साल का पहला रविपुष्य योग 27 जनवरी को
ज्योतिषाचार्य पं.धर्मेन्द्र शास्त्री36 वर्ष बाद रविपुष्य पर महामुहूर्त का महासंयोगो का महापुण्य होगा प्राप्त36 वर्ष बाद इलाहबाद महाकुम्भ पर्व व रविपुष्य होगा महासंयोगो का महापुण्यफल प्राप्त होगापुष्य नक्षत्र से बनता है पौष माहसर्वार्थसिद्धीयोग$पुष्यनक्षत्र$रविवार$पूर्णिमातिथि$श्रीवत्सयोग$कुम्भकाप्रमुखस्नान$शाकम्भरी जयन्ती के साथ शाकम्भरी नवरात्र का समापन दिन$माघ स्नान प्रारम्भ$बुधादित्ययोगशाकम्भरी नवरात्री 19 जनवरी से27 जनवरी ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री(बडी पोलायकलॉ वाले) के अनुसार 27 जनवरी 2013 रविवार को पुष्य नक्षत्र के साथ पौषी पूणिमा एवं शाकम्भरी जयन्ती व श्रीवत्स योग एवं माघ स्नान प्रारम्भ एवं तीर्थराज प्रयाग(इलाहबाद) में महाकुम्भ का प्रमुख स्नान का संयोग बनता है ऐसा महासंयोग 36 साल पहले इलाहबाद महाकुम्भ पर्व के समय 18 जनवरी 1976 मे रविपुष्य योग एवं महाकुम्भ पर्व एक साथ आये थे ! पुष्य नक्षत्र जो 27 नक्षत्रों का राजा होता है इसे नक्षत्रराज भी कहा जाता है साथ ही रविवार का स्वामी सूर्य जो नवग्रहो के राजा है इस कारण रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र आने से सवार्थसिद्धी योग बनता है! पुष्य नक्षत्र 26 जनवरी के दोपहर 2ः44 से 27जनवरी को सायं 4ः28 तक रहेगा इस रविपुष्यमहासंयोग में यागो में नए वाहन जमीन मकान स्थाई सम्पत्ति के सौदे गृहप्रवेश गहने मषीनरी इलेक्ट्रानिक समाना खरीदना शुभ होता है। इन योगों में खरीदी गई जमीन या मकान व सोना चाँदी लाभ प्रदान करते है ! प्राचीन काल से ही ज्योतिष में 27 नक्षत्रों के आधार पर गणनाएं कर रहे हैं। इनमें से हर एक नक्षत्र का शुभ-अशुभ प्रभाव मनुष्य के जीवन पड़ता है। नक्षत्रों के इन क्रम में आठवें स्थान पर पुष्य नक्षत्र को माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी बहुत लंबे समय तक उपयोगी रहती है तथा शुभ फल प्रदान करती है क्योंकि यह नक्षत्र स्थाई होता है। पुष्य को नक्षत्रो का राजा भी कहा जाता है। यह नक्षत्र सप्ताह के विभिन्न वारों के साथ मिलकर विशेष योग बनाता है। इन सभी का अपना एक विशेष महत्व होता है। ऋग्वेद में इसे मंगलकर्ता वृद्धिकर्ता आनंद कर्ता एवं शुभ कहा गया है। नक्षत्रों के संबंध में एक कथा भी हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है उसके अनुसार ये 27 नक्षत्र भगवान ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं हैं इन सभी का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा के साथ किया था। इस प्रकार चंद्र वर्ष के 5- पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जो सदैव शुभ कर्मों में प्रवृत्ति करने वाले ज्ञान वृद्धि एवं विवेक दाता हैं तथा इस नक्षत्र का दिशा प्रतिनिधि शनि हैं जिसे स्थावर भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है स्थिरता। इसी से इस नक्षत्र में किए गए कार्य चिर स्थायी होते हैं। महीने में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ भी संयोग करता है। जब पूर्ण चंद्रमा पुष्य नक्षत्र से संयोग करता है वह मास पौष नाम से जाना जाता है। इस तरह पुष्य नक्षत्र साल के 12 महीनों में से एक का निर्धारण करता है।