27 साल बाद धनतेरस को अमृतसिद्धीधनवर्षा महामुहूर्त योग का महासंयोग -ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री
27 साल बाद  धनतेरस को अमृतसिद्धीधनवर्षा महामुहूर्त योग का महासंयोग -ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र श
धनतेरस पर बरसेगा धनस्वामी शनि का होगा उदय धनतेरस 11नवम्बर को होगा11 नवम्बर को त्रयोदशी तिथि दोपहर1ः27 बजे प्रारंभ होकर 12नवम्बर को प्रातः 10ः33 तक रहेगी11 नवम्बर 2012 रविवार हस्तनक्षत्र अमृत सिद्धी योग सर्वार्थ सिद्धी योग भोपाल के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री के अनुसार 11 नवम्बर2012 रविवार को कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदषी के दिन 27 वर्ष बाद अमृतसिद्धीधनवर्षा महामुहूर्त योग का महासंयोग बन रहा है जो इससे पहले 10 नवम्बर1985 को बना था क्योकि धन तेरस के दिन अमृत कलष लेकर भगवान धनवन्तरी समुद्र से प्रगट हुये थे इस कारण धनतेरस को अबुझ मुहूर्त भी कहा जाता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य या खरीदी कि जावे वह अमृत के समान अमर व स्थाई रहती है। रविवार के दिन हस्तनक्षत्र होने से अमृतसिद्धी योग बनता है क्योंकि हस्तनक्षत्र का स्वामी भी सूर्यदेव है साथ ही धनतेरस के दिन अमृतसिद्धी योग होने से सर्वार्थ सिद्धी योग भी स्वतः ही बन जायेगा एवं उद्योग जगत का स्वामी शनि जो पिछले माह से अस्त चल रहा है। उनका भी उदय 11 नवम्बर धनतेरस को होगा इस कारण धनतेरस पर बरसेगा धन क्योंकि चन्द्रमा भी बुध की उच्च राषि कन्या में होंगे 27 वर्ष पहले 10 नवम्बर 1985 को बना था अमृतसिद्वी धनवर्षायोग । इस बार धनतेरस11 नवम्बर को उदया तिथि द्वादषी है जो दोपहर 1ः27 बजे तक रहेगी लेकिन इसी दिन ‘‘धनतेरस’’ मनेगी क्योकि इसे प्रदोषव्यापिनी माना जाता है। 12नवम्बर को उदया तिथि तेरस है जो कि प्रातः10ः33 तक रहेगी लेकिन कुछ पंचांगो में‘‘धनतेरस’’12 नवम्बर को भी बताई गई है क्योकि समुद्र मंथन से भगवान धन्वन्तरी का प्राकटय प्रातः काल की बैला में हुआ था लेकिन धन के देवता कुबेरजी का प्राकटय प्रदोष काल शाम के समय हुआ था इस कारण प्रदोषव्यापिनी 11 नवम्बर2012 रविवार को‘‘धनतेरस’’ मनेगी इस दिन अमृत सिद्धीयोग व सर्वार्थ सिद्धी योग एवं उद्योग जगत के स्वामी शनि का अपनी उच्च राषि में होगा उदय एवं व्यापार के स्वामी बुध की उच्च राषि कन्या में होगा चन्द्रमा ! धनत्रयोदषी को सामान्य रूप से‘‘धनतेरस’’ भी कहते है। यह आरोग्य एवं धन प्राप्ति का पर्व दीपावली से दो दिन पूर्व कार्तिक माह की कृष्ण त्रयोदषी को मनाया जाता है। इस पर्व के निम्नांकित दो मुख्य रूप है:1.धन्वन्तरि जयंती, 2. धनतेरस समुद्र मन्थन के समय भगवान् धन्वन्तरि का कार्तिक कृष्ण त्रयोदषी को प्राकट्य हुआ था। आयुर्वेद का उपदेष देने के कारण वैद्यगण इस दिन भगवान् धन्वन्तरि की जयन्ती मनाते हुये उनका विधिवत् पूजन करते है। धनतेरस पर शुभ मुहूर्त में नए बर्तन, आभूषण अथवा अन्य वस्तुएँ खरीदकर लाने कारक विषेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि नए बर्तन के साथ समृद्धि,सुख एवं सौभाग्य का आगमन होता है। इस दिन उन्हीें वस्तुओं का क्रय करे जिनकी आवष्यकता हो, धन के अपव्यय से यथासंभव बचना भी घनतेरस का विधान है। इस दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए। संध्या के समय घर में मुख्यद्वार के दोनों ओर दीपदान करना चाहिए। इस दिन दीपदान करने से घर में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता तथा ऐसा करने से यमराज भी प्रसन्न रहते है। ब्रह्माजी से धनाध्यक्ष की उपाधि प्राप्त करने के कारण धनत्रयोदषी के दिन कुबेर का पूजन किया जाता है। इस दिन उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण और पूजन करना सौभाग्य वृद्धि के लिये श्रेष्ठ माना गया है। कुबेर जिस पर भी प्रसन्न हो जाएँ, वे उसकी सभी भौतिक कामनाओं को पूर्ण करते है एवं भगवान् षिव के मित्र होने के कारण साधक की सभी प्रकार की समस्याओं का भी समाधान कर देते है। इसलिए इस दिन कुबेर पूजन अवष्य करना चाहिए। कुबेर के निमित्त किए जाने वाले विषेष प्रयोग भी इसी दिन करने चाहिए। इस दिन कुबेर पूजन एवं उनके निमित्त मन्त्र जाप, स्त्रोत पाठ आदि करने से यक्षरात प्रसन्न होकर साधक को आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करते है। धनत्रयोदषी को आधुनिक मुहूर्त ज्योतिष में अबूझ मुहूर्त के रूप में माना जाता है। इस दिन विवाह को छोड़कर प्रायः सभी शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते है। चाहे व्यक्ति का चन्द्रमा भी अनुकूल न हो, नक्षत्र,योग आदि शुभ न हों, शुक्र या गुरू अस्त हो,किसी भी प्रकार की अषुभ स्थिति होने पर भी शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते है। आधुनिक युग में धनत्रयोदषी का मुख्य कृत्य बहुमूल्य वस्तुएँ,बर्तन, आभूषण, दैनिक उपभोग की वस्तुएँ,वाहन, भूमि, भवन इत्यादि के क्रय के रूप में है। गरीब हो चाहे अमीर हो, हर व्यक्ति इस दिन कुछ न कुछ अवष्य खरीदता है, ऐसा माना जाता है कि धनत्रयोदषी को बर्तन आदि क्रय करने से घर में समृद्धि आती है। यही कारण है कि वर्तमान में सम्भवतः धनत्रयोदषी बाजार में वर्ष का सर्वाधिक विक्री वाला दिन होता है। धनत्रयोदषी के दिन दोपहर के पष्चात् बर्तन आदि क्रय किए जाने चाहिए। यह कृत्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए जो अधिक शुभफलदायक होता है। इस दिन सोना,चाँदी,वाहन, का लाना विषेष शुभ माना गया है। अन्य धातुओं के बर्तन का क्रय करना भी शुभ फलदायक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन घर में नया बर्तन आना सौभाग्य एवं समृद्धि का द्योतक होता है। इससे आगामी वर्ष में धन धान्य एवं सम्पदा बनी रहती है। धनत्रयोदषी पर बाजार से बर्तन लाते समय उसे खाली नहीं लाना चाहिए। उसमें अन्न, मिष्ठान्न, धन आदि रखकर लाया जाना चाहिए। चावल या ज्वार की खील और बताषे भी भरकर लाए जा सकते है। बर्तन वाले से कहकर उसमें आप एक रूपय का सिक्का भी डल वालें तो आपके लिए यह सौभाग्यदायक रहेगा। सिक्का यदि चाँदी का हो और उसमें लक्ष्मी जी का चित्र उत्कीर्ण हो, तो अत्यािधक शुभ है। घर लाकर बर्तनों को जल से छींटे लगाकर शुद्ध करना चाहिए और उसका रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करना चाहिए। तदुपरांत उसके मुखकंठ पर मौली बाँधनी चाहिए, फिर, उसे किचिन में ले जाकर रखना चाहिए और यह मानना चाहिए कि आपके घर में इन बर्तनों के माध्यम से लक्ष्मी का प्रवेष हो चुका है। इन बर्तनों में से किसी एक या अधिक बर्तनों को लक्ष्मी पूजन में भी प्रयुक्त करना चाहिए। यदि आप उन बर्तनों के साथ चाँदी अथवा सोने का सिक्का लेकर आए है, तो उसे भी दीपावली की मुख्य पूजा में अवष्य रखना चाहिए। उसके पष्चात् उन्हें अपनी तिजोरी या धन रखने के स्थान में लाल कपड़ें में लपेटकर रखना चाहिए और समय समय पर धूप दीप दिखाते रहना चाहिए। चाँदी से निर्मित लक्ष्मी गणेष की प्रतिमा के पूजन का प्रचलन है , इन प्रतिमाओं को भी धनत्रयोदषी पर लाना चाहिए। चाँदी के बर्तन का भी इस दिन क्रय किया जाता है। इस दिन आभूषणों का क्रय करना भी शुभ होता है। आभूषणों को लाकर भी उनका द्रव्यलक्ष्मी के रूप में स्वागत करना चाहिए और उनका संक्षिप्त पूजन करना चाहिए, उसके पष्चात् दीपावली के दिन उन्हें मुख्यपूजा में भी रखना चाहिए। उसके उपरांत ही उन्हें उपयोग में लाना चाहिए।आधुनिक युग में धनत्रयोदषी नई वस्तुओं के क्रय के शुभ एवं अबूझ रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। टी.वी. रेफ्रीजरेटर, कम्प्यूटर,फर्नीचर, मोटरसाइकिल, स्कूटर, कार इत्यादि का क्रय इस दिन बड़ी मात्रा में होता है। ऐसा माना जाता है कि य वस्तुऐ क्रेता के लिए शुभ रहती है और वह इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं के क्रय करने से समर्थ हो जाता है। भूमि भवन आदि का क्रय भी इसी दिन किया जाना अतिशुभ होता है। धनत्रयोदषी व्यापार आरंभ आदि के लिये शुभ एवं अबूझ मुहूर्त है। यहाँ तक कि धन से जुड़े हुए समस्त कार्य धनत्रयोदषी को करना शुभ रहता है। धनत्रयोदषी पर यह भी मान्यता है कि इस दिन धन का आगमन होना चाहिए गमन नहीं।धनतेरस दि. 11 नवम्बर के श्रेष्ठ मुहूर्त धन्वन्तरि पूजन श्री लक्ष्मी कुबेर पूजन एवं खरीदी का समयप्रातः 7ः30 से दोपहर 12 बजे तक - चर, लाभ,अमृतदोपहर 1ः30 से 3 बजे तक - शुभरात्री 6 से रात्री10ः30 बजे तक - शुभ, अमृत, चरप्रातः 6ः58 से9ः15 तक - वृष्चिक स्थिर लग्नदोपहर 1ः07 से 2ः40 तक - कुम्भ स्थिर लग्नसायं 5ः51 से7ः49 तक - वृषभ स्थिर लग्नदीपावली श्री महालक्ष्मी पूजन के सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त दि.13 नवम्बर 2012 मंगलवारप्रातः 9 से दोपहर1ः30 बजे तक - चर,लाभ, अमृतदोपहर 3 से 4ः30 बजे तक - शुभसायं 7ः00 से रात्री9 बजे तक - लाभप्रातः 6ः51 से9ः07 तक - वृष्चिक स्थिर लग्नदोपहर 12ः59 से 2ः62तक - कुम्भ स्थिर लग्नसायं 5ः43 से7ः42 तक - वृषभ स्थिर लग्नमध्यरात्री 12ः12 से2ः24 तक - सिंह स्थिर लग्न(प्रदोष काल विषेष समय सायं 5ः40से 8ः20 तक)कार्तिक कृष्ण धनतेरस जहाँ भगवान् धन्वन्तरि की पूजा अर्चना के लिए प्रसिद्ध है, वहीं इस दिन यमुना स्नान एवं यमराज के निमित दीपदान का महत्व भी शास्त्रों मंे वर्णित है। मान्यता है कि इस दिन यमराज को दीपदान से असामयिक मृत्यु का भय नहीं रहता।धनतेरस पर सायंकाल घर के मुख्यद्वार पर एक पात्र में अन्न रख उस पर यमराज के निमित नवीन रूई की दक्षिणाभिमुख बत्ती वाले तिल के तेल के दीप प्रज्वलित कर उनका गन्धादि से पजून कर उन दीपों का दान करें। त्रयोदषी को दीपदान करने से मृत्यु, पाष,दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न होंते है।इस प्रकार दीपदान से दीर्घायु प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। पवित्र यमुना यमराज की बहिन हैं, इसलिए इस दिन यमुना स्नान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और असामयिक मृत्यु के भय के मुक्त करते है।