मध्यप्रदेश में लघु सहकारी उपक्रम की महक
भरतचन्द्र नायकआर्थिक उदारीकरण के साथ सूचना प्रौद्योगिकी के गतिमान दौर ने सारे विष्व को एक गांव के रूप में बदल डाला है। विकसित देष बाजार की खोज में जुटे है, विकासषील देष अब तक विकसित देषों के लिए बाजार बने हुए थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वामी विवेकानंद की उस भविष्यवाणी के कायल है, जिसमें स्वामी जी ने कहा था कि 21वीं सदी शताब्दी भारत की होगी। भविष्यवाणी संकेत और प्रेरणा तो बन सकती है लेकिन हरि इच्छा ही वेकषों का अंतिम अवलंबन है, मानसिकता वाले देष का भविष्य नहीं बदल सकती। मेक इन इंडिया का एनडीए सरकार ने ऐलान करके देष की उद्यमिता को नवजागरण का संदेष दिया है। मध्यप्रदेष का विंध्य हर्बल ब्रांड इस दिषा में मध्यप्रदेष राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित भोपाल की विनम्र प्रस्तुति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया मिषन में कदम बढ़ाकर विपणन के क्षेत्र में एक छलांग लगाई है। अंतर्राष्ट्रीय वन मेला के आयोजन के साथ यह सहकारी संघ अपनी अनुसंधान, विकास, विपणन इकाईयों के समन्वित प्रयासों से दुनिया के पारंपरिक चिकित्सा पद्धति वाले मुल्कों के लिए आकर्षण का केन्द्र और मंडी बन चुका है। इससे मध्यप्रदेष की लघु वनोपज अर्थकरी (क्रेष कॉर्प) फसल के रूप में विदेषी मुद्रा अर्जन का जरिया बनने जा रही है। मजे की बात यह है कि विंध्य हर्बल ब्रांड के अन्तर्गत अब तक इस सहकारी संघ की एम.एफ.पी (प्रसंस्करण और अनुसंधान केन्द्र, एमएफपी-पीएआरसी) ने उद्योग जगत में प्रमाणित इकाई का दर्जा हासिल कर जंगली शहद के प्रसंस्करण के साथ दो सौ से अधिक आयुर्वेदिक औषधियों का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन आरंभ कर मार्केट में दावेदारी पुख्ता कर ली है। जानकार सूत्र बताते है कि आने वाले दिनों में सहकारी संघ रोजगार सृजन का ऐसा केन्द्र बनेगा जहां पचास हजार भुजाएं रूग्ण मानवता की सेवा में तत्पर औषधि निर्माण के कार्य में जुटी होंगी। बदलती रूचि रूझान, सौन्दर्य प्रसाधनों की मांग के अनुरूप इस उपक्रम ने काष्तकारों में ऐसा क्रेज विकसित किया है और प्रोत्साहन दिया है कि वे मध्यप्रदेष के औषधि पादप उत्पादन के साथ सीधे अंतर्राष्ट्रीय औषधि, सौन्दर्य प्रसाधन हाट से जुड़ने का दावा कर रहे है।विदेषी लाल गेहूं पर निर्भर भारत आज विष्व के देषों को सरबती गेहूं और बासमती चावल प्रचुर मात्रा में निर्यात करता है। इस हरित क्रांति का श्रेय तत्कालीन कृषि एवं खाद्य मंत्री सुब्रमण्यम को जाता है। उनके द्वारा बतायी गयी हरित क्रांति के ध्वजवाहक किसान बनें और उन्होनें अन्नदाता होने की सार्थकता पुनः कायम की। इसलिए यदि प्रदेष में औषधि पादप की खेती में किसान सफल हुए है तो इसमें राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ की भूमिका का मूल्याकंन करना होगा, जिसने औषधि पादप उत्पादन का पथ प्रषस्त किया। उन्हें विपणन में सहयोग दिया, प्रोत्साहन देकर अंतर्राष्ट्रीय जड़ी-बूटी हाट केन्द्रों, प्रदर्षनियों और मेलों में पहुंचानें में सेतु का काम किया। इसी का नतीजा है कि प्रदेष में ऐसा अनुकूल वातावरण बन सका जहां मध्यप्रदेष में देष में सर्वाधिक क्षेत्र में औषधि और सुगंधित पौधों की खेती हो रही है। किसान 70 से अधिक आसवन संयंत्र लगा चुके है, जहां इत्र, सुगंधित तेल, डिटरजेन्ट पाउडर बनानें के लिए कच्चा माल तैयार होता है। मध्यप्रदेष उद्यमिता विकास संस्थान ने भी किसानों को सरंक्षण प्रदान कर उनका रास्ता आसान किया है। प्रदेष में 25 तरह के औषधीय पौधों की दो हजार से अधिक क्षेत्र में काष्त होना शुरू हो गयी है। सुगंधित तेल और जड़ी-बूटियांे की मांग पूरी दुनिया मंे बढ़ती जा रही है। मेक इन इंडिया और इसके समानांतर मेक इन मध्यप्रदेष ने देष की प्रदेष की अन्वेषी और ऊर्जावान पीढ़ी को नई दिषा दी है। स्वदेषी अस्मिता बुलंद हुई है। क्योंकि जिस भारत का विष्व व्यापार में योगदान 17वीं शताब्दी में 25 प्रतिषत था, वह 1947 में जब अंग्रेज भारत से विदा हुए तो घटकर मात्र एक से दो प्रतिषत रह चुका था। क्योंकि दो शताब्दियों तक भारत को उसकी समृद्ध उद्यमिता की विरासत से काटने, सामर्थ्य और पराक्रम को आहत करनें के प्रयास लार्ड क्वाईव ने ही नबाव सिराजुद्दौला को पराजित करनें के साथ आरंभ कर दिये थे। इसका प्रभाव चिकित्सा क्षेत्र में परंपरागत संसाधनों पर भी पड़ा। भारत को नील और जरूरत के अनुसार खेती पर समेट कर रख दिया गया, जिससे उद्यमिता ठगी सी रह गयी। हमारे पिछड़ने के इस क्रम ने हमारे इकबाल पर भी चोट की। अब इस दिषा में जो पहल आरंभ हुई है, देर आयत दुरूस्त आयत ही कहा जा सकता है। भारत की ऊर्जावान पीढ़ी ने कमान संभाली है। वनवासी समुदाय भी विकास की रोषनी में अग्रसर हो रहा है। मध्यप्रदेष में राज्य लघु वनोपज संघ का गठन 1984 में हो चुका था। आज इसे गैर इमारती उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए स्वायत्तता हासिल है। संघ ने 61 जिला सहकारी संघ, 1066 के करीब प्राथमिक समितियों का जाल बिछाकर उन वनवासियों को रचनात्मक धर्मिता से जोड़ा है और उनके सामाजिक-आर्थिक उन्नयन का बीड़ा उठाया है, जिनका भविष्य पिछले दिनों तक शोषक ठेकेदारों के यहां बंधक था। इसी का नतीजा है कि संघ मध्यप्रदेष शासन और केन्द्र शासन के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा पोषित कार्यक्रमों को गति प्रदान करता हुआ वनवासियों के स्वावलंबी जीवन की दिषा में सखा, मार्गदर्षक और अभिभावक की भूमिका में है। तेन्दुपत्ता संग्रहण, लघु वनोपज के क्षेत्र में संघ का एकाधिकार वनवासियों के कल्याण के लिए समर्पित है। तेन्दुपत्ता संग्रहण के कार्य में कमोवेष वार्षिक सत्र में 15 लाख श्रमिकों को रोजगार मिलता है और उन तक 145 करोड़ रू. की राषि पारिश्रमिक और प्रोत्साहन के रूप मंे पहुंचती है जिससे परिवार में खुषहाली दस्तक दे रही है। लघु वनोपज में प्रदेष में साल बीज और कुल्लू गोंद का अनुमानतः उत्पादन कमोवेष 1200 टन और तीन सौ टन होता है। महुआ का 6 हजार टन और आंवला का उत्पादन पांच हजार टन तक पहुंचता है। लाख का उत्पादन भी हो रहा है जिससे भारत की पहुंच अतंर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही है। मध्यप्रदेष देष में वन क्षेत्र के मामलें में समृद्ध राज्यों में गिना जाता है और प्रदेष का एक तिहाई क्षेत्र वनाच्छादित रहा है। प्रषासकीय दृष्टि से मध्यप्रदेष का वन क्षेत्र 16 वन क्षेत्रीय मंडलों, 9 राष्ट्रीय उद्यानों, 25 अभ्यारण्यों और 63 वन मंडल प्रभागों में समाहित है। यहां सागौन और साल वन प्रदेष की समृद्धि और गौरव वखान करते है वहीं नयनाविराम पर्यटन के लिए आमंत्रण देते है।वन आधारित समुदायों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान के लिए संघ की गतिविधियां पोषक और उत्साहवर्द्धक सिद्ध हो रही है। इसमें निजी भागीदारी से किये जा रहे कार्य महत्वपूर्ण और आय में इजाफा करने में महत्वपूर्ण साबित हो रहे है। निजी भागीदारी मंे औषधीय और सुगंधित पौधों के उत्पादन, प्राथमिक एमएफपी सहकारी समितियों के साथ अनुवेध भी शामिल है। सीसल और सवाई जैसे प्राकृतिक फाइबर के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। शहद, आंवला, मुरब्बा, शरबत, आयुर्वेदिक दवाईयों के उत्पादन में ग्राम स्तर पर भागीदारी परिवार मूलक उद्योग की शक्ल ले चुकी है। संघ की बहुमुखी गतिविधियों में हाल के वर्षों में जो प्रगति हुई है उसी का नतीजा है कि प्रसंस्करण और अनुसंधान की गत्यात्मक पहल ने संघ के लिए अंतर्राष्ट्रीय हाट में प्रवेष करा दिया है।संघ के उत्तरोत्तर प्रगति के आयामों में संघ द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जड़ी-बूटी मेला (हर्बल फेयर) ऐसा मंच साबित हुआ है जहां वनोपज और लघु वनोपज की तिजारत का नायाब मौका मिलने लगा है। 2001 से इस हर्बल फेयर ने पांच दिवसीय राष्ट्रीय घटना का स्वरूप ले लिया है। हर्बल फेयर का आयोजन एक संयुक्त प्रयास होता है, जिसमें मध्यप्रदेष वन विभाग, मध्यप्रदेष लघु वनोपज सहकारी संघ के साथ अन्य फेडरेषनों की भी सक्रिय भागीदारी होती है। इन फेडरेषनों के साथ 31 लाख संग्रहकर्ताओं की नियति जुड़ी है। हर्बल फेयर के मौके पर देषी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के वैद्य, हकीम भी अपने प्रखर व्यक्तित्व और अनुभव से मेला में भाग लेने वालों, जिज्ञासुओं को लाभांवित करते है। हर्बल फेयर जड़ी-बूटियों पर निर्भर चिकित्सकों और इस क्षेत्र में सक्रिय ऐजेंसियों के लिए वार्षिक तीर्थ की शक्ल ले चुका है। भोपाल में 11 दिसंबर से आयोजित किये जा रहे पांच दिवसीय हर्बल फेयर की भव्य और व्यापक तैयारियां लाल परेड प्रांगण पर वरवस ध्यान आकर्षित कर रही है। यहां पहुंचकर भारतीय वनस्पति, जड़ी-बूटियों के चमत्कार, स्वास्थ्य चिकित्सा के प्रभाव और परंपरागत चिकित्सा के नायाब नुस्खों से आमजन रूबरू होता है। उसे स्वदेषी चिकित्सा पद्धति की अनुभूति आल्हादित कर देती है।