घूंघट से रोजगार तक आदिवासी महिलायें
जे.सी. धोलपुरिया गरीबी से जूझ रही छोटे-से गांव मझौली की बेरोजगार आदिवासी महिलाओं के जीवन की खोई चमक को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम कुछ हद तक लौटाने में कामयाब रही है। सदा घूंघट में सिमटी-सुकड़ी रहने वाली महिलाओं की जीवन शैली में काफी बदलाव आया है। स्वसहायता समूह बनाकर इन महिलाओं का घूंघट से चेहरा बाहर निकालने और बेरोजगार से आत्मनिर्भर होने तक का सफर महिलाओं के सामाजिक और आथिर्क सशक्तीकरण का एक प्रेरक प्रसंग है।इन महिलाओं के पति दिहाड़ी मजदूर हैं और परिवार का जीवन स्तर सुधारने के लिए ये स्वयं भी कुछ करना चाहती थीं। इसलिए इन महिलाओं ने दुर्गा स्वसहायता समूह और विकास स्वसहायता समूह के नाम से 12-12 महिलाओं के दो समूह बना लिए और प्रत्येक महिला हर माह तीस-तीस रूपये जमा करने लगीं। ये महिलाएं रोजी-रोटी के लिए समूह के रूप में कोई काम करना चाहती थीं, पर घूंघट की ओट में रहने और अपने संकोची स्वभाव के कारण ये अपने मकसद में आगे नहीं बढ़ पा रही थीं और मार्गदर्शन के अभाव में कोई ऐसा कार्य महिलाओं के इन स्वसहायता समूहों के हाथ नहीं लगा, जो उनके जीवन यापन का जरिया बनता। साल भर पहले विश्वास समाज सेवी संगठन ने पहल की। इन महिलाओं को प्रेरित किया और उपर्युक्त दोनों योजनाओं से जोड़ने में मदद की। आज ये महिलाएं पुरूषों के बराबर बैठकर बगैर घूंघट के विचार मंथन करती हैं। महिलाओं के ये दोनों स्वसहायता समूह आज बहुत-सी सामुदायिक गतिविधियां चलाते हैं और ये बस उतना ही कमा पाती हैं, जितने में परिवार चल सकें। खास बात यह है कि इन महिलाओं ने नशामुक्ति के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और बगैर किसी जोर जबरदस्ती के कई पुरूष शराब पीना छोड़ चुके हैं।स्वसहायता समूह की महिलाएं गांव के सभी रास्ते और घर साफ सुथरे रखने और घरों में शौचालय बनाने के लिए ग्रामवासियों को प्रेरित करती हैं। मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम इन दोनों स्वसहायता समूह की महिलाओं के लिए बेहद लाभकारी सिद्ध हुआ है। क्षेत्र के स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों को दिया जाने वाले मध्यान्ह भोजन की भोजन पकाने से लेकर सारी व्यवस्थाएं यही स्वसहायता समूह करते हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ने भी वृक्षारोपण एवं रोपे गये पौधों की सिंचाई के काम के जरिए उनके जीवनयापन की गारंटी दी है। इन योजनाओं से पिछड़े इलाके की इन गरीब महिलाओं की कई समस्याओं का खात्मा हुआ है।दोनों योजनाओं में रोजगार पाने के साथ ही इलाके की व अपनी तरक्की की आशा संजोए ये महिलाएं पूरे समर्पण के साथ काम कर रही हैं। दुर्गा स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती शांति बाई बताती हैं कि जब दोनांे स्वसहायता समूहों की शुरूआत हुई, तो उस समय स्वरोजगार और गरीबी उन्मूलन इनके लक्ष्य थे। तब से ये महिलाओं की समाज में भागीदारी बढ़ाने में सफल रहे हैं। इसी समूह की सचिव श्रीमती गोमती बाई बताती हैं कि वृक्षारोपण के लिए ट्रीगार्ड बनाने हेतु अब समूह ईंटों का निर्माण भी करेगा। गोमती बाइ का कहना है कि समूहों ने उन्हें उनके परिवारों में धन नियंत्रक और धन प्रबंधक बनाया है।समूहों की सक्रिता से पहलीबार समूहों की महिलाओं व परिवारजनों के रहन-सहन और जीवनशैली में परिवर्तन आया है। कई महिला सदस्यों ने मोबाइल फोन खरीद लिये हैं। श्रीमती गोमती बाई को छोड़कर शेष सभी महिलाएं गैर पढ़ी लिखी हैंं, लेकिन वे अपने बच्चों को पढ़ने स्कूल भेजती हैं। पैसे आने की वजह से उनके परिवार का जीवन स्तर सुधर रहा है। लेकिन उनके लिए इतनी कमाई काफी नहीं है। इससे ज्यादा पैसे कमाने के लिए वे अभी और काम करना चाहती हैं। अपनी राह खुद बनाने वाली इन महिलाओं के लिए नये संघर्ष की शुरूआत तो अब हुई है।