शक्ति और ज्ञान के साधक राजा भोज
लक्ष्मीकांत शर्माहम कई अवसरों पर एक लम्बे अंतराल के बाद घटनाओं के दोहराए जाने की बातें सुनते, देखते आए हैं । ऐसा लेकिन क्यों होता है, इसके मूल में जाकर स्थितियों-परिस्थितियों के ज्ञान और विश्लेषण के आधार पर सब कुछ साफ पता चल सकता है । शक्ति की उपासना और इसे साध कर एक श्रेष्ठ शासन संचालित करने की पहचान वाले महान राजा भोज का सहस्त्राब्दी समारोह मध्यप्रदेश में करना मध्यप्रदेश सरकार की एक वैसे ही इतिहास को दोहराने की बानगी है । किसी अच्छाई को आदर्श मानकर उसका अनुकरण किसी की भी प्रगति का मूल मंत्र होता है । परन्तु यदि कोई सरकार इस आदर्श के साथ जनता के व्यापक हित में आगे आती है तो यह निश्चित ही अत्यंत महत्वपूर्ण बात हो सकती है । इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प की आवश्यकता होती है तथा यही इस दिशा में निरंतर प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने के परिचायक बनते हैं । बीते एक हजार वर्षो में परिस्थितियों और स्थितियों में भारी बदलाव आए हैं । ऐसे में आज महान शासक राजा भोज के विचारों, सिद्धांतों एवं शासन की रीति-नीतियों के अनुसरण की मंशा सिर्फ प्रासंगिक ही नहीं, नितांत आवश्यक भी है । राजा भोज की नगरी यानि आज के भोपाल में शक्ति और ज्ञान के इस महान साधक की याद को ताजा करने के उपक्रम में मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी प्रतिमा स्थापित करने के अपने निर्णय को साकार कर लिया है । इससे भोपाल ताल के करीब वीआईपी मार्ग पर गुजरने वाले हर एक व्यक्ति और विशेषकर शासक, प्रशासकों के मस्तिष्क में जहाँ राजा भोज की स्मृतियां उभरेंगी वहीं उनके मन को एक स्वस्थ, स्वच्छ और पुरूषार्थी शासक के आदर्शो को आत्मसात करने के लिए प्रेरित भी करेंगी ।राजा भोज की स्पष्ट और दृढ़ मान्यता थी कि किसी भी सुशासन की परिकल्पना शक्ति और ज्ञान के बगैर संभव नहीं है । इतिहास में ऐसे एकाधिक अवसर आए हैं इन दोनों में से किसी एक की भी रिक्तता ने सारी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाएँ चरमरा दीं । प्रजातांत्रिक देश में शासन को शक्ति जनता से प्राप्त होती है । पर्याप्त ज्ञान के बगैर इस शक्ति के दुरूपयोग की आशंकाएं कोरी भी नहीं हैं । इन आशंकाओं को समूल नष्ट करने का दायित्व सरकारों का ही तो है जिसे निभाने के लिए उनक सदैव सजग, सक्रिय और तत्पर रहना तथा जनआकांक्षाओं को पूरा करना आज सबसे बड़ी आवश्यकता है । इस दिशा में राजा भोज आदर्श प्रस्तुत करते हैं । राजा भोज का चिन्तन व्यापक था । इसमें किसी भी संकीर्णता का कोई स्थान नहीं था । उनकी यही सोच सुशासन का आधार हो सकती है । लोगों की कठिनाईयों और पीड़ाओं की अनुभूति कर उनके समाधान की राहें खोजना और उन्हें भी यह अनुभव कराना कि उस मुश्किल दौर में कोई उनके साथ खड़ा है, यही सच्चे-अच्छे शासन की पहचान है । महान विभूतियों के आदर्शो और जीवन मूल्यों को अपनी रीति-नीतियों में पुर्नस्थापित करने के लिए आज निश्चित ही साहस की जरूरत है । मध्यप्रदेश में सरकार के लोग इसके लिए हर चुनौती उठाने के लिए तैयार है । भोज नगरी में मकान शासक की प्रतिमा स्थापित करने के लिए जो नैतिक बल चाहिए था, उसे सरकार ने पिछले सात सालों में अपनी रीति-नीतियों के माध्यम से अर्जित करने के ईमानदार प्रयास किये हैं । आज भी जनकल्याण के नए-नए प्रयोगों को सच्चा बनाने के लिए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान निरंतर प्रयासरत हैं । राजा भोज के सिद्धान्तों पर यहाँ की सरकार भी लोगों को शक्तिशाली बनाना चाहती है ं संकटकाल में संस्कृति ही किसी राष्ट्र को एकजुट होकर उससे जूझने में समर्थ बनाती है । राजा भोज ने भारतीय संस्कृति की जड़ों को मजबूत किया । योद्धाओं और कुशल शासकों से विश्व का इतिहास भरा पड़ा है । भारत में भी एक से एक बढ़कर महान प्रतापी और पराक्रमी शासक हुये हैं, लेकिन ज्ञान, साहित्यानुराग, कला संगीत प्रेम तथा सहृदयता के महान गुणों से विभूषित ऐसे राजा कम होते हैं, जिनके नाम सुनते ही मन श्रद्धा से भर जाए । सम्राट अशोक, सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट समुद्रगुप्त, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य आदि ऐसे ही शासक हुये हैं, जिनके राज कौशल के साथ-साथ मानवीय गुणों तथा कला प्रेम को विश्व भर में मुक्त कंठ से सहारा जाना है । परमार वंश के महान दार्शनिक शासक महाराजा भोज इसी श्रृंखला के ऐसे ही गौरव पुरूष हैं। मध्यप्रदेश के लिए गर्व की बात है कि भारत के इन महान राजाओं में सम्राट विक्रमादित्य और राजा भोज इसी भू-भाग के शासक रहे । महाराजा भोज ने जहाँ अधर्म और अन्याय से जमकर लोहा लिया और अनाचारी क्रूर आतताइयों का मानमर्दन किया, वहीं अपने प्रजा वात्सल्य और साहित्य-कला अनुराग से वह पूरी मानवता के आभूषण बन गये । मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं । चाहे विश्व प्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्व भर के शिव भक्तों के श्रद्धा के केन्द्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब, ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन है । उन्होंने जहाँ भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया । उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है । इन सभी मंदिरों तथा स्मारकों की स्थापत्य कला बेजोड़ है । इसे देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि एक हजार साल पहले हम इस क्षेत्र में कितने समुन्नत थे । राजा भोज की गौरव गाथा के बिना मध्यप्रदेश की पहचान नहीं हो सकती । राजा भोज की प्रतिमा की भोपाल में स्थापना उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से नयी पीढ़ी को अवगत कराने के लिए हमारी सरकार का एक विनम्र प्रयास है । शहरों और राज्यों के नाम कलान्तर में विभिन्न कारणों से बदल जाते हैं । भोपाल के साथ भी ऐसा ही हुआ है । राजा भोज द्वारा निर्मित इस नगरी का मूल नाम देवल भोज नगरी है । इसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं । कालान्तर में इस नगर का नाम बिगड़कर भोजपाल, भूपाल और इसके बाद भोपाल हो गया । भोपाल के मूल नाम को वापस करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए । इसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ भारत के नगरों और राज्यों का नाम बदलकर मूल नाम रखा गया । मुम्बई, बंगलूरू, चेन्नई, तिरूवनंतपुरम, पुदुचैरी, कोलकाता आदि इसके उदाहरण हैं । हमने राजा भोज सहस्त्राब्दी समारोह को पूरे वर्ष मनाने का निर्णय लिया है । महाराजा भोज की गरिमा के अनुरूप आयोजित इस शुभारंभ समारोह पर ही भोपाल के इतिहास में पहली बार विश्व स्तरीय उपकरणों से सुसज्जित विशाल मंच पर एक भव्य समारोह आयोजित हो रहा है । भोपालवासियों के लिए आज का दिन निश्चिम ही अविस्मरणीय रहेगा । श्री शिवमणि, प्रिंस ग्रुप, श्री सुखविन्दर सिंह तथा अन्य कालाकारों की प्रस्तुतियों को कला रसिक हमेशा याद रखेंगे । कामनवेल्थ खेलों में जैसी आतिशबाजी हुई थी, उसी प्रकार की आतिशबाजी २८ फरवरी को लाल परेड पर होगी । मुझे आशा है कि समाज के सभी वर्गो के लोग शासन के इस प्रयास में सहभागी बनेंगे । इससे हमारा सांस्कृतिक गौरव पुनः प्रतिष्ठा होगा । अपने गौरवशाली राजा की अगवानी में भोपालवासियों से उल्लास के साथ उत्सव में शामिल होकर इतिहास के साथी बनने की अपेक्षा है ।