आदिवासियों की सुध लेने वाला कोई नहीं
\"गढ़बो नवा छत्तीसगढ़\" जैसे नारे देकर सत्ता में आने वाली भूपेश बघेल की सरकार ने | केंद्र की आयुष्मान भारत योजना को अनुपयोगी मानते हुए राज्य मे इसे लागू नही किया और उसके बदले यूनिवर्सल हैल्थ स्कीम लाने का ऐलान किया | अब आदिवासियों तक इस योजना का लाभ पंहुचा की नहीं इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं | आदिवासी तो राजनीतिक दलों के लिए राजनीति का महज एक मुद्दा होते हैं | जब इन आदिवासियों के घरों में कोई बीमार हो जाता हैं तो यह सिर्फ मजबूर नजर आते हैं संवेदनाये तक इनके साथ नहीं होती | योजनाए तो बहुत दूर की बात होती हैं |
सरकार किसी की भी हो | आदिवासी सिर्फ राजनैतिक मुद्दे ही बन कर रह जाते हैं | आदिवासियों के हित की बात करके सत्ता में भी काबिज हो जाते हैं | मगर आदिवासियों के दर्द उनकी संवेदनाओँ से दूर दूर तक किसी राजनैतिक पार्टी का कोई नाता नही होता | यह तक इनकी जान की कीमत भी इनके लिए पशु की जान के बराबर भी नहीं होती | स्वस्थ सुबिधाओं के नाम पर यूनिवर्सल हैल्थ स्कीम लाने का ऐलान किया | मगर जमीनी हकीकत देखकर लगता हैं की सरकार को आदिवासियों की कोई परवाह नहीं हैं |
आज भी एक बीमार बेटी को खाट पर लादकर ग्रामीणों के सहारे 7 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल लाने को एक अपाहिज पिता मजबूर हैं
हम बात कर रहे है पखांजूर के टेकामेटा गाँव की जहाँ पिछले 15 दिनों से चीनको बाई नाम की एक महिला बीमार हैं | पर लगातार हो रही बारिश और उफनते नालों पर पुल न होने के चलते उसे अस्पताल नहीं लाया जा सका | वो पिछले 15 दिनों से तड़पती रही थी | जब नाले का जलस्तर कम हुआ तो विकलांग पिता अपनी बीमार बेटी को खाट पर लादकर ग्रामीणों के सहारे 7 किलोमीटर का सफर पैदल तय करने के बाद ऑटो के सहारे पखांजूर के एक निजी अस्पताल पहुँचा | जहाँ उसका इलाज तो शुरू हुआ | मजार अधिक देर होने के कारण स्थिति बेहद नाजुक हैं | कोयलीबेड़ा क्षेत्र में ऐसी तस्वीरें इससे पहले भी कई दफ़ा सामने आ चुकी हैं | और तब विपक्ष में बैठे कांग्रेसी नेता तत्कालीन प्रदेश की भाजपा सरकार पर तंज कस चुके है | मगर आज प्रदेश में सरकार तो बदली हैं पर खाट पर सरकारतंत्र की यह तस्वीर जस की तस बनी हुयी हैं | क्या ऐसी तस्वीरों के साथ भूपेश सरकार एक नया बेहतर छत्तीसगढ़ बनाने में सफल हो पायेंगे | यह आम आदमी यूँ ही राजनीति का शिकार बनता रहेगा |