मथुरा के बाद सिर्फ यहीं होता है कंस का वध
अनूठी अद्भुत परम्परा जिसे देखने जुटते है भारी संख्या में लोग
नरसिंहपुर के मुड़िया गांव में 200 सालों से कंस वध की परम्परा चली आ रही है | अन्याय व अत्याचार पर जीत के प्रतीक कंस वध का सिलसिला यहाँ भगवान् कृष्ण के एक स्वप्न के बाद शुरू हुआ था | इस गांव के लोगों का मानना है कंस का वध करने के कारण इस इलाके में कभी किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती | मुड़िया गांव में इस परम्परा को सदियों से निभाया जा रहा है | दरअसल दो सौ साल पहले यहाँ प्लेग की महामारी फैली और भगवान कृष्ण ने कुशवाहा परिवार को स्वप्नं देकर हर घर से मिट्टी लाकर गांव के बहार कंस की प्रतिमा बनाकर उसका सांकेतिक वध करने को कहाँ तभी से ये परम्परा चली आ रही है गांव में आमने सामने दो सेना हैं | एक तरफ कंस की सेना | तो दूसरी तरफ कृष्ण की सेना | स्टेडियम युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया है | कृष्ण भी रथ पर सवार होकर कूच कर गए हैं | तो राक्षस भी अलग अलग वेषभूषा में तैयार है .. आस पास के गाँव के लोग चारों तरफ से युद्ध का लाइव नाज़ारा देखने तैयार हैं | गाँव वालों ने अपने अपने खेतो और घरो से मिट्टी लाकर गाँव के बाहर कंस की एक मूर्ती बनाई है और उसके मुकुट के ऊपर लगी सफ़ेद फूल की कलगी को कृष्ण को आकर मुकुट से निकालना होगा | कंस की सेना ऐसा करने से रोकती है लेकिन कृष्ण तो कृष्ण ठहरे | चार से पांच घंटे युद्ध चलता है और कंस का वध होता है |
मुड़िया गांव के प्रत्येक घर एक एक दो मुट्ठी मिट्टी लेकर बनाये जाने वाले इस कंस के वध के साथ बुराई को मिटाने का संकल्प लेकर ग्रामीण पुरानी परंपरा का निर्वहन भी कर रहे है और साथ ही सामाजिक बुराई जैसे नशा , गंदगी ,खुले में शौच के बन्द करने की भी शपथ ले रहे हैं | समय के बदलाव के साथ साथ सामाजिक बुराइयों का भी स्वरूप बदला है |
बदलते दौर में पुरातन परंपरा को युवा सोच ने नए आयाम को देकर वर्षों से चली आ रही परम्परा को जीवंत रखते हुए असल सामाजिक बुराई के अंत का जो रास्ता चुना है उसे नए नजरिये से देखे जाने और अपनाने की जरुरत है ताकि समाज को नई दिशा मिल सके | अभिषेक मेहरा दखल न्यूज़ | गाडरवारा