सिर्फ नर्मदा स्नान से नहीं बदलेंगे आदिवासियों के सूरते हाल
आजादी के इतने लंबे समय बाद यदि हम भारत के विकास का आंकलन करे तो ,तस्वीर उजली दिखती है |अंग्रेजों ने देश को आर्थिक रूप से क्षतिग्रस्त कर हमें रेलवे लाइन के जाल के साथ छोड़ दिया था |उसके बाद देश ने अनेक क्षेत्रों में बहुत प्रगति करी है ,लेकिन भारत के एक बड़े भू-भाग में निवासरत आदिवासी समुदाय का विकास और उन्नति उस गति और तीव्रता से नहीं हो सकी, जैसी की देश ने अन्यों क्षेत्रों में करी है |आदिवासी विकास के क्षेत्र में अब तक लगाए गए संसाधन अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके है |इस कड़वी सच्चाई को हमें स्वीकार करना ही होगा |गुजरात के डांग जिले में शबरी स्थान से लेकर पांच साल बाद नर्मदा स्नान तक कि अवधी में इस समुदाय की दशा और दिशा दोनों ही अपरिवर्तनीय रही है |इस का एक बड़ा कारण इस समुदाय को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर देखना है |ये आज भी देश के अनेक दुर्गम और अनसुचित क्षेत्रों में निवासरत है |यह समुदाय वर्तमान में भी स्वयं को प्रकृति की संतान और रक्षक मानकर उसके समीप रहने में ही विश्वास करता है |ये लोग शहरी सभ्यता के सामान प्रकृती का अंधधुंध दोहन नहीं करते, अपितु प्रकृति से उतना ही लेते जितना जीवन यापन को अवशक है|इसी विचार धारा के चलते यह समुदाय समाज के अन्य वर्गों की तुलना में हर क्षेत्र में पीछे छूट गया है ,जहाँ इनका वास्ता सिर्फ गरीबी और दुखों से पड़ रहा है| परंपरागत जीवन शैली का आदी ये आदिवासी समुदाय इन सब कारणों से बर्बाद और बेहाल है |इन परम्परों के फेर में कर्ज ,फिर कर्ज का जाल व बंधुआ मजदूरी जैसी चीजे अब इनके लिए आम है और इन्होंने परिस्थितियों से हताश होकर इस समुदाय ने अब इस सब को अपनी नियति और जीवन मान लिया हैं|ये सब स्तिथियाँ बदल सकती है लेकिन सिर्फ राजनितिक बयानबाजी के चलते इस दिशा में कुछ विशेष प्रगति नहीं हो पा रही |शिक्षा और जागरूकता का अभाव भी अड़े आ रहा है |अलग –अलग प्रजातियों कि बोली और भाषा भिन्न होने के कारण इन्हें जागरूक और शिक्षित करना भी एक कठिन कार्य है |जहाँ पूरे देश में साक्षरता पैसठ प्रतिशत के लगभग है ,तो आदिवासी साक्षरता का अनुपात सिर्फ सेंतालिस प्रतिशत के आसपास ही है |बिहार और झारखण्ड जैसे विशाल आदिवासी क्षेत्र में तो यह अनुपात लगभग अठरह प्रतिशत के नजदीक है, जो अत्यंत शर्मनाक और शोचनीय है ,विशेष रूप से उनके लिए जो महज गाल बजाकर आदिवासी उत्थान की बात करते है |बड़ी –बड़ी विकास की योजनाओ ने आदिवासी क्षेत्र और क्षेत्रफल दोनों को सीधे –सीधे प्रभावित किया है |भारी तादाद में विस्थापन ,फिर विस्थापन के मामूली मुआवजा के साथ पुनर्वास की निशक्त प्रक्रिया ने इन्हें विकास के पथ पर अग्रसर होने के बजाय पीछे ही धकेला है |देशभर में फैला यह समाज इतनी विविधता लिए है ,और यही विविधता इनकी एकता में बड़ी बाधा है इसलिए हमेशा ही इनकी आवाज क्षेत्रीय स्तर तक ही सिमित रहा जाती है ,उसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर पर यदा-कदा ही सुनायी देती है |और इस कमजोर प्रतिनिधित्व के वजह से कोई बेहतर नतीजे सामने नहीं आ पाते |इस दुर्दशा का जिम्मा सिर्फ सरकारों का नहीं है |आदिवासियों के जनप्रतिनिधि और इस समुदाय के वे लोग जो आरक्षण का लाभ लेकर सत्ता और सरकारी पदों की मलाई खा रहें है ,ज्यादा दोषी है |जिसने अपना परिवार उन्नत कर लिया पर उन्हें अपने शेष समुदाय की उन्नति में कोई रूचि नहीं है|ये नकारात्मक सोच ही वृहद स्तर पर इस समुदाय की तरक्की के अड़े आ रही है|सरकार की नीतियों के अनुरूप इस समुदाय की शिक्षा उन्नयन के प्रयास भी जोरों पर है |लेकिन सवाल यह है कि ये समुदाय सही मायनो में शिक्षित भी हो रहा है या महज खानापूर्ति ही हो रही है|एकीकृत आदिवासी विकास योजना के तहत गरीब आदिवासियों को रोजगार प्रशिक्षण और कर्ज देने के सरकारी प्रयास भी जारी है |देश भर में इस तरह के लगभग दो सौ योजनाये अलग-अलग क्षेत्रों में संचालित हो रही है |इस प्रक्रिया से लगभग अडतालीस लाख आदिवासी परिवार लाभान्वित हुए है |सहकारिता के प्रसार से भी इन्हें मजबूत किया जा रहा है ,आदिवासी सहकारी विपणन विकास के अंतर्गत इनके कला –कौशल के साथ इनकी कृषि और वन-उपज को उचित एवं अधिकतम मूल्य दिलाने के प्रयास हो रहे हैं|समाज के अन्य वर्गों का इनके प्रति नजरिया भी कोई बहुत अच्छा नहीं है ,इस सोच और नजरिये को बदल कर ही आदिवासी कल्याण की मुहिम को बल दिया जा सकता है |आदिवासी और गैर –आदिवासी के मध्य सदभावना का वातावरण निर्मित किया जाना बहुत अवशक है, जहा समाज के अन्य वर्ग इन्हें मान-सम्मान देते हुए संरक्षण और समर्थन प्रदान करें |नहीं तो सिर्फ सरकारी नीतियों के बल पर सुधार कठिन है| इसके साथ ही उचित पुनर्वास की व्यवस्था भी जरूरी है ,क्योकि खनन एवं कल –कारखानों के कारण लाखों आदिवासी परिवार आज बेघर है |कोयला खनन ने भारी तादाद में इन्हें बेघर किया हैं |और तो और स्वस्थ और स्वच्छ पेयजल भी इनके लिए दिव्य स्वपन के सामान है |पवित्र नदियों में स्नान और कोरी भाषणबाज़ी इन्हें आज इस दशा में ले आयी है |जहाँ से आगे का सफर मुश्किल जरूर है लेकिन मुमकिन है