नर्मदा बन के ही हो सकता हैं नर्मदा चिंतन
अनिल माधव दवेपरिस्थितियां ,परिवेश और वातावरण विचारों को जन्म देते हैं | विचारों से व्रती पनपती हैं | व्रती विचार और व्रती चिंतन को जन्म देते हैं | चिंतन आधार हैं और योजना और क्रियान्वयन का तब परिणाम यथेष्ट होता हैं | यदि हम श्रेष्ठतम परिणाम चाहते हैं तो हमें विचार भी श्रेष्ठतम करना होंगे | हमारा चिंतन भी श्रेष्ठतम होना चाहिए | पर यह श्रेष्ठतम क्या हैं ? यह श्रेष्ठतम हैं स्रष्टि की निरंतरता |स्रष्टि का मूल प्राण हैं | प्राणों से ही जीवन अदभूत हुआ हैं | जीवन के लिए प्राण अनिवार्य हैं और प्राणों का स्त्रोत जल हैं | जल के बिना जीवन संभव नहीं हैं | स्रष्टि में सैंकडों-हजारों गृह और उपगृह हैं | लकिन जहाँ जल नहीं हैं वहां जीवन नहीं हैं | जल पृथ्वी पर हैं | इसलिए यहाँ जीवन के प्रचुरता हैं | वर्षा ऋतु में जल की वृष्टि होती हैं | पृथ्वी जल को आत्मसात करती हैं , जल से तृप्त होती हैं और अंग-अंग से जीवन फूट पड़ता हैं - पौधे के रूप में , कीटों के रूप में , पतंगों के रूप में और असंख्य लताओं और बेलों के रूप में | जीवन के इस सत्य को भारतीय ऋषि भांप गए थे इसलिए उनकी असंख्य प्रथनाओं के केंद्र में जल है | उन्होंने जल की प्रार्थना की, पूजन किया, और जल को सहेजने , सुरक्षित बनाने के लिए उपाए तलाशे | जल की श्रृंख्ला एवं आधुनिक भाषा में कहे तो "वाटर सायकिल "के केंद्र में नदियाँ है |नदियों में जल संगृहीत भी होता है और गति भी करता है |जल की इस गति में गुण होता है |जल की यात्रा ,उसकी गति,गति से उत्पन्न कल कल स्वर साधारण नहीं है |यह एक वैज्ञानिक और रासायनिक प्रक्रिया है |इसमें १२ प्रकार के तत्व पनपते है |यही तत्व जीवन देते है |जीवन की प्रतिरोधात्मक क्षमता बढाते है |औषधि देते है और प्राणों को पुष्ट करते है |यह तथ्य भारतीय वाड्मय प्रसंग ही नहीं अपितु आधुनिक वज्यनिकों ने भी अपने शोध और अनुसंधानों से पुष्ट कर लिया है | भारतीय मनीषी मानवीय विचारों को प्रकार्तिस्थ बनाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपने आश्रम ,तापोस्थालियाँ नदियों के किनारे प्रकृति की गोद में ही बनायीं | मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली पुण्य सलिला नर्मदा इस शोध परंपरा के केंद्र में थी |देव सरिता गंगा के किनारे यदि मानव सभ्यता के विकास की परंपरा रही तो उस परंपरा को आयाम दिया है नर्मदा की घाटी ने ,उसके किनारे की पर्वत कन्धराओं ,वन -वल्लिरियों के बीच बने ऋषि आश्रमों में निरंतर संचालित शोध और अनुसंधानों ने |अतीत के आख्यानों से यह तथ्य स्पष्ट है की नर्मदा मात्र एक नदी नहीं है |प्रकृति की तुष्टि -पुष्टिदायक जीवन रेखा नहीं है ,अपितु यह सभ्यताओं की स्राजग और सिधान्तों की जन्मदायी भी है |इसे किसी महानगर की आकाशी अटटालिका के कंगूरे पर बैठकर अथवा वातानुकूलित कार्यालय कक्ष में बैठकर नहीं समझा जा सकता | इसके लिए नर्मदा के किनारे जाना होगा | अंजुरी से उसके जल का आचमन करना होगा | उसकी रेत में आसन लगाना होंगा , कानों से उसकी कल-कल ध्वनी और ह्रदय से जल के स्पंदन को महसूस करना होगा | तभी नर्मदा को समझ को पाएंगे | नर्मदा को समझना यानि जीवन को समझना | | सिद्धन्तो ,सभ्यता ,समाज और संसार सबके मूल को समझना हैं | इसलिए नर्मदा के किनारे तवा के संगम पर अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव शिविर संजोया ताकि विचार और वृत्ति दोनों प्रकार्तिक हों ,यथार्थ हो सिद्धन्तों और स्राज्नाओं के समीप हों | संपूर्ण स्रष्टि और उसके जीवों पर आए संकट के निवारण का चिंतन हो सके | जीवन में उस शक्ति क विचार हों सके जो श्रेष्टतम परिणाम देने वाली हैं | यह सत्य सब जानते हैं कि जल नहीं तो जीवन नहीं | फिर भी पूरे संसार में जल को अशुद्ध करने , जीवन के लिए अयोग्य करने का अभियान चल रहा हैं | जो जल जीवन दायक हैं , जीवन पालक हैं | वह अब जीवन-विनाशक की दिशा में बढ़ चला है | ऐसा नहीं हैं कि इससे पहले जल संरक्षण या जल संवर्धन के प्रयत्न नहीं हुए | बहुत हुए लेकिन उनके परिणाम प्रयत्न के अनुपात में नहीं आए | न धरती से रसातल की और खिसकते स्वर में विराम लगा और न प्रवाहित सरिताओं में अशुधि मिलाने का कुचक्र रुका |इसका एक मात्र कारण यही लगता है की न विचारों में शक्ति थी न चिंतन में |इसलिए परिणाम नहीं आये |सपना सब देख लेते है |प्रत्येक मनुष्य शीष्र पर जाना चाहता है,सम्मानित होना चाहता है किन्तु सबका सपना पूरा नहीं होता |सपना उसका पूरा होता है जिसके विचार प्राकृतिक शक्ति संपन्न हो ,जिसका चिंतन क्रियान्वयन की शक्ति से संपन्न हो |नर्मदा समग्र की तलाश यही है |विचार और चिंतन की इसी शक्ति की तलाश में नर्मदा -तवा संगम स्थल बांद्राभान को तलाशा गया है ,बांद्राभान तपोभूमि रही है ,सिद्ध भूमि रही है |तीन दिनों तक चले उस विचार का चिंतन क निष्कर्ष सामने है |इसमें दुनिया भर के लोग आये थे |सबने साथ बैठकर चिंतन किया और नर्मदा की निरंतरता के सुझाव दिए |नर्मदा की निरंतरता पर विचार या नर्मदा की सेवा नर्मदा पर उपकार नहीं अपितु मानव का दायित्व है |नर्मदा से तो यही प्रार्थना है की वह मानव को एक सार्थक विचार प्रदान करे ,वृत्ति प्रदान करे ताकि स्रष्टि की सम्पूणर्ता में वह अपना योगदान दे सके न की विनाश में