क्या इतने क्रूर हैं छत्तीसगढ के नेता
 Kill opponents

नक्सलियों से विरोधियों की हत्याए करवाते हैं

 

झीरम नरसंहार का मामला फिर सुर्खियों मे है | तो  बात बस्तर से एक मात्र भाजपा विधायक भीमा मण्डावी की हत्या की भी उठेगी ही | भीमा मण्डावी की हत्या के भी राजनीतिक कारण तलाशे  जाएंगे | लेकिन चर्चा ये भी है शुरू हो गई है कि क्या छत्तीसगढ़ के नेता नक्सलियों से अपने विरोधियों की हत्याएं करवाते हैं | छत्तीसगढ़ में चल रही चर्चाओं को सच माने तो  राजनीति का ये घिनौना और डरावना चेहरा  लोगों  को भयभीत करने लगा है |  कि राजनेता अपने विरोधियों के खात्मे के लिए नक्सलवादियों का सहारा लेते हैं | नक्सली लम्बे समय से समय समय पर राजनीतिक दलों से जुडे लोगों की हत्याएं करते आ रहे हैं.| इसमे भाजपा और कांग्रेस दोनो दलों के नेता शामिल है.| क्सली ये हत्याएं राजनीतिक दृष्टि से या नियोजित तरीके से करते हैं या ये हत्याएं करवाई जाती हैं। यह तथ्य अब तक पुख्ता तौर पर उजागर नहीं हुआ है | . हांलाकि  राजनेताओं की हत्या के उद्देश्य कभी उजागर नहीं होते |  क्योंकि ये टारगेट नक्सलियो के हाईलेबल पर फिक्स किये जाते हैं |  जिसकी जानकारी दूसरी पंक्ति  से लेकर अन्तिम पंक्ति  के  नक्सली सदस्यों तक को नहीं होती | तो अगर पुलिस या जांच एजेन्सिया ऐसी घटना मे शामिल नक्सली या नक्सलियों को गिरफ्तार कर भी ले या आत्मसमर्पण करा भी दे तो भी उस घटना का यानी कि नेता की हत्या के कारण का पता नहीं लगाया जा सकता. |  मामला चाहे झीरम नरसंहार का हो या भाजपा विधायक भीमा मण्डावी की हत्या का हो या फिर पूर्व मे छोटे और मझोले किस्म के नेताओं की हत्या का हो|  समय समय पर इन हत्याओं मे शामिल नक्सली पकडे जाते रहे हैं | इन हत्याओं मे शामिल नक्सलियों ने समर्पण भी किया है मगर पुलिस या जांच एजेन्सियां इस बात का पता नहीं लगा सकीं कि क्या ये हत्या या हत्याए सुपारी किलिंग थी.? यानी कि क्या ये हत्या या हत्याएं किसी के कहने पर की गई.? कारण वही था कि इन पकडे गये या आत्मसमर्पित नक्सलियों को पता ही नहीं होता कि वो जिस हत्या काण्ड या किसी घटना को अंजाम दे रहे हैं उसके पीछे का मकसद क्या है |