मुख्यमंत्री चौहान संस्कृति वत्सल सम्मान से विभूषित
एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को भोपाल में अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा उन्हें संस्कृति वत्सल अलंकरण से विभूषित किये जाने के प्रत्युत्तर में कहा कि यह सम्मान किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस विचार का है जिसे उनके जैसे अनेक कार्यकर्ता लेकर चलते हैं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में संस्कृति का प्रवाह निरन्तर बना रहेगा।मुख्यमंत्री चौहान को परिषद की ओर से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संस्कृति वत्सल अलंकर से विभूषित किया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा थे। अध्यक्षता अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मोहनलाल छीपा ने की।सरसंघचालक डॉ. भागवत ने अपने बोधगम्य उद्बोधन में कहा कि विद्वतजनों का धर्म है कि प्रतिभा की खोज करें। उसे सम्मानित करें ताकि देश-दुनिया में श्रेष्ठता की ख्याति हो। अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा श्री शिवराजसिंह चौहान का अभिनंदन कर इसी उद्देश्य की पूर्ति की गयी है। श्री भागवत ने कहा कि ऐसे प्रयत्न होने चाहिये जिससे संस्कृति शासकीय नीतियों के साथ-साथ घर-घर फूले-फले।डॉ. भागवत ने उदाहरणों के साथ तुलना करते हुये भारतीय संस्कृति का विश्व में श्रेष्ठ बताया। आपका कहना था कि हमारी संस्कृति प्राण न्यौछावर करके भी धर्म-नीति पर चलने की सीख देती है। सत्य का मार्ग प्रशस्त करती है। मनुष्य को संस्कारित करती है। मर्यादा में रहने की प्रेरणा देती है। सर्व हितैषी है।मुख्यमंत्री श्री चौहान ने गर्व से कहा कि भारतीय संस्कृति अद्भुत है। यह ऐसी संस्कृति है जो समग्र मानवता के साथ जड़ चेतन के कल्याण की भी कामना करती है। उन्होंने कहा कि पूँजीवाद की विकृतियां दुनिया को तबाही के कगार पर ला रही हैं। ऐसे में आशा और विश्वास का प्रकाश भारत की आध्यात्मिक भूमि से ही निकलेगा।श्री चौहान ने कहा पाश्चात्य दर्शन में केवल भौतिक सुखों की बात होती है, जबकि भारतीय संस्कृति में शरीर, बुद्धि, मन और आत्मा के सुख की बात की जाती है। राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ की गई तीर्थ दर्शन योजना आध्यात्मिक सुख देने का विनम्र प्रयास है।श्री चौहान ने कहा कि भारत के सनातन विचारों को क्रियान्वित करते हुये विकास का प्रकाश जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास राज्य सरकार कर रही है। हिन्दी विश्वविद्यालय, सांस्कृतिक स्थलों का विकास, योग शिक्षा, गौ-अभ्यारण्य, वीर भारत परिसर, शौर्य स्मारक और अमर शहीदों की चिताओं पर मेलों के आयोजन भारतीय सोच और विचारों को पूरा करने का प्रयास है।उन्होंने कहा कि भारतीय विचारधारा में नदियां हमारी सभ्यता और संस्कृति हैं हम उनको प्रदूषित नहीं होने देंगे। राज्य सरकार ने तय किया है कि प्रदेश में नदियों को प्रदूषित करने वाला कोई भी उद्योग स्थापित नहीं होगा। उन्होंने बताया कि क्षिप्रा सदा प्रवहमान रहे इसके लिये नर्मदा के जल को क्षिप्रा में ले जाने का व्यापक कार्य राज्य सरकार ने प्रारंभ किया है।विशिष्ट अतिथि संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि भारत विश्व का सिरमौर बने इसके लिए भारतीय विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने स्वाधीनता के पहले समर की 150 वी वर्षगांठ के अवसर पर वीरों, अमरशहीदों और क्रांतिकारियों के बलिदान को घर-घर तक पहुँचाने का प्रयास किया है। स्वामी विवेकानंद की जयंती को पूरे वर्ष तक मनाने का निर्णय लिया गया है। आगामी फरवरी माह में उज्जैन में विश्व संस्कृत साहित्य उत्सव का आयोजन किया जा रहा है कि इसमें संस्कृत की एक हजार से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन और लोकार्पण किया जाएगा।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मोहनलाल छीपा ने कहा कि आधुनिक और पाश्चात्य ज्ञान को देशानुकूल बनाना होगा। यूरोप-केन्द्रित बुद्धिजीवी सोच का भारतीयकरण किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन, बौद्ध, जैन साहित्य में ज्ञान के अपरिमित भण्डार हैं। इस ज्ञान को बाहर निकालकर आमजन तक पहुंचाने के प्रयास जरूरी हैं।कार्यक्रम में आए अतिथियों का स्वागत करते हुये अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बलवंत जानी ने पुरस्कार की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. यतीन्द्र तिवारी ने आभारमय कृतज्ञता ज्ञापित की। प्रशस्ति पटि्टका का वाचन संस्था की राष्ट्रीय मंत्री विनयराजाराम ने किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान को सम्मान के रूप में प्रशस्ति पटि्टका, स्मृति चिन्ह, शॉल-श्रीफल और माला से डॉ. मोहन भागवत ने सम्मानित किया।