छत्तीसगढ़ में मजदूरी सबसे कम
छत्तीसगढ़ में मनरेगा की मजदूरी देश में सबसे कम 167 प्रतिदिन है । इसे पिछले साल की तुलना में यह 159 रुपयों से बढ़ाकर 1 अप्रैल से 167 रुपये कर दिया गया है । इस तरह से छत्तीसगढ़ में मनरेगा के मजदूरी में महज 5.03 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है । दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का वेतन तथा भत्ता 1 अप्रैल से 45 फीसदी, मंत्रियों का 44 फीसदी, संसदीय सचिवों का 45 फीसदी, विधानसभा अध्यक्ष का 45 फीसदी, विधानसभा उपाध्यक्ष का 45 फीसदी, नेता प्रतिपक्ष का 44 फीसदी बढ़ा है । अब राज्य के मुख्यमंत्री का वेतन 93 हजार रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 1.35 लाख रुपये प्रतिमाह हो गया है. वहीं मंत्रियों का वेतन 90 हजार रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 1.30 लाख रुपये प्रतिमाह हो गया है. जबकि संसदीय सचिवों का वेतन 83 हजार रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 1.21 लाख रुपये प्रतिमाह हो गया है । इसी तरह विधानसभा अध्यक्ष का वेतन 91 हजार रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 1.32 लाख रुपये प्रतिमाह, विधानसभा उपाध्यक्ष का वेतन 88 हजार रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 1.28 लाख रुपये प्रतिमाह और विपक्ष के नेता का वेतन 90 हजार रुपये प्रतिमाह से बढ़कर 1.30 लाख रुपये प्रतिमाह हो गया है । अब विधायकों को 1.10 लाख रुपये प्रतिमाह वेतन मिलेगा. जिसमें से बेसिक सेलरी 20 हजार रुपये, 30 हजार रुपये निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, पांच हजार रुपये टेलीफोन भत्ता, 15 हजार रुपये अर्दली भत्ता तथा 10 हजार रुपये चिकित्सकीय भत्ता शामिल है । जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में जिस तरह से जन प्रतिनिधियों का वेतन तथा भत्ता बढ़ा है उसकी तुलना में जनता के सबसे पिछड़े तबके को मिलने वाली मनरेगा की मजदूरी में नगण्य बढ़ोतरी हुई है । हमारा हरगिज भी यह कहना नहीं है कि जन प्रतिनिधियों के वेतन तथा भत्तों में बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिये परन्तु समाज के आर्थिक रूप से सबसे पिछड़ों की मजदूरी भी बढ़ना चाहिये.जिसे बढ़ाये बिना न तो गांवों के लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी न ही अर्थव्यवस्था का विकास हो सकेगा । मनरेगा का घोषित उद्देश्य ही है कि गांव वालों को उनके गांव में ही रोजगार उपलब्ध करवाया जाये. यदि मनरेगा की मजदूरी न्यूनतम वेतन से भी कम होगी तो उससे परिवार का भरण-पोषण कैसे हो सकेगा ।