजिक सुरक्षा है जिसके माध्यम से संविधान आर्थिक व राजनीतिक न्याय हासिल करता है। यह सही है कि संविधान के जनक इस बात से परिचित थे कि स्वाधीनता सिर्फ राजनीतिक नही होती। राजनीतिक स्वाधीनता तो साधन मात्र है। जब तक भूख के भय से, अज्ञान के अन्धकार से, आवास के अभाव से, बुनियादी यातनाओ एवं आतंकों से, शोषण, अत्याचार, लाचारी और विवशता से इस देश के करोड़ों लोगों को मुक्ति प्राप्त नहीं होती, राजनीतिक स्वाधीनता अधूरी स्वाधीनता ही रहेगी।