एमपी में दवा घोटाला ,एजी की रिपोर्ट में खुलासा
सरकार बचाव की मुद्रा में शैफाली गुप्ता मध्यप्रदेश के महालेखाकार ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा है कि 28 करोड़ से ज्यादा की अमानक स्तर की दवाएं बिना जाँच किये सरकारी अस्पतालों से मरीजों को बाँट दी गई हैं। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग में खलबली मच गई है और सरकार एजी की रिपोर्ट को झुठलाने में लग गई है। महालेखाकार [एजी ] के ऑडिट में खुलासा हुआ है की मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों में गरीबों और आम लोगों को दी जाने वाली दवाओं का लैब में परिक्षण ही नहीं किया गया कि वे किस स्तर की थीं , मध्यप्रदेश के कमिश्नर हेल्थ को मई 2014 में भेजी रिपोर्ट में एकाउंटेंट जनरल ने सन 2010 . 2011 ,2012 ,2013 का हवाला देते हुए कहा है कि इस दौरान कुल 69 .67 करोड़ रुपये की दवाएं कुछ जिलों में खरीदी गईं जिनमें से 28 करोड़ 72 लाख की दवाओं की गुणवत्ता संदेह के घेरे में है क्योंकि इन्हे किसी लैब में टेस्ट नहीं करवाया गया। एकाउंटेंट जनरल ने सरकार को 28 दवाओं की सूचि भी भेजी है जिन्हे तमिलनाडु की मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन ने अमानक बताया है। इसके बावजूद इन दवाओं को मरीजों को बाँट दिया गया ,जबकि नियम यह है कि दवा खरीद की तीन दिन के भीतर हर बैच की दवा के नमूने जाँच के लिए अधिकृत लैब में भेजे जाने चाहिए और उसके रिजल्ट के बाद दवा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए । इस खुलासे के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने डॉक्टर्स को इस सम्बन्ध में चुप रहने की सलाह दी है और सरकार सिरे से इस मसले को नकारने में लगी है और सरासर झूठ बोल रही है स्वास्थ्य मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा का कहना है यह रिपोर्ट पुरानी है ,इस मामले में हम योगीराज शर्मा को बर्खास्त भी कर चुके हैं । दवा खरीद में गड़बड़ियों को लेकर मध्यप्रदेश पहले से ही बदनाम रहा है । कांग्रेस तीन दिनों से इस मसले पर स्वास्थ्य मंत्री के घर और स्वास्थ्य विभाग के दफ्तर पर प्रदर्शन कर रही हैं । वहीँ डॉक्टर्स का कहना है इस मामले की जाँच होना चाहिए क्योंकि ऐसी दवाएं कई बार मरीजों के लिए घातक साबित हो सकती हैं । अमानक पाई गई दवाएं भोपाल ,बालाघाट ,होशंगाबाद ,धार ,मंडला ,जबलपुर ,उमरिया ,इंदौर ,छिंदवाड़ा ,अशोकनगर ,श्योपुर ,गुना ,बड़वानी अनूपपुर जिलों में बांटी गई हैं । इस मामले के सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अफसरों ,दवा सप्लायरों और नेताओं की साठगांठ यह दवा घोटाला चल रहा है , प्रदेशभर के कर्मचारी संघों ने इस मामले की सीबीआई जाँच की मांग की है । इस मामले के सामने आने के बाद सरकार ने प्रेस नोट जारी कर कहा हैं कि मध्यप्रदेश में दवाइयों के शासकीय उपार्जन के संबंध में प्राप्त महालेखाकार के प्रतिवेदन के जिन मुद्दों को उठाया जा रहा है, वे मुद्दे वित्तीय वर्ष 2009 -10 से वर्ष 2011-12 की अवधि के हैं। इन पर पृथक से विधि सम्मत कार्यवाही प्रचलन में है तथा नियमानुसार निराकरण किया जाएगा।वर्ष 2009 से 2012 के प्रतिवेदन से वर्तमान में लागू सरदार वल्लभभाई पटेल औषधि वितरण योजना का कोई संबंध नहीं है। यह योजना नवंबर 2012 से लागू हुई है। प्रदेश में योजना का श्रेष्ठ क्रियान्वयन हो रहा है जो कई प्रांतों से बेहतर है। कई राज्य इस तरह की योजना प्रारंभ ही नहीं कर पाये हैं। इसके साथ ही कुछ राज्यों में जेनेरिक दवाएँ सशुल्क दी जा रही हैं। मध्यप्रदेश में इनके नि:शुल्क दिये जाने की व्यवस्था है।राज्य में जेनेरिक औषधियों के क्रय से लगभग 1000 करोड़ रुपये की बचत हो रही है। जेनेरिक दवाइयाँ गुणवत्ता प्रभाव में रासायनिक रूप, शुद्धता, मात्रा, सुरक्षा और गुणवत्ता की दृष्टि से ब्रॉण्डेड दवा के समान ही होती है तथा 25 से 75 प्रतिशत सस्ती होती है। भारत इन औषधियों का बड़ा निर्यातक भी है। ऐसी कुछ कंपनियाँ जिनके व्यवसायिक हित प्रभावित हो रहे हैं, वे पुराने प्रकरण का भ्रामक उल्लेख कर भ्रम फैला रही है।कुछ समय से मध्यप्रदेश में योजना में दी जा रही दवाओं के कुछ नमूने अमानक पाये जाने की बात भी कही जा रही है। वास्तव में लगभग 2500 सेम्पल में से 147 नमूने प्रयोगशाला जाँच में अमानक स्तर के सिर्फ इसलिए माने गये क्योंकि टेबलेट के रंग में कुछ अंतर था। अस्पतालों के लिये दवाओं की आपूर्ति में यदि विलम्ब होता है तो आवश्यकता को देखते हुए रोगियों के हित में लोकल पर्चेस की भी व्यवस्था है। जिन 147 दवा नमूनों को अमानक कहा गया उनमें से 140 स्थानीय स्तर पर निजी दवा विक्रेताओं से ली गई।स्वास्थ्य विभाग ने आईटी के प्रयोग से पारदर्शिता का परिचय दिया। दवाओं की खरीदी और अन्य कार्यों में भी यही व्यवस्था लागू है। ई-टेन्डरिंग के माध्यम से डब्ल्यू. एच.ओ.जी.एम.पी. निर्माताओं से ही जेनेरिक औषधियां क्रय की जा रही हैं। देश की सर्वश्रेष्ठ संस्था टी.एन.एम.एस.सी. के माध्यम से वर्ष 2010-11 और 2011-12 में औषधि उपार्जन का कार्य किया गया।