फिर जिन्दा हुए बटेसर के मंदिर
विजय मनोहर तिवारी ग्वालियर से ४० किलोमीटर दूर सदियों से मलबे में दफ़न बटेसर के मंदिर अपने मूल स्वरूप में नज़र आने लगे हैं | अब तक कोई शिलालेख या सिक्के इस विशाल पुरातात्त्विक परिसर में नहीं मिले हैं | एक समाधि में कुछ अस्थियाँ और मिट्टी के बर्तनों के अवशेष जरुर पाए गए हैं | गुर्जर-प्रतिहार राजाओं के समय सातवीं से नौवी सदी के बीच मंदिरों का निर्माण हुआ | इनमे से ७० पुराने रूप में वापस आ चुके हैं | पुरातत्व विशेषज्ञों का आकलन हैं कि ये एक ही समय में बने हैं | कुछ साल पहले तक यह धरोहर पूरी तरह दूर तक फैले मलबे के ढेर में नज़र आती रही | लेकिन एएसआई के तत्कालीन पुरातत्व अधीक्षक के.के.मोहम्मद ने इन्हें फिर से जिवंत करने में खास दिलचस्पी ली | चंदेरी के ६० से ज्यादा कुशल कारीगरों को यहाँ लगाया गया, जिन्हें पुराने शिल्प और पत्थरों कि प्रकर्ति कि गहरी जानकारी हैं | पुरातत्वविद एस.एस.गुप्ता कहते हैं ये मंदिर इस इलाके के उजले अतीत के लाजवाब प्रमाण हैं | डेढ़ हजार साल पहले यह कला और संस्क्रती का लाजवाब केंद्र रहा होगा | यहाँ के मंदिर प्राकर्तिक कारणों से उजडे और धीरे-धीरे वीरानों में खो गए | यहां इतिहास को जिन्दा किया गया हैं | चप्पे-चप्पे पहले १९२० में प्रख्यात पुरातत्वशास्त्री एमबी गुर्दे कि नज़र में यह जगह आई थी ,लेकिन एएसआई ने वर्ष २००६ में यहां पूरी तैयारी से काम शुरू कराया, जो अब तक जारी हैं | अब मलबे में बिखरे मंदिर फिर से अपने पुराने दौर की याद ताजा करने लगे हैं | इतिहास के जानकारों का कहना हैं कि मंदिरों के इस विशाल संकुल से जाहिर हैं कि यह कोई प्रतिष्ठित मठ रहा होगा, जहां एक साथ सैकडों पुरोहित रहे होंगे | इनकी मौजूदगी में हजारों श्रद्धालुओं का आवागमन भी रहा होगा | लंबे अरसे तक डकैत गिरोहों के कारण कुख्यात रहे इस इलाके के चप्पे-चप्पे में ऐसे स्मारक बिखरे हुए हैं | इनमे प्राचीन पदमावती के अवशेष पवाया में पाए जाते हैं | सुहानिया,नरेसर, अटेर, और नरवर जैसे स्थान यहां की अलग ही कहानी बयान करते हैं | यह कहानी बीते हुए कल की हैं |(दैनिक भास्कर से साभार)